घनश्याम शुक्ल-ऐगो जुग के अंत…
आलेख – डा0 सुधीर कुमार सिंह, संठी
श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):
मृत्यु लोक में आइल गइल ऐगो सतत् प्रक्रिया बा। दशकों बाद ऐगो अइसन दिन आवेला कि केहू के गइल व्यक्ति विशेष के साथे पुरा समाज के रोवा जाला।23 दिसंबर के दिन भी अइसने रहल जवन जीवन भर करेजा में शूल बनके अड़त रही।
5नंवबर1949 के दिने ऐगो अइसन महान आत्मा के अवतरण भइल जवन अपन कर्म के बल पर सुतल समाज के जगाके ओकरा के नया दिशा औरी दशा देहलस।कविवर श्याम सुंदर रावत जी के पंक्ति “ऐ भारत के राम जगो मैं तुम्हें जगाने आया हूँ” से प्रेरित होके सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में बसल कर्मयोगी घनश्याम सुकूल जी अपना निष्काम भाव, सेवा,आदर्श औरी जीवटता से समय के छाती पर ऐतना लम्हर लाइन खींचनी की ऐकर प्रभाव सुगंध बनके जुगों जुगों तक गमकत रही।
कस्तूरबा कन्या विद्यालय,बिस्मिल्लाह खाँ संगीत महाविद्यालय, पुस्तकालय, प्रभा प्रकाश महाविद्यालय, मैरीकॉम स्पोर्ट्स ऐकेडमी के अलावा अपना माई भाखा के उत्थान औरी संवैधानिक दर्जा दिलवावे खातिर भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन के शुरुआत के साथे साथे ग्रामीण लइकन में प्रतियोगी परीक्षा खातिर ललक औरी जज्बा पैदा करे खातिर नवचेतना प्रतियोगिता के शुरुआत इ सभ सुकुल जी जइसन साहित्य- प्रेमी,कर्मयोगी औरी त्यागी पुरुष ही कर सकत रहल ह बाकी दुसरा में इ साहस नइखे।
सुकूल माट साब के गइला के असली दरद त गांव के अफसाना के,अकबर के, बहीन निरुपमा, माट साब के मानस पुत्र संजय भाई के अलावा हजारों अइसन लोगन के आँखी में दू जनवरी के श्रंद्धाजलि सभा में लउकल।जब हजारों के हुजूम में भीगत लोर भर आँखी के साथे लोग उहाँ के तैंलचित्र पर श्रद्धा सुमन अर्पित करत रहे लो।
अइसन निःस्वार्थ कर्मयोगी, शिक्षाविद्,नारी सशक्तिकरण के प्रणेता,औरी जीवन में लाख कठिनाई के बाद हार ना मानेवाला महान आत्मा के श्रीचरण में हमार सादर नमन औरी अंतिम प्रणाम .
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