नहीं रहे गांधी की राह पर चलकर संपूर्ण जीवन समाज को समर्पित करने वाले  घनश्याम शुक्ल 

नहीं रहे गांधी की राह पर चलकर संपूर्ण जीवन समाज को समर्पित करने वाले  घनश्याम शुक्ल

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

* कैदियों को नियमानुसार भोजन नहीं मिलने पर जेल में ही किया था अनशन

* मुफ़्त शिक्षा केंद्र चलाकर बच्चों को आजीवन देते रहे विद्यादान

आलेख :  आनंद मिश्रा, सीवान जिले के वरिष्‍ठ पत्रकार, समाजिक चिंतक व शिक्षक

श्रीनारद मीडिया  सेंट्रल डेस्‍क:

घनश्याम शुक्ल, एक ऐसा नाम,जिसे सुनते ही एक ऐसी छवि उभरती है,जो जीवनपर्यंत समाज के बदलाव के लिए संघर्ष करता है। शिक्षणवृति से अर्जित समस्त धन विभिन्न संस्थानों की स्थापना में व्यय कर देता है।

बीतरागी ऐसा कि घर में रहते हुए भी संन्यास का जीवन जीता है। जुझारू ऐसा कि समाज में व्याप्त विकृतियों व आडंबरों के विरुद्ध अकेला सीना तानकर खड़ा होता है तो हजारों की भीड़ को झूकना पड़ता है। विनम्र ऐसा कि संस्थानों के लिए धन जुटाने के क्रम में आपके पांव पकड़ते देर नहीं लगती।

यूं कहें तो घनश्याम शुक्ल ही उत्प्रेरक केंद्र बिंदु थे जिनके बदौलत पंजवार व उसके आसपास के दर्जनों गांवों के सैकड़ों युवाओं को रचनात्मक दिशा मिली या युवाओं की ऊर्जा को रचनात्मक आयाम प्रदान किया। जो बीज उन्होंने 20-25 साल पूर्व बोया था,आज वह फसल आइएएस, आइपीएस, बीपीएससी के साथ ही खेल जगत में व्यापक फलक पर लहलहाती दिख रही हैं।

सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में ऐसा पुस्तकालय शायद ही कहीं दिखे,जिसमें आजादी के पूर्व की पत्र-पत्रिकाएं भी संग्रहित हों।संगीत की शास्त्रीय परंपरा को जीवंत बनाने के लिए संगीत महाविद्यालय की स्थापना व शहर  30 किमी दूर डिग्री कॉलेज की स्थापना का साहस घनश्याम शुक्ल उर्फ गुरुजी ही कर सकते थे।

अलबत्ता उसे जमीन पर उतारने का अथक प्रयास आज मूर्त हो उठा है. त्याग, विनम्रता, संघर्ष और संकल्प की दृढ़ता, एक महत उद्देश्य के लिए अनेक परस्पर विरोधी तत्वों को समंवित कर लक्ष्य की ओर गतिशील व प्रेरित करने की अद्भुत क्षमता इस शिक्षक को महान बनाता है।

शिक्षक शब्द की गरिमा को उदात्त जीवन मूल्यों के संरक्षण का वाहक बनाता है। जिले दक्षिणांचल क्षेत्र में रघुनाथपुर के गांधी कहे जाने वाले पंजवार गांव निवासी घनश्याम शुक्ल समाज की सेवा कर महात्मा गांधी के सपनो को साकार करने में आजीवन जुटे रहे।

किसान आंदोलन में जेल गए।यही नहीं जेल में कैदियों को नियमानुसार भोजन नहीं मिलने के खिलाफ जेल में ही अनशन भी किया। जेपी आंदोलन में इलाके में हरिजन सहभोज करा कर सामाजिक बहिष्कार भी झेला। लोकपाल के लिए अन्ना के अनशन के दौरान सात दिनों तक रघुनाथपुर प्रखंड मुख्यालय पर अनशन पर रहे। महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार के विरोध करने के लिए जन जागरण अभियान भी चलाया.


भरा पूरा परिवार होने के बावजूद उनका अधिकांश समय पंजवार गांव में स्थित जयाप्रभा  डिग्री कॉलेज के प्रांगण में ही बीतता था। कॉलेज की कक्षाएं खत्म होने के बाद स्कूली बच्चों को शिक्षा देना, समय मिला तो कॉलेज को और बेहतर बनाने के सपने बुनते। फिर उन सपनों को सच करने के लिए काम करना शुक्ला जी की दिनचर्या बन गई थी। शुक्ला जी जब भी यायावर व अस्पृश्य जातियों के नन्हे-मुन्ने बच्चों को देखते थे तो उन्हें तकलीफ होती थी। फिर उन्हें समाज की मुख्य धारा में जोड़ने की कोशिशों में जुट जाते।

उनके मन-मस्तिष्क में कई सपने थे जो मूर्त रुप नहीं ले सके। उसी में शामिल है- बच्चों के लिए एक आवासीय विद्यालय खोलने का सपना। उनका कहना था कि इस आवासीय विद्यालय में विद्यार्थियों को मुफ्त शिक्षा व रहने खाने का प्रबंध होगा. गुरुजी न तो कभी रुके थे और कभी न थके थे। सत्य और अहिंसा की राह पर चलते-चलते आखिरकार वे अनंत यात्रा पर निकल गये। लेकिन पंजवार की गलियां, विद्यालय, बच्चे, खेलाड़ी और पूरा समाज उनकी राह तकेगा। वे आज भी पंजवार की फिजाओं में गुंजायमान हैं और कल भी रहेंगे-कीर्ति यस्य स जीवति।

यह भी पढ़े

रामनगर में डाक्टर सविता मेमोरियल वालीबाल प्रतियोगिता शुरू

सीवान दक्षिणांचल के गांधी गुरूजी घनश्‍याम शुक्‍ला नहीं रहे

घनश्याम शुक्ला के निधन पर क्षेत्र में शोक की लहर.

 

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!