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ग़ज़लकार शैलेन्द्र पांडेय शैल जी के दूसरे ग़ज़ल संग्रह "लफ़्ज़ लफ़्ज़ पैरहन " का हुआ लोकार्पण। - श्रीनारद मीडिया

ग़ज़लकार शैलेन्द्र पांडेय शैल जी के दूसरे ग़ज़ल संग्रह “लफ़्ज़ लफ़्ज़ पैरहन ” का हुआ लोकार्पण।

ग़ज़लकार शैलेन्द्र पांडेय शैल जी के दूसरे ग़ज़ल संग्रह “लफ़्ज़ लफ़्ज़ पैरहन ” का हुआ लोकार्पण।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

तुलसी भवन के मानस सभागार में शहर के जाने माने ग़ज़लकार शैलेन्द्र पांडेय शैल जी के दूसरे ग़ज़ल संग्रह “लफ़्ज़ लफ़्ज़ पैरहन ” का लोकार्पण साहित्यिक संस्था अखिल भारतीय साहित्य परिषद के बैनर तले संपन्न हुआ ।कार्यक्रम की अध्यक्षता जानी मानी कवयित्री और कोल्हान विश्वविद्यालय की पूर्व विभागाध्यक्ष डा रागिनी भूषण ने किया।

मुख्य अतिथि के रूप में परिषद की संरक्षिका श्रीमती मंजू ठाकुर ,विशिष्ठ अतिथि के रूप में तुलसी भवन के मानद महासचिव प्रसेनजीत तिवारी,वरिष्ठ पत्रकार दुर्योधन सिंह,मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ रचनाकार प्रो मित्रेश्वर अग्निमित्र एवं मंच संचालक की भूमिका में परिषद की संगठन मंत्री डा अनीता शर्मा उपस्थित रहीं।कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के चित्र पर पुष्पार्पण और दीप प्रज्वलन के उपरांत वीणा पांडेय भारती द्वारा प्रस्तुत वंदना से हुई ।स्वागत भाषण सोनी सुगंधा तथा धन्यवाद ज्ञापन की परंपरा का निर्वाह राजेंद्र सिंह ने किया ।

मुख्य अतिथि के रूप में अपने संबोधन में मंजू ठाकुर जी ने अपनी शुभकामनाएं देते हुए कहा कि शैल जी ने सभी विषयों को छुआ है और ऐसी पुस्तकें निस्संदेह हमारे साहित्य को समृद्धि प्रदान करेंगी।दुर्योधन सिंह ने कई गजलों को श्रोताओं के सामने वाचन करते हुए आज के संदर्भों में उनकी सार्थकता की चर्चा की और कहा कि यह पुस्तक न सिर्फ पठनीय है बल्कि संग्रहणीय भी है ।प्रसेनजीत तिवारी जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी के साथ साथ उर्दू भाषा पर भी इतना कंट्रोल रखना ,उसकी जानकारी रखना काफी प्रशंसनीय है।मुख्य वक्ता प्रो मित्रेश्वर जी ने शैल जी की रचनाधर्मिता पर अपना नजरिया रखते हुए उन्हें जमशेदपुर के दुष्यंत की संज्ञा दे डाली ।

रचनाकार की अपनी बात रखते हुए शैल जी ने लफ़्ज़ लफ़्ज़ पैरहन की सृजन यात्रा से जुड़े अपने अनुभवों ,अपनी फ़ौज के समय की कुछ बातों की चर्चा करते हुए ये बताया कि उर्दू के साथ उनका जुड़ाव कैसे हुआ ।

अध्यक्षता कर रहीं डा रागिनी भूषण जी ने शैल जी के स्वभाव और उनकी गजलों के मिजाज़ पर अपनी बात रखते हुए एक ग़ज़ल की अपनी सस्वर प्रस्तुति से पूरे सभागार को मंत्र मुग्ध सा कर दिया।

अंत में धन्यवाद ज्ञापन के बाद राष्ट्र गान और मणिपुर में हुए नक्सली हमले में शहीद हुए सैनिकों की याद में दो मिनट के मौन के बाद कार्यक्रम समापन की घोषणा कर दी गई ।

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