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राज्यपाल ने दी कर्नाटक CM के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी

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क्या है पीसी अधिनियम की धारा 17A?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत किसी मुख्यमंत्री या मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में जांच और मुकदमा चलाने की मंजूरी देने के लिए राज्यपाल सक्षम प्राधिकारी हैं। कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मुडा भूखंड आवंटन घोटाले के आरोप में मुख्यमंत्री सिद्दरमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए शनिवार को इसी अधिकार के तहत मंजूरी दी।

कर्नाटक के राज्यपाल सचिवालय ने कथित अपराधों के लिए भ्रष्टाचार निवारण (पीसी) अधिनियम, 1988 की धारा 17 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 की धारा 218 के तहत सिद्दरमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग को स्वीकार किया। कानून के तहत मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने के लिए राज्यपाल सक्षम प्राधिकारी हैं और कानूनी स्थिति के मद्देनजर आरोपित को पद से हटाने के लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा मंजूरी दी जानी चाहिए।

सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति अनिवार्य

एक संशोधन के माध्यम से 2018 में शामिल की गई पीसी अधिनियम की धारा 17ए के तहत किसी लोक सेवक के खिलाफ पूछताछ या जांच शुरू करने से पहले सक्षम प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य है यानी प्रविधान कहता है कि एक पुलिस अधिकारी को ऐसे अपराधों की जांच करने से पहले पूर्वानुमति लेनी होगी। सक्षम प्राधिकारी को जांच एजेंसी से अनुरोध प्राप्त होने के 120 दिन के भीतर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने या अस्वीकार करने का निर्णय लेना होगा।

बीएनएसएस की धारा 218 लागू

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि पूर्व मंजूरी प्राप्त करने की उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लोकसेवकों को परेशान न किया जाए। इसने यह भी कहा है कि पूर्व मंजूरी की आवश्यकता पूर्ण नहीं है और वास्तविक आरोपों की अदालत को पड़ताल करने की अनुमति होनी चाहिए। कर्नाटक के राज्यपाल ने बीएनएसएस की धारा 218 भी लागू की है, जिसने हाल ही में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह ली है।

कर्नाटक के मौजूदा राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने MUDA भूमि घोटाले के मामले में उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है। अब इन सब के बीच सवाल यह उठता है कि क्या किसी प्रदेश का राज्यपाल मुख्यमंत्री पर मुकदमा चलाने का आदेश दे सकता है? सवाल इसलिए भी लाजिमी हो गया है क्योंकि राज्यपाल के निर्देशानुसार, कर्नाटक के सीएम पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत मुकदमा चलाने की तैयारी है।

राज्यपाल का यह नोटिस तब आया है, जब एंटी-करप्शन एक्टिविस्ट टीजे अब्राहम ने याचिका दाखिल की. इसमें सिद्धारमैया पर MUDA में कथित गड़बड़ी के लिए मुकदमा चलाने की मांग की गई थी. उन्होंने अपनी याचिका में राज्य के खजाने को करोड़ों रुपये नुकसान होने का आरोप लगाया था.

अब्राहम ने जुलाई में लोकायुक्त पुलिस के पास इस स्कैम के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी. इसमें आरोप लगाया था कि सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती को मैसूर के एक पॉश इलाके में 14 अरटर्नेट जमीनों का आवंटन अवैध था, जिससे सरकारी खजाने को 45 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. इस शिकायत में सिद्धारमैया, उनकी पत्नी, बेटे एस यतींद्र और MUDA के सीनियर ऑफिसर का नाम शामिल है.

एक अन्य एक्टिविस्ट स्नेहमयी कृष्णा ने भी कथित भूमि घोटाले में सिद्धारमैया, उनकी पत्नी और MUDA तथा प्रशासनिक अधिकारियों की संलिप्तता का आरोप लगाया है. नया केस दर्ज नहीं करवाया है क्योंकि पुलिस इस मामले में जांच पहले से ही चल रही है.

सिद्धारमैया ने दावा किया था कि जिस जमीन के लिए उनकी पत्नी को मुआवजा मिला था, वह उनके भाई मल्लिकार्जुन ने 1998 में गिफ्ट में दी थी, लेकिन कार्यकर्ता कृष्णा ने आरोप लगाया कि मल्लिकार्जुन ने 2004 में इसे अवैध रूप से खरीदा था और सरकारी और राजस्व अधिकारियों की मदद से जाली कागजातों का उपयोग किया था.

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