सीवान नगर में भगवान जगन्नाथ की निकली भव्य रथ यात्रा।
पहली बार भगवान जगन्नाथ की निकली भव्य रथयात्रा यात्रा
रथ खींचने उमड़े श्रद्धालु
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा सीवान नगर में रविवार को बृजकिशोर डीएवी श्रीनगर विद्यालय से निकलकर गोपालगंज मोड़, दहा नदी सेतु, जेपी चौक, बबुनिया मोड़ होते हुए नगर के विभिन्न मार्गो में शोभायात्रा निकाली गई। इसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्त शामिल हुए। रथ को रस्सी के माध्यम से खींचकर पूरे नगर में भव्य यात्रा निकली। इस भव्य यात्रा की तैयारी कई दिनों से चल रही थी। सीवान में इस तरह की यह पहली यात्रा है। इस वर्ष यह त्योहार 20 जून, 2023 को शुरू हुआ और 28 जून, 2023 को समाप्त होगा।
हर वर्ष आषाढ़ माह की द्वितीया से लेकर दशमी तिथि तक भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ यात्रा पर निकलते हैं। दरअसल इस रथ के पीछे पौराणिक मान्यता है, जिसके अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण से उनकी बहन सुभद्रा ने द्वारका देखने इच्छा को व्यक्त किया हर साल यह यात्रा जगन्नाथ मंदिर के मुख्य द्वार से शुरू होती है और 9 दिनों तक चलती है. जगत के पालनहार श्री हरि आज अपने भाई और बहन के साथ भ्रमण पर निकले हैं.
श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा उत्सव हजारों हज़ारों वर्ष पुरानी परंपरा है। इसका वर्णन स्कंध पुराण, पद्म पुराण तथा अन्य कई पुराण में मिलता है। शास्त्र में वर्णन है, कि रथारूढ़ भगवान जगन्नाथ के दर्शन मात्र से जीव जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। रथयात्रा एक विशेष उत्सव है, जहां स्वयं भगवान अपने भक्तों की प्रसन्नता के लिए, उनसे प्रेम की आदान प्रदान करने हेतु, मंदिर के बाहर दर्शन देने आते हैं। उनके दिव्य दर्शन पाकर भक्त तृप्त होते हैं और भगवान की शुद्ध प्रेमभक्ति और सेवा के लिए प्रार्थना करते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा
- जगन्नाथ रथ यात्रा एक वार्षिक हिंदू त्योहार है जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र और उनकी छोटी बहन देवी सुभद्रा की पुरी, ओडिशा में उनके घर के मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर दूर गुंडिचा में उनकी मौसी के मंदिर तक की यात्रा का जश्न मनाया जाता है।
- इस त्योहार के पीछे किंवदंती यह है कि एक बार देवी सुभद्रा ने गुंडिचा में अपनी मौसी के घर जाने की इच्छा व्यक्त की।
- उसकी इच्छा पूरी करने हेतु भगवान जगन्नाथ और भगवान बलभद्र ने रथ पर उसके साथ जाने का फैसला किया। अतः इस घटना की याद में देवताओं को इसी तरह यात्रा पर ले जाकर प्रत्येक वर्ष त्योहार के रूप में मनाया जाता है।
- माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में पूर्वी गंग राजवंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा करवाया गया था। हालाँकि कुछ सूत्रों का कहना है कि यह त्योहार प्राचीन काल से ही चलन में था।
- इस त्योहार को रथों के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि देवताओं को लकड़ी के तीन बड़े रथों पर ले जाया जाता है और भक्तगण इन रथों को रस्सियों से खींचा जाता है।
- यह त्योहार आषाढ़ (जून-जुलाई) के महीने के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन से शुरू होता है और नौ दिनों तक चलता है।
- रथों की विशेषताएँ:
- रूपकार सेवक (Rupakar Servitors), जो कि कुशल कारीगर होते हैं, द्वारा रथों पर पक्षियों, पशुओं, पुष्पों और संरक्षक देवताओं की जटिल आकृतियाँ बनाई जाती हैं।
जगन्नाथ पुरी मंदिर:
- जगन्नाथ पुरी मंदिर भारत के ओडिशा राज्य में स्थित सबसे प्रभावशाली स्मारकों में से एक है।
- इस मंदिर को “व्हाइट पैगोडा” के रूप में जाना जाता है और यह चार धाम तीर्थयात्राओं (बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम) का एक हिस्सा है।
- यह कलिंग वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है जो घुमावदार शिखर, जटिल नक्काशी और अलंकृत मूर्तियों की विशेषता के लिये विख्यात है।
- मंदिर परिसर ऊँची दीवारों से घिरा हुआ है तथा इसके चारों द्वार चार मुख्य दिशाओं की ओर खुलते हैं।
- मुख्य मंदिर में चार संरचनाएँ हैं: विमान (गर्भगृह), जगमोहन (सभा कक्ष), नट-मंदिर (त्योहार कक्ष) और भोग-मंडप (प्रसाद कक्ष)।
- जगन्नाथ पुरी मंदिर को ‘यमनिका तीर्थ’ भी कहा जाता है, जहाँ हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पुरी में भगवान जगन्नाथ की उपस्थिति के कारण मृत्यु के देवता ‘यम’ की शक्ति समाप्त हो गई है।