”लालच ने भ्रष्टाचार को कैंसर की तरह विकसित करने में मदद की”-सुप्रीम कोर्ट

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भ्रष्टाचार को लेकर अहम टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि धन कमाने की लालच ने भ्रष्टाचार को कैंसर का रूप दे दिया है और इसे विकसित किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक अदालतों का देश के नागरिकों के प्रति कर्तव्य है कि वे भ्रष्टाचार को कतई बर्दाश्त न करें और अपराध करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें।

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

बता दें कि जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें राज्य के पूर्व प्रधान सचिव अमन सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप में दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पैसे कमाने की लालच में देश के लोगों के लिए सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के संविधान के प्रस्तावना को प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न हो रही है।

पीठ ने व्यक्त की निराशा

पीठ ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा, ‘भ्रष्टाचार एक अस्वस्थता है, जो जीवन के हर क्षेत्र में मौजूद है। यह अब शासन की गतिविधियों तक सीमित नहीं है, अफसोस की बात है कि जिम्मेदार नागरिक कहते हैं कि यह किसी के जीवन का एक तरीका बन गया है।’

नैतिक मूल्यों का हो रहा दोहन- सुप्रीम कोर्ट

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह पूरे समुदाय के लिए शर्म की बात है कि हमारे संविधान निर्माताओं के मन में जो अच्छे आदर्श थे, उनका पालन करने में लगातार गिरावट आ रही है और समाज में नैतिक मूल्यों का दोहन तेजी से बढ़ रहा है। पीठ ने कहा कि भ्रष्टाचार की जड़ का पता लगाने के लिए अधिक बहस की आवश्यकता नहीं है।

अदालत ने कहा कि हिंदू धर्म में सात पापों में से एक माना जाने वाला ‘लालच’ काफी प्रभावशाली रहा है। असल में, पैसे के लिए लालच ने भ्रष्टाचार को कैंसर की तरह विकसित करने में मदद की है।

लालच ने भ्रष्टाचार को कैंसर की तरह बढ़ाया, अदालतें करें कड़ी कार्रवाई

धन के लिए अतृप्त लालच ने भ्रष्टाचार को कैंसर की तरह विकसित करने में मदद की है। संवैधानिक अदालतों का देश के लोगों के प्रति कर्तव्य है कि वे भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहनशीलता दिखाएं और अपराध करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें। ये बात सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कही।

शीर्ष अदालत ने कहा कि धन के समान वितरण को हासिल करने का प्रयास कर भारत के लोगों के लिए सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए संविधान के ‘प्रस्तावना के वादे’ को प्राप्त करने में भ्रष्टाचार एक प्रमुख बाधा है।

जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें राज्य के पूर्व प्रिंसिपल सेक्रेटरी अमन सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप में दर्ज FIR को रद्द कर दिया गया था।

पीठ ने कहा, भ्रष्टाचार एक ऐसी बीमारी है, जिसकी उपस्थिति जीवन के हर क्षेत्र में व्याप्त है। यह अब शासन की गतिविधियों के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है; अफसोस की बात है कि जिम्मेदार नागरिक कहते हैं कि यह उनके जीवन का एक तरीका बन गया है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह पूरे समुदाय के लिए शर्म की बात है कि हमारे संविधान निर्माताओं के मन में जो ऊंचे आदर्श थे, उनका पालन करने में लगातार गिरावट आ रही है और समाज में नैतिक मूल्यों को तेजी से गिराया जा रहा है।

कोर्ट ने किया हिंदू धर्म का उल्लेख

उन्होंने कहा कि यदि भ्रष्टाचारी कानून लागू करने वालों को धोखा देने में सफल हो जाते हैं, तो उनकी सफलता पकड़े जाने के डर को भी खत्म कर देती है। वे इस अभिमान में डूबे रहते हैं कि नियम और कानून विनम्र नश्वर लोगों के लिए हैं न कि उनके लिए। उनके लिए पकड़ा जाना पाप है।

 

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