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Guru Arjan Dev: गुरु अर्जुन देव को जहांगीर ने मृत्युदंड क्यों दिया? - श्रीनारद मीडिया
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Guru Arjan Dev: गुरु अर्जुन देव को जहांगीर ने मृत्युदंड क्यों दिया?

Guru Arjan Dev: गुरु अर्जुन देव को जहांगीर ने मृत्युदंड क्यों दिया?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवें गुरु थे। उन्होंने गुरु परंपरा का पालन किया और कभी भी गलत के सामने झुके नहीं। अपनी शरण में आए लोगों की रक्षा के लिए गुरु अर्जुन देव ने स्वयं को बलिदान कर दिया। लेकिन वह कभी भी मुगल शासक जहांगीर के आगे नहीं झुके। गुरु अर्जुन देव मानव सेवा के पक्षधर रहे। बता दें कि आज ही के दिन यानि की 15 अप्रैल को गुरु अर्जुन देव का जन्म हुआ था। वह सिख धर्म में सच्चे बलिदानी थे। गुरु अर्जुन देव से ही सिख धर्म में बलिदान की परंपरा की शुरूआत हुई थी।

जन्म और शिक्षा

सिखों के पांचवे गुरु, गुरु अर्जुन देव का जन्म पंजाब के अमृतसर में 15 अप्रैल 1563 को हुआ था। उनके पिता का नाम गुरु रामदास और माता का नाम बीवी भानी था। उनके पिता गुरु रामदास सिखों के चौथे गुरु थे। वहीं अर्जुन देव का बचपन सिखों के तीसरे गुरु अमरदास की देखरेख में बीता था। गुरु अमरदास ने ही गुरु अर्जुन देव को गुरमुखी शिक्षा दी थी। साल 1579 गुरु अर्जुन देव का विवाह माता गंगा के साथ हुआ। गुरु अर्जुन देव के बेटे हरगोविंद सिंह सिखों के छठवें गुरु बने थे।

स्वर्ण मंदिर की नींव 

साल 1581 में जब गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवे गुरु बने तो उन्होंने ही अमृतसर में हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी। जिसको आज हम सभी स्वर्ण मंदिर या गोल्डेन टेम्पल के नाम से जानते हैं। कहा जाता है कि स्वर्ण मंदिर का नक्शा स्वयं अर्जुन देव ने ही बनाया था।

गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन

गुरु अर्जुन देव ने भाई गुरुदास के सहयोग से गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन किया था। इसके अलावा उन्होंने रागों के आधार पर गुरु वाणियों का वर्गीकरण भी किया। आपको बता दें कि पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब में खुद अर्जुन देव के हजारों शब्द हैं। इस पवित्र ग्रंथ अर्जुन देव के अलावा बाबा फरीद, भक्त कबीर, संत नामदेव और संत रविदास जैसे अन्य संत-महात्माओं के भी शब्द हैं।

बलिदान गाथा

साल 1605 में मुगल बादशाह अकबर की मौत के बाद उसका बेटा जगांहीर मुगल सल्तनत का अगला शासक बना। जहांगीर के राज्य संभालते ही गुरु अर्जुन देव के विरोधी सक्रिय हो गए और मुगल शासक जहांगीर को उनके बारे में भड़काने लगे। इसी दौरान शहजादा अमीर खुसरो ने अपने पिता यानी की मुगल बादशाह जहांगीर के खिलाफ बगावत कर दी। बगावत देख जहांगीर अपने बेटे के पीछे पड़ गया। तभी शहजादे अमीर खुसरो ने अपने पिता जहांगीर से अपनी जान बचा कर पंजाब भाग गया। इसके बाद वह तरनतारन गुरु साहिब के पास पहुंचा। इस दौरान गुरु अर्जुन देव ने मुगल शहजादे खुसरो का स्वागत कर उसको अपने यहां शरण दी।

जब इस बाद की जानकारी जहांगीर को हुई तो वह गुरु अर्जुन देव से खफा हो गया। कहा जाता है कि उस दौर में गुरु अर्जुन देव की लोकप्रियता हिन्दू, मुसलमान और सिखों में समान रूप से हो गयी थी। वहीं जहांगीर अर्जुन देव की बढ़ती लोकप्रियता से खौफ खाने लगा था। बता दें कि गुरु अर्जुन देव को लोग ‘हरमन प्यारा’ कहते थे।

जहांगीर ने शहजादे खुसरो को शरण देने के लिए गुरु अर्जुन देव को गिरफ्तार करने के आदेश दे दिये। वहीं गुरु अर्जुन देव ने अपने पुत्र बाल हरगोविंद साहिब को गद्दी सौंप कर खुद लाहौर पहुंच गए। इस दौरान मुगल बादशाह जहांगीर ने उनपर बगावत करने का आरोप लगाया और उन्हें तमाम यातनाएं देने के बाद मार देने का आदेश दे दिया।

पांच दिन तक दी गईं यातनाएं

मुगल बादशाह जहांगीर के आदेश के बाद गुरु अर्जुन देव को गिरफ्तार कर लिया गया। इस दौरान उनको 5 दिनों तक तरह-तरह की यातनाएं दी गईं। लेकिन वह सबकुछ शांत होकर सहते रहे। इसके बाद ज्येष्ठ माह की चतुर्थी तिथि यानी की 30 मई 1606 को अर्जुन देव को लाहौर में भीषण गर्मी के दौरन गर्म तवे पर बिठाया। इसके ऊपर गर्म रेत और गर्म तेल डाला गया। इतनी यातनीएं सहने के बाद अर्जुन देव बेहोश हो गए।

तब मुगल सैनिकों ने उनके शरीर को रावी नदी की धारा में बहा दिया। अर्जुन देव के स्मरण में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब का भी निर्माण कराया गया। हालांकि यह गुरुद्वारा वर्तमान में पाकिस्तान में हैं। बता दें कि गुरु अर्जुन देव ने अपना पूरा जीवन मानव सेवा को समर्पित कर दिया। वह दया और करुणा के सागर थे और सभी वर्ग और धर्म का सम्मान करते थे।

 

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