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गुरु गोबिंद सिंह ने तख्त श्री दमदमा साहिब में संपूर्ण कराया था श्री गुरु ग्रंथ साहिब.

गुरु गोबिंद सिंह ने तख्त श्री दमदमा साहिब में संपूर्ण कराया था श्री गुरु ग्रंथ साहिब.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

तख्त श्री दममदा साहिब में श्री गुरु गोबिंद सिंह का गुरुपर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह वह ऐतिहासिक जगह है जहां पर सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब को संपूर्ण किया था। श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने भाई मनी सिंह से श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पावन स्वरूप में नौंवे गुरु तेग बहादुर  की वाणी दर्ज कराई। इस ग्रंथ साहिब को दमदमा स्वरूप के नाम के तौर भी जाना जाता है।

गुरु गोबिंद सिंह आनंदपुर साहिब के चमकौर साहिब तथा मुक्तसर साहिब के ऐतिहासिक युद्ध के बाद तलवंडी साबो की धरती पर पहुंचे थे। यहां पहुंच कर गुरु गोविंद सिंह जी ने जिस स्थान पर अपना कमर कसा खोलकर दम लिया। वह जगह तख्त श्री दमदमा साहिब के नाम से प्रसिद्ध हो गई । यहां पर गुरु साहिब नौ महीने से भी ज्यादा समय तक रुके थे।

उन्होंने यहां पर ही श्री गुरु ग्रंथ साहिब संपूर्ण कराया और इसको तख्त का नाम दिया गया। बाद में अन्य सरूप तैयार करने की जिम्मेदारी बाबा दीप सिंह को सौंपी गई। उनको ग्रंथ साहिब सौंप दियाग या उनके द्वारा कॉपी करके चार गुरु ग्रंथ साहिब लिखे गए।

उस समय की गुरु गोबिंद सिंह द्वारा तैयार की गई मुहर भी तख्त साहिब पर मौजूद है। अब इसको तख्त श्री दमदमा साहिब के नाम से जाना जाता है। पूरे देश में सिखों के कुल पांच तख्त हैं। तख्त श्री दमदमा साहिब चौथा तख्त है। तख्त श्री दमदमा साहिब में ऐतिहासिक वस्तुओं को भी संगत के दर्शन के लिए प्रदर्शित किया हुआ है। इनमें गुरु तेग बहादुर जी की तलवार, गुरु गोबिंद सिंह की निशाने वाली बंदूक, बाबा दीप सिंह जी का खंडा साहिब।

गुरुद्वारा लिखनसर साहिब

गुरु ग्रंथ साहिब को लिखते समय जो कलम घिस जाती थी,उसको दोबारा से घड़ा नहीं जाता था। बल्कि नई कलम से लिखाई शुरु की जाती थी और पुराणी कलम को संभाल कर रख लिया जाता था। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की लिखाई संपूर्ण होने पर श्री गुरु गोबिंद सिंह ने सरोवर में उन कलमों व बची हुई सियाही को जलप्रवाह कर दिया और वरदान दिया कि दमदमा साहिब गुरु की काशी बनेगा।

यहां पर प्रबुद्ध विद्धान व लेखक पैदा होंगे। अब उस सरोवर वाली जगह पर गुरुद्वारा लिखनसर साहिब स्थापित है। यहां पर आज भी लोग अपने बच्चों से अक्षर लिखवाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां पर लिखाई करने से बच्चों की शिक्षामें सुधार आता है।

भरोसे की परीक्षा

एक बार गुरु गोबिंद सिंह जी को किसी ने बंदूक भेंट की तो रॉय डल्ल को गुरु साहिब ने कहा कि बंदूक का निशाना चैक करना है। जरा सामने आओ तो वे डर गए। फिर उन्होंने अपने तबेले में काम करने वाले बाप-बेटा बीर सिंह व धीर सिंह को संदेश पहुंचाया। जब उनको पता चला कि गुरु साहिब ने निशाना लगा कर देखना है तो वे दोनों आपस में लड़ने लगे कि पहले मुझ पर निशाना लगाएं। अब उस जगह पर गुरुद्वारा बीर सिंह धीर सिंह स्थापित किया गया है।

ऐतिहासिक शीशे का इतिहास

इतिहासकारों मुताबिक जब 10वें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी दमदमा साहिब थे तो यहां दिल्ली की संगत ने गुरु जी को शीशा भेंट किया । इस शीशे को लेकर गुरु साहिब ने वर दिया कि जो भी इस शीशे को देखेगा उसका लकवा दूर होगा। तख्त साहिब के हैड ग्रंथी गुरजंट सिंह ने बताया कि हर एक बीमार व्यक्ति को 5 मिनट शीशे आगे बैठकर लगातार 3 दिन चने चबाने से उनको लकवे की बीमारी से छुटकारा मिलता है।

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