आक्रांताओं के आक्रमणों से भी नहीं खंडित हुई ज्ञानवापी की आस्था,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
वाराणसी के काशी विश्वनाथ परिसर में स्थित ज्ञानवापी में अवशेष, दीवारों के हिस्से और कई तरह के साक्ष्य यहां मंदिर होने का सच बयान करते हैं। महत्वपूर्ण दस्तावेज ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स प्रिसेप के खाकों और चित्रों से मिलते हैं। इसे लेकर अन्य इतिहासकारों ने काफी काम किया है। उनके चित्रों में ज्ञानवापी मंदिर के तौर पर चित्रंकित है।
इतिहासकारों और शोधकर्ताओं ने यहां तक कहा कि आक्रांता मंदिरों के ही सुंदर ढांचों व अवशेषों पर गुंबद बनाकर उसे मस्जिद का रूप दे देते थे। बारहवीं शताब्दी से मंदिरों के साथ-साथ आस्था पर कई बार चोट की गई। इसका प्रमाण है कि कुतुबुद्दीन ऐबक को भी तीन वर्षो में दो बार वाराणसी पर आक्रमण करना पड़ा।
केदार नाथ सुकुल ने ‘वाराणसी डाउन द एजेज’ में लिखा है कि 1194 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने वाराणसी पर आक्रमण किया और मंदिरों को ध्वस्त कर दिया। मुगल इतिहासकारों ने स्वयं इसके बारे में लिखा है कि एक हजार मंदिरों को तोड़कर और शहर को लूटकर लूट का सामान 1400 ऊंटों पर लादकर ले जाया गया था। इसके बाद भी जब काशी अपनी बेड़ियों को झटककर फिर से मजबूती से उठ खड़ी होने के प्रयास में सफल हो गई तो 1197 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने फिर से आक्रमण किया और फिर वही तबाही का मंजर दिखाया।
बारहवीं शताब्दी में कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद तेरहवीं शताब्दी में रजिया सुल्तान और फिर दिल्ली के फिरोजशाह तुगलक, जौनपुर के मोहम्मद शाह शर्की और दिल्ली के सिकंदर लोदी ने 14वीं और 15वीं शताब्दी में काशी के मंदिरों को बार-बार तुड़वाया। 1448 ई. में मोहम्मद शाह तुगलक ने आसपास के मंदिरों को गिराकर रजिया मस्जिद को विस्तार दिया। बाद में 1585 में नारायण भट्ट ने अकबर के दरबारी टोडरमल के सहयोग से मंदिर बनवाया। टोडरमल के पुत्र जौनपुर क्षेत्र में बादशाह के लिए शासन कर रहे थे। टोडरमल ने मंदिर के पुनर्निमाण का काम शुरू करवाया। इस दौरान भव्य मंदिर का काम शुरू हुआ और एक गर्भगृह के साथ किनारों पर आठ मंडप बनाए गए।
औरंगजेब ने 1669 में मंदिर ध्वस्त करवाकर मस्जिद बनाने के आदेश दिए। हालांकि इतिहासकारों का कहना है कि शिवाजी को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने पत्र लिखकर औरंगजेब को चेतावनी दी कि वह वाराणसी में मंदिरों को तुड़वाना बंद करें। औरंगजेब के आदेश पर काशी विश्वनाथ के एक हिस्से को ध्वस्त करके यहां मस्जिद बना दी गई।
उधर, ज्ञानवापी की इस मस्जिद के अस्तित्व पर 19वीं शताब्दी के अंत में ‘सेक्रेड सिटी आफ हिंदूज’ के लेखक एमए शेयरिंग ने सवाल उठाया है कि आदि विश्वेश्वर के पूर्वी हिस्से में स्थित मस्जिद काफी ऊंचाई पर है और बहुत पुरानी सामग्री से बनी है। मस्जिद के स्तंभों का वास्तुशिल्प गुप्त काल या उससे भी पहले का है।
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