आधी आबादी को मिले आर्थिक आजादी,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हाल में विश्व बैंक ने महिला कारोबार और कानून-2021 रिपोर्ट जारी किया है, जिसके मुताबिक दुनिया में केवल 10 देशों में ही महिलाओं को पूर्ण अधिकार मिला है, जबकि भारत समेत सर्वेक्षण में शामिल शेष 180 देशों में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार और कानूनी सुरक्षा पूर्ण रूप से अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं। विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में भारत 190 देशों की सूची में 123वें स्थान पर है। इसमें भारत के संदर्भ में कहा गया है कि कुछ मामलों में भारत महिलाओं को पूर्ण अधिकार तो देता है, लेकिन समान वेतन, मातृत्व, उद्यमिता, संपत्ति और पेंशन जैसे मामलों में लैंगिक भेदभाव को खत्म करने के लिए आगे कड़े प्रयत्न करने होंगे।

यह रिपोर्ट दुनिया से महिलाओं को पर्याप्त आíथक स्वतंत्रता देने तथा लैंगिक भेदभाव के न्यूनीकरण की अपील करती दिखती है। यह रिपोर्ट इस बात का भी संकेतक है कि आजादी के सात दशक बाद भी देश में विभिन्न क्षेत्रकों में लैंगिक समानता का भाव स्थापित नहीं हो पाया है। कहीं न कहीं इसकी वजह समाज की रूढ़िवादी और पुरुषवादी मानसिकता भी रही है। सरकारें अपने स्तर से नीतियां तो बनाती हैं, लेकिन जब तक देश में महिलाओं के प्रति सोच नहीं बदलेगी, तब तक यह परिदृश्य भी बदलना मुमकिन नहीं होगा।

महिलाओं को भी आर्थिक स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, क्योंकि यह उनके भीतर आत्मविश्वास और स्वाभिमान का भाव जगाएगा। आíथक गतिविधियों में महिलाओं की हिस्सेदारी जितनी अधिक बढ़ेगी देश की अर्थव्यवस्था उतनी ही मजबूत होगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का एक अध्ययन बताता है कि अगर भारत में महिलाओं को श्रमबल में बराबरी हो जाए तो सकल घरेलू उत्पाद में 27 फीसद तक का इजाफा हो सकता है। हालांकि इस तथ्य को जानने के बावजूद वस्तुस्थिति कुछ और ही तस्वीर बयां करती है।

दरअसल लिंक्डइन अपॉच्यरुनिटी सर्वे-2021 से यह बात सामने आई है कि देश की 37 फीसद महिलाएं मानती हैं कि उन्हें पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है, जबकि 22 फीसद महिलाओं का कहना है कि उन्हें पुरुषों की तुलना में उतनी वरीयता नहीं दी जाती है। जाहिर है महिला सशक्तीकरण के लिए इस तरह के आíथक भेदभावों को खत्म करना होगा। समाज में महिलाओं की पेशेवर भूमिका का सम्मान होना चाहिए। अपने जीवनसाथी की वित्तीय जिम्मेदारी को बांटने में उनकी भूमिका अहम है।बहरहाल स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश में महिलाओं की दशा में बहुत सुधार आया है। महिलाओं के अधिकारों के प्रति हमारा समाज अब उतना रूढ़ नहीं रहा, जितना इस शताब्दी से पूर्व था। जरूरी है कि समाज उनकी सफलता का जश्न मनाए और उन्हें आगे बढ़ने और पल्लवित होने के अवसर सृजित करने पर जोर दे।

जब हम घर से बाहर निकल कर सफल हुई महिलाओं के लिए खुश होते हैं, तो हमें उन महिलाओं की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, जो अपनी मर्जी से घर पर रहना पसंद करती हैं। भारत के विकास में उन महिलाओं का भी अहम योगदान है। यह विचार केंद्रीय महिला एवं बाल विकास व कपड़ा मंत्री स्मृति ज़ुबिन ईरानी ने शुक्रवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘शुक्रवार संवाद’ में व्यक्त किए। इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी विशेष तौर पर उपस्थित थे।

‘लोकतंत्र में स्त्री शक्ति’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जब भी हम लोकतंत्र में स्त्री शक्ति की बात करते हैं, तो सिर्फ संसद में सेवा दे रही महिलाओं की बात होती है। लेकिन हम समाज के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही उन महिलाओं को भूल जाते हैं, जिनकी वजह से भारत ने एक मुकाम हासिल किया है।

मुश्किलों को एक बाधा के रूप में नहीं देखा: ईरानी

स्मृति ईरानी ने कहा कि मेरी परवरिश गुरुग्राम में हुई है। उस वक्त अगर मैं कहती कि एक तबेले में पैदा हुई लड़की गुरुग्राम से दिल्ली तक का 20 किलोमीटर का फासला 40 साल में तय कर लेगी, तो शायद लोग मुझ पर हंसते। लेकिन मुझे पूरा भरोसा था कि मेरी सोच, जज़्बे और आकांक्षा को एक शहर की सीमा नहीं रोक सकती। उन्होंने कहा कि मैंने कभी रास्ते में आने वाली मुश्किलों को एक बाधा के रूप में नहीं देखा, मैंने इसे समाधान खोजने के लिए मिलने वाले एक रचनात्मक अवसर के रूप में देखा।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि समानता का मतलब है कि हर महिला को ये अधिकार मिले कि वो अपना जीवन कैसे जीना चाहती है। वो होममेकर बनना चाहती है या ऑफिस में काम करना चाहती है। उन्होंने कहा कि भारतीय राजनीति में एक महिला सरपंच का भी उतना ही महत्व है, जितना एक महिला मुख्यमंत्री का है।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अपने विचार व्यक्त करते हुए स्मृति ईरानी ने कहा कि सिर्फ एक ही दिन महिलाओं के सम्मान का कोई औचित्य नहीं है। एक महिला का संघर्ष सिर्फ एक दिन तक ही सीमित नहीं होता। उसे हर दिन नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए महिलाएं हर दिन सम्मान पाने की अधिकारी हैं।

स्त्री शक्ति का ही रूप है: प्रो द्विवेदी 

इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि स्त्री, शक्ति का ही रूप है। पुरुष का संपूर्ण जीवन नारी पर आधारित है। कोई भी पुरुष अगर सफल है, तो उस सफलता का आधार नारी ही है। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि नई शिक्षा नीति में सरकार का पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित है कि लड़कियां पीछे ना रहें और उन्हें शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हों।

कार्यक्रम का संचालन प्रो. संगीता प्रणवेंद्र ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन संस्थान की अपर महानिदेशक (प्रशिक्षण) ममता वर्मा ने किया। कार्यक्रम में डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह, डीन (छात्र कल्याण) प्रो. प्रमोद कुमार, समस्त प्राध्यापक, अधिकारी एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया।

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