क्या वाकई में मिलावट हुई है, जांच किससे द्वारा और क्यों कराई गई?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत में इन दिनों एक नई तरह की राजनीति चल पड़ी है। प्रसाद पॉलिटिक्स, इसके बारे में आपने भी पढ़ा या सुना जरूर होगा। भारत के सबसे प्रसिद्ध आंध्र प्रदेश में स्थित तिरुपति मंदिर के प्रसाद को लेकर जो भी ये बात सुन रहा है कि तिरुपति के प्रसाद में जानवरों की चर्बी मिलाई जा रही थी। वो इसे सुनकर आक्रोश में है। सबके मन में सवाल यही है कि इतने बड़े मंदिर में ऐसा महापाप कैसे हो सकता है।
वो भी उस मंदिर में जो भारत के सबसे प्रसिद्ध और अमीर मंदिरों में से एक है। जहां हर दिन करोड़ो का चढ़ावा आता है और इतने पैसे आते हैं कि बेस्ट से बेस्ट क्वालिटी की चीजों से प्रसाद बनाया जाए। फिर ऐसी खबर आती है। मामला संवेदनशील है इसलिए हमने अपनी तरफ से जितनी भी जानकारियों हो सकती हैं उन्हें शामिल करने की कोशिश की है। आप धीरज के साथ जानिए। क्या वाकई में मिलावट की बात सही है, जांच किससे कराई गई, क्यों कराई गई? इसे लेकर भी सवाल है।
सबसे धनी मंदिरों में से एक
तिरुमाला मंदिर देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर है, जिसे विष्णु का अवतार माना जाता है। मान्यता है कि जब भगवान वेकेंटेश्वर पद्मावती से अपना विवाह रचा रहे थे तो उन्हें पैसे की कमी पड़ गई। इसलिए वो धन के देवता कुबेर के पास गए और उनसे एक करोड़ रुपए और एक करोड़ सोने की गिन्नियां मांगी। मान्यतां है कि भगवान वेंकटेश्वर पर अब भी वो कर्ज है और श्रद्धालु इस कर्जा का ब्याज चुकाने में उनकी मदद करने के लिए दान देते हैं।
ये सबसे धनी मंदिरों में से भी है। मंदिर के पास करीब 8 से 9 हजार किलो सोना है। 2019 के आंकड़ों के मुताबिक मंदिर के 12 हज़ार करोड़ रुपये बैंकों में जमा थे। मंदिर के नाम देश के कई राज्यों में जमीनें, मकान और प्लॉट हैं।
घी पर उठ रहे सवाल
पिछले 50 साल से केएमएफ रियायती दरों पर मंदिर कमेटी को देसी घी सप्लाई करता रहा है।
जुलाई 2023 में कंपनी ने कम रेट में सप्लाई देने से इनकार कर दिया।
तत्कालीन जगन मोहन रेड्डी सरकार ने 5 फर्म को घी सप्लाई की जिम्मेदारी दे दी।
19 अगस्त को दोबारा केएमएफ को सप्लाई का काम सौंप दिया गया।
केएमएफ , नंदिनी ब्रांड का घी सप्लाई करता है।
अगस्त 2023 में केएमएफ के अध्यक्ष भीमा नाइक ने आरोप लगाया था कि मंदिर ट्रस्ट कम गुणवत्ता वाला घी खरीद रहा है।
ट्रस्ट बोर्ड के तत्कालीन अधिकारी एवी धर्म रेड्डी ने नाइक के आरोपों को खारिज कर दिया था।
300 साल पुराना किचन, बनते हैं रोज साढ़े तीन लाख लड्डू
हल्के पीले भूरे रंग के लड्डू जो छूने या दबाने पर बिखड़ने लगते हैं। आप तिरुपति जाएंगे तो लड्डू काउंटर पर आपको कई ऐसे लोग मिलेंगे जो अपनी जरूरत से ज्यादा लड्डू खरीदते हैं। कुछ लौट करके रिश्तेदारों को प्रसाद देने के लिए और कुछ उन लोगों के लिए जिन्हें लड्डू स्वाद के लिए पसंद है। तिरुपति मंदिर का किचन जिसमें प्रसाद बनता है 300 साल पुराना है। इतने भक्त रोजाना आते हैं कि करीब साढ़े तीन लाख लड्डू रोज इसकी किचन में बनते हैं।
कई भक्त ऑनलाइन भी प्रसाद ऑर्डर करते हैं। तिरुमाला ट्रस्ट हर साल प्रसादम से करीब 500 करोड़ रुपए कमाता है। लड्डू के लिए भक्तों में इतनी मारा मारी रहती है कि सितंबर 2024 की शुरुआत में लड्डू पाने के लिए टोकन दिखाने की व्यवस्था की गई। दर्शन करने आने वाले सभी लोगों को एक लड्डू फ्री में दिया जाता है। अगर और लड्डू चाहिए तो 50 रुपए चुकाने होंगे। जिन लोगों ने दर्शन नहीं किए वो आधार कार्ड दिखाकर लड्डू ले सकते हैं। आप समझ सकते हैं कि प्रसाद के लड्डू को लेकर कितनी आस्था है।
रिपोर्ट पर सवाल
1. 17 जुलाई को रिपोर्ट आई थी, लेकिन अभी तक आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
2. रिपोर्ट के लिए सैंपल किस जगह से लिया गया और कब ?
3. सैंपल उसी घी का था, जिससे लड्डू बने, इसे स्थापित कैसे किया गया? क्या कोई पंचनामा हुआ था? क्या कोई वीडियो साक्ष्य है?
4. रिपोर्ट को लेकर दावा किया जा रहा है कि उसे CALF ने बनाया, लेकिन रिपोर्ट में ये चीज़ लिखी क्यों नहीं है?
प्रसाद बनाने के लिए जानवरों की चर्बी का दावा कितना सच?
हम अपनी तरफ से कोई दावा नहीं कर रहे बल्कि मंदिर प्रसाशन ने ऐसा खुद कहा है। तमिलनाडु की डायरी से घी डिलीवर किया गया। उन्होंने 10 कंटेनर तिरुपति में डिलीवर किया। इनमें से चार को मंदिर द्वारा रिजेक्ट कर दिया गया। इसकी वजह क्वालिटी टेस्ट में फेल होने को बताया गया। जिसके बाद इन टेस्ट में फेल हुए सैंपल को लैब में भेजा गया। वही लैब रिपोर्ट अब वायरल हो रहा है।
मतलब, मिलावटी घी का प्रसाद बनाने में इस्तेमाल हुआ ही नहीं है। इसे तो पहले ही रिजेक्ट कर दिया गया था। अब दूसरे सवाल पर आते हैं कि क्या जगन मोहन सरकार की इसमें कोई भूमिका है? एक सुचारू जांच से ही इसका पता लगाया जा सकता है। लेकिन चीजें 2 और 2 चार सरीखी नहीं है। जगन सरकार ने सप्लायर को एक कॉन्ट्रैक्ट दिया था। लेकिन घी शिपेंट इस साल के जुलाई यानी चंद्रबाबू नायडू की सरकार के आने के बाद डिलीवर किए गए।
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