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क्या चंद्रयान ने स्पेस-कूटनीति में भारत का कद बढ़ाया है? - श्रीनारद मीडिया

क्या चंद्रयान ने स्पेस-कूटनीति में भारत का कद बढ़ाया है?

क्या चंद्रयान ने स्पेस-कूटनीति में भारत का कद बढ़ाया है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों में प्रतिष्ठा का बड़ा महत्व होता है। स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत की महत्वाकांक्षाएं अब एक नए दौर में प्रवेश कर चुकी हैं। चंद्रयान की परफेक्ट-लैंडिंग ने यह सम्भव बनाया। इसके रणनीतिक महत्व को समझने के लिए पहले यह जान लें कि स्पेस की दुनिया की मौजूदा स्थिति क्या है।

20 अगस्त को, यानी भारत की स्वर्णिम उपलब्धि के मात्र तीन दिन पूर्व रूस का ऐसा ही एक मून-मिशन लूना-25 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने में विफल रहा था, जबकि भारत के विक्रम ने वहां सफलतापूर्वक लैंड कर लिया। चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव दुर्गम है और अंतरिक्ष-वैज्ञानिकों की दृष्टि में उसका बड़ा महत्व है, क्योंकि माना जाता है कि वहां बर्फीले पानी का भंडार है। 47 वर्ष बाद मून-लैंडिंग में रूस की नाकामी को वैश्विक रूप से भारत की सफलता के परिप्रेक्ष्य में ही तौला जाएगा।

मई 2023 में जापान की एक स्टार्टअप कम्पनी का मून-मिशन भी नाकाम रहा था। अब जापान एयरोस्पेस एजेंसी की कम्पनी जाक्सा इसरो के साथ सहभागिता कर सकती है। भारत का चंद्रयान मिशन एक ऐसे समय में सफल हुआ है, जब वैश्विक स्तर पर स्पेस-टेक्नोलॉजी के व्यावसायिक उपयोग की नई सम्भावनाएं बन रही हैं और अंतरिक्ष-अन्वेषण सम्बंधी बड़े विचारों की योजनाएं बनाई जा रही हैं।

इसरो इस बड़े खेल का पुराना खिलाड़ी है, लेकिन वह सीमित बजट में काम करता है। 1994 के बाद से भारत के पीएसएलवी सैटेलाइट लॉन्चर पूरी दुनिया में लोकप्रिय हुए हैं। भारत और चीन ने इस क्षेत्र में एमओयू साइन किए थे, लेकिन गलवान के बाद मामला खटाई में पड़ गया। पर भारत ने दूसरे देशों से सहभागिता जारी रखी है।

22 जून को नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के समापन पर भारत और अमेरिका ने अंतरिक्ष-सहयोग के सभी क्षेत्रों में नए फ्रंटियर खोलने पर प्रतिबद्धता जताई थी। दोनों देशों के संयुक्त बयान में कहा गया था कि इसरो और नासा इस साल के अंत में ह्यूमन स्पेसफ्लाइट को-ऑपरेशन के लिए कूटनीतिक फ्रैमवर्क बना रहे हैं।

नासा भारतीय एस्ट्रोनॉट्स को उन्नत प्रशिक्षण देगा। दोनों देश अगले साल संयुक्त रूप से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की भी स्थापना करेंगे। अंतरिक्ष-सहभागिता में भारत और अमेरिका एक-दूसरे के इतने निकट आ रहे हैं कि 2024 में एक नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार सैटेलाइट (एनआईएसएआर) को भारत से लॉन्च किया जाएगा। नवगठित भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 के चलते अंतरिक्ष-प्रौद्योगिकी में भारत और अमेरिका की सहभागिता बहुत आकर्षक बन गई है।

वैश्विक स्पेस इंडस्ट्री में सबसे बड़ा जो परिवर्तन आ रहा है, वह है निजी निवेश। एलन मस्क स्पेसएक्स के मालिक हैं और वे रीयूज़ेबल रॉकेट्स और अन्य सैटेलाइट टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बड़े काम कर रहे हैं। रूस ने मस्क की कम्पनी का विरोध किया था, क्योंकि यह पाया गया था कि वह अपनी सैटेलाइट्स के माध्यम से यूक्रेन की सेना की मदद कर रही है।

अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस की स्पेस कम्पनी ब्लू ओरिजिन को नासा ने एस्ट्रोनॉट्स को चांद पर ले जाने के लिए 3.4 अरब डॉलर दिए हैं। पिछले छह महीनों में इतनी स्पेस गतिविधियां हुई हैं कि हर सप्ताह पृथ्वी की कक्षा में 20 सैटेलाइट्स स्थापित की जा रही हैं। स्पेस इंडस्ट्री अब करोड़ों डॉलर का कारोबार बन चुकी है और इसमें स्पेस के शस्त्रीकरण का आयाम भी जुड़ा हुआ है।

भारत की नई नीति स्पेस में निजी निवेश की अनुमति देकर नए युग का सूत्रपात करने वाली है। भारत के कई आलोचक चंद्रयान से इतने प्रभावित नहीं हैं, जितने स्पेस-उद्योग के व्यवसायीकरण के प्रति भारत की ललक से हैं। उनका कहना है कि भारत इस क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि भारत ने हॉलीवुड की फिल्मों से भी कम लागत में मून-लैंडिंग की है।

भारत अभी तक 34 देशों के लिए 431 सैटेलाइट्स लॉन्च कर चुका है। नई दिल्ली स्थित चीनी मामलों के विशेषज्ञ श्रीकांत कोंडापल्ली ने हाल ही में लिखा था कि स्पेस में भारत और अमेरिका की सहभागिता से चीन नाराज है। चंद्रयान की सफलता से कुछ ही समय पूर्व भारत ने अमेरिका के साथ अर्तेमीस करार पर दस्तखत किए थे।

चीन को लगता है अमेरिका जल्द ही चांद पर खनन सहित मंगल के एक्सप्लोरेशन में व्यस्त हो सकता है। आने वाले सालों में आउटर-स्पेस का असैन्यीकरण एक बड़ा सवाल बनने जा रहा है और उसमें भी अमेरिका और चीन की तकरार होगी।

चीन और रूस ने चीन के इंटरनेशनल लूनर रिसर्च स्टेशन पर संयुक्त रूप से काम करने का निर्णय लिया है। भू-राजनीति के क्षेत्र में चीन भारत को अपने से दोयम समझता है, लेकिन चंद्रयान से चीन का दम्भ थोड़ा टूटेगा, भले ही वो अपनी विदेश नीति नहीं बदले।

भारत के चंद्रयान मिशन ने स्पेस-डिप्लोमेसी में भारत का कद बढ़ा दिया है। चांद पर विक्रम की लैंडिंग भले ही सॉफ्ट पॉवर मालूम होती है, पर वास्तव में वह हार्ड पॉवर का मुजाहिरा है।

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