क्या मोबाइल कुठां,भय,संत्रास का पर्याय बन गया है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आज के वर्तमान समय में जहां विज्ञान और डिजिटल तकनीक ने इतना विकास कर लिया है कि वह पूरी तरह से विनाश में परिवर्तित हो गया है और यही कारण है कि आज पारिवारिक रिश्तों में दिन प्रतिदिन दूरियां बढ़ती जा रही हैं। पहले जिस तरह से रिश्तो में वह प्यार, मिठास, लगाव तथा अटूट संबंध दिखाई देता था आज उसका पूर्णत: अभाव हो गया है। आज का व्यक्ति मोबाइल से इतना जुड़ चुका है कि उसे कुछ और दिखाई ही नहीं दे रहा है,
मानो ऐसा लगता है कि इस मोबाइल ने पारिवारिक रिश्तों को छिन्न-भिन्न करने के उद्देश्य से अपने आप में समाहित कर रखा है। आज पर्याप्त समय होने के बावजूद कोई भी व्यक्ति किसी से बात करना नहीं चाहता, किसी के साथ समय बिताना नहीं चाहता किंतु वह व्यक्ति अपना समय मोबाइल के लिए अवश्य आरक्षित रखता है। आज का व्यक्ति एक अजीब तरह की बेचैनी, अशांत मनोवृति तथा समयाभाव ग्रस्त दिखाई दे रहा है।
पहले एक व्यक्ति कमाता था और उसके परिवार के दस लोग खाते थे और बड़े ही प्रेम मोहब्बत के साथ अपना जीवन निर्वाह करते थे किंतु आज की स्थिति ऐसी है की एक परिवार में यदि दस लोग हैं तो दसों कमा रहे हैं किंतु अशांति पूरी तरह से छाई हुई है और कोई किसी से बात करना नहीं चाहता ऐसा लगता है मानो मनुष्य ने मशीनी रूप धारण कर लिया है जो अपने दऐनन्दइन क्रियाकलापों को बस किए जा रहा है, किए जा रहा है। वह अपने दुख तकलीफ, अपनी व्यक्तिगत पीड़ा, अपने मनोभावों तथा विचारों को अपने पारिवारिक जनों से न बताकर, मोबाइल में ढूंढने का प्रयास करता है किंतु वहां भी उसे शांति नहीं मिलती और इस तरह वह अपने जीवन से निराश, हताश तथा अशांत मनोभावों के साथ अपने परिवार के लोगों से पृथक, दूरस्थ तथा एकांतिक हो जाता है।
ऐसी परिस्थिति मैं इस मोबाइल को अपना सब कुछ न मानकर इसका कम से कम उपयोग करना चाहिए। आज के वर्तमान समय की सबसे बड़ी चुनौती टुटते और बिखरते पारिवारिक रिश्तों को बचाना है साथी सभी लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए एकजुट होकर, प्रेम, एकता, त्याग, बलिदान तथा पारिवारिक समन्वय का मार्ग अपना कर चलना होगा। मैं जानता हूं कि अतीत को वर्तमान में नहीं लाया जा सकता किंतु वर्तमान की पृष्ठभूमि अतीत के गर्भ से ही उत्पन्न होती है। और कोई भी वर्तमान अतीत के मार्गदर्शन के बिना खड़ा नहीं हो सकता और इसीलिए हमें अपने अतीत से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।
अतः निसंदेह कहां जा सकता है कि मोबाइल का दुष्परिणाम व्यक्ति के व्यक्तित्व, उसके चरित्र तथा समाज के ऊपर विशेष रूप से दिखाई पड़ रहा है जिसे नियंत्रित करना हम सब का मूल कर्तव्य है। इस मोबाइल का दुष्प्रभाव विशेष रूप से बच्चों पर दिखाई पड़ रहा है। आज के बच्चे आंख खोलते ही अपने आप को मोबाइल के निकट पाते हैं और इसके जिम्मेदार माता-पिता तथा परिवार के अन्य लोग हैं। अतः यदि परिवार मे प्रेम, एकता, सुख तथा खुशहाली का वातावरण बनाना है तो इन विषयों पर अवश्य विचार करना चाहिए।
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