क्या बिहार में परिमार्जन एक विचारणीय प्रश्न बन गया है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार में अंतिम खेसराबार रकबा का सबसे विश्वसनीय आंकड़ा 1917 का है, जिसे हम सीएस खतियान के रूप में जानते हैं। अर्थात, खेसराबार सर्वेक्षण करने के लिए सरकार द्वारा पिछले 107 वर्षों में किए गए हर प्रयास कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण विफल हो गए । इन 107 वर्षों में किए गए प्रयास सिर्फ कागज़ों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि इसके लिए बड़ी रकम भी खर्च की गई।
2011 में पारित न्यू सर्वे एक्ट का भी अंतिम उद्देश्य खेसराबार करना ही था, इसके अलावा कुछ नहीं। इस एक्ट को लागू करने के लिए हाल ही में 10,000 पदों पर मेगा बहाली की गई, और 2011 से अब तक हजारों लोग पहले से ही इसमें बहाल हो चुके हैं। कुछ लोगों ने तो अपने 10 साल के कैरियर का लाभ इसी प्रक्रिया में उठाया, लेकिन नतीजा शून्य ही रहा।
अब यह कार्य अंचलाधिकारियों के माथे डाल दिया गया है, क्योंकि जैसा कि कई जिलाधिकारी और प्रशासन के उच्च पदस्थ अधिकारी कहते हैं— “बहुत सारे लड़के-लड़कियाँ आ रहे हैं। जो काम नहीं करता उसे हटाओ, दूसरे को लगाओ।”
ध्यान देने वाली बात यह है कि इस कार्य के लिए पहले भूमि सुधार उपसमाहर्ता और अपर समाहर्ता को आंशिक जिम्मेदारी दी गई थी, जिसमें वे पूरी तरह असफल रहे । अब, जब यह कार्य अंचलाधिकारियों के सिर मढ़ दिया गया है.
तो आइए समझते हैं कि परिमार्जन प्लस के माध्यम से जमाबंदी अपग्रेडेशन के काम में क्या-क्या कठिनाइयाँ आ रही हैं।
पुरानी ऑनलाइन जमाबंदियों में सुधार
विभाग के नीति-निर्माता यह स्वीकार नहीं करते कि उनकी अपरिपक्व कार्यप्रणाली और अनुभवहीनता के कारण सरकार की महत्वाकांक्षी योजना न सिर्फ असफल हुई, बल्कि जनता के लिए भी परेशानी का सबब बन गई। वास्तव में, रजिस्टर 2 को ऑनलाइन करने की जिम्मेदारी TCS, Accenture, Infosys या Deloitte जैसी सर्विस कंपनियों को दी जानी चाहिए थी।
लेकिन जिस विभाग में अनुपयोगी एक्सेस कंट्रोल सिस्टम, ई-गवर्नेंस के दौर में बिना जरूरत बक्शा पेटी और बिना डिज़ाइन के डेटा सेंटर के लिए इमारतें बनाई जाती हैं और जहाँ माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस की जगह पोलोरिस ऑफिस वाला लैपटॉप खरीदा जाता हैवहाँ सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि विभाग ने किस नियत से डेटा माइग्रेशन का काम तीसरे दर्जे की एजेंसियों से करवाया। विभाग ने अपनी नीतिगत असफलता की जिम्मेदारी सीओ के माथे पर परिमार्जन के रूप में डाल दी। पिछले 7 साल से रैयत अंचल का चक्कर काट रहा है और सीओ गालियाँ सुन रहा है, जबकि इस काम में उनका कोई वास्तविक योगदान नहीं था।
विभाग ने तब किस क्वालिटी कंट्रोल के आधार पर एजेंसी को भुगतान किया, या इस घटिया कार्यान्वयन के लिए किस एजेंसी या पेमेंट अथॉरिटी के खिलाफ किस आर्बिट्रेशन या कोर्ट में गया—यह तो आरटीआई के माध्यम से ही पता चलेगा। इन 7 सालों में पंजी 2 पर चढ़े हुए खेसरा को कम से कम सात बार बेचा जा चुका है ,
लेकिन जमाबंदीदार का कहना है कि इसे ऑनलाइन कर दीजिए। समस्या यह है कि जो अंतिम खरीदार हैं, वह कहीं मुंबई में पैसे कमा रहा है और स्थल निरीक्षण के बाद भी उसका नाम और पहचान सुनिश्चित करना 100% सही हो, यह कहना मुश्किल है।कई जमाबंदीदार रैयत अब जीवित नहीं हैं। स्थल निरीक्षण में मानवीय भूल की संभावना और उसकी कठोरतम सजा का जोखिम लेते हुए हम यह काम कर रहे हैं।
डिजिटाइज्ड नहीं की गई जमाबंदियों को ऑनलाइन करना
जिन जमाबंदियों का डिजिटाइजेशन नहीं हुआ है, उन्हें ऑनलाइन करने के लिए खेसरा वार रकवा दर्ज करना है। इसके लिए राजस्व अभिलेख, जैसे रजिस्ट्री डीड, दान पत्र, पारिवारिक बंटवारा, या खतियान का आधार लिया जाता है।
*समस्याएँ:*
* अधिकांश खतियान इस स्थिति में नहीं हैं कि उन्हें पढ़ा जा सके, क्योंकि वे कैथी भाषा में लिखे गए हैं ।
* रजिस्ट्री डीड में धोखाधड़ी की संभावना है, जिसे सबसे कुशल कातिब भी 100% सही नहीं कह सकता।
गलत पहचान वाले विक्रेता।
कैथी भाषा में रकवा की हेराफेरी।
डीड का रजिस्टर होना या नहीं होना।
एकरारनामा को बिक्रीपत्र के रूप में प्रस्तुत करना।
फोटो कॉपी में क्रेता और विक्रेता दोनों को बदल देना, जैसा कि तेलगी स्कैम में देखा गया था ।
सरकारी भूमि का खाता बदल कर बेचना, और ऐसी भूमि पिछले 30 वर्षों में 10 बार बेची जा चुकी है। क्रेता पिछले 10 वर्षों से दो-तीन मंजिल मकान में शांति से निवास कर रहा है, और सरकारी योजनाओं से स्ट्रीट लाइट से लेकर नाले तक का निर्माण हो चुका है ।
भूदान की भूमि का जमाबंदी कायम करके मल्टीटाइम रजिस्ट्री हो चुकी है।
बंदोबस्त वाले लोग अपने बंदोबस्त का पर्चा तब दिखाते हैं जब आप जमाबंदी का निर्माण कर चुके होते हैं।
जमीन पर वास्तविक दखल कब्जा नहीं है।
बिना पुनर्गठन किए जमाबंदी का पुनर्गठन
जिन जमाबंदियों का पुनर्गठन नहीं किया गया है, उनका पुनर्गठन बिना किसी संधारित राजस्व अभिलेख के करना अत्यंत खतरनाक प्रक्रिया है। सरकार ने जमाबंदी को ऑनलाइन करने का अधिकार अंचलाधिकारियों को दिया था, जिसे बाद में लॉक कर दिया, क्योंकि विभाग को घोटाले की आशंका थी।
इन कठिन परिस्थितियों में, हमें कम समय में जमाबंदी का अधितिकरण करना है, और यदि नहीं किया तो एफआईआर दर्ज होगी। वहीं, गलत करने वाले के लिए कठोर दंड का प्रावधान है। ऐसी स्थिति में, हम सभी परिमार्जन प्लस के माध्यम से अपने जीवन का सत्यानाश करने के लिए तैयार रहें।
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