क्या मोदी और भाजपा के लिए चुनाव चुनौतीपूर्ण बन गया है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आम चुनाव के पहले राउंड का मतदान होने में करीब 8 महीने रह गए हैं, लेकिन चुनाव अभियान अभी से चरम पर पहुंच चुका है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके सहायकों और राजनेताओं की हर चाल, हर बयान और हर भाषण से साफ दिख रहा है।
यह प्रधानमंत्री की विदेश नीति संबंधी महत्वपूर्ण चालों से भी स्पष्ट है। उल्लेखनीय बात यह भी है कि विपक्ष भी साझा मकसद से सक्रिय हो गया है। चुनावी लोकतंत्र के डीएनए में ही यह शामिल है कि चुनाव में विपक्ष को हमेशा सत्तासीन सरकार को हटाने का मौका नजर आता है। इस बार न केवल जोश उफान पर है, बल्कि गठबंधन बनाने के मामले में काफी यथार्थपरक कोशिश भी की गई है।
2019 में ऐसा नहीं था। कांग्रेस छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे तीन राज्यों में अपनी जीत से उत्साहित थी। उसका मानना था कि राहुल गांधी ने ‘चौकीदार चोर है’ का जो नारा दिया था, वह बाजी मारने वाला साबित होगा। यह इन तीन हिंदी प्रदेशों में तो चल गया था, लेकिन आम चुनाव में वह कारगर नहीं रहा।
आप जिस खेमे के हों उसी के मुताबिक कह सकते हैं कि कांग्रेस मुगालते में थी और उसे शर्मसार होना पड़ा, या पुलवामा-बालाकोट कांडों ने पूरे चुनाव को वह मोड़ दे दिया, जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। आप चाहे जैसे भी व्याख्या करें, हम सब जानते हैं कि अंतिम नतीजा क्या हुआ था।
इस बार फर्क यह है कि आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए एक्शन काफी पहले से ही शुरू हो गया है। इस हद तक कि आम चुनाव से कुछ महीने पहले तीन प्रमुख हिंदी राज्यों और तेलंगाना में होने वाले चुनावों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
अतीत में, राज्यों के चुनावों को दिशासूचक माना जाता था, लेकिन विशेष तौर पर आज हमें छोटे-से मगर साहसी राज्य मिजोरम को भी शामिल करना चाहिए। भले ही यह लोकसभा में केवल एक सांसद भेजता है, लेकिन यह मणिपुर का महत्वपूर्ण पड़ोसी राज्य है और एनडीए का धीरज खोता सदस्य है। यह ऐसा है, जैसे हमारी सबसे बड़ी राजनीतिक लीग में सेमीफाइनल को छोड़ सीधे फाइनल में छलांग लगा दी गई हाे।
1. ‘इंडिया’ के गठन के साथ ऐसा विपक्षी गठबंधन तैयार हुआ है, जिसका विस्तार पूरे देश में है। हालांकि उसके कुल सांसदों की संख्या केवल 144 है, लेकिन वे 20 राज्यों व केंद्र-शासित प्रदेशों से आए हैं। इसके अलावा इस गठबंधन के सदस्य 11 राज्यों में सत्ता में हैं। पहले के तीसरे मोर्चे जैसे ‘खिचड़ी’ गठबंधन की जगह इस गठबंधन की धुरी कांग्रेस है। इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि के. चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति जैसे कुछ और दल भी इससे जुड़ सकते हैं।
2. भाजपा को पूर्ण बहुमत दिलाने की चाभी यह है कि यूपी और बिहार को छोड़ दें तो अधिकतर हिंदी राज्यों में वह दोबारा सबका सूपड़ा साफ कर दे। भाजपा के पक्ष में जो बातें जा सकती हैं, उनमें यह भी है कि विपक्ष के वे वोट बंट जाएं, जो भाजपा की झोली में न जाने वाले हों, खासतौर से मुस्लिम वोट। भाजपा चाहेगी कि यूपी में यह वोट सपा, बसपा, कांग्रेस और ओवैसी की एआईएमआईएम में बंट जाएं। वैसे कर्नाटक ने संकेत दिया है कि मुस्लिम वोट मजबूती से उस पार्टी के पक्ष में एकजुट हो रहा है, जो भाजपा को हरा सकती है। ‘इंडिया’ गठबंधन उनके लिए चयन आसान बना सकता है।
3. राष्ट्रीय सुरक्षा और भू-राजनीतिक समीकरण आज 2019 के मुकाबले पूरी तरह भिन्न हैं। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि अब ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता कि भारत कमजोर स्थिति में है। वास्तव में, आज का भारत 2019 के मुकाबले कहीं ज्यादा ताकतवर है और दुनिया में उसका रुतबा भी बढ़ा है। दरअसल, दुनिया बदल गई है।
अब वह पुलवामा कांड के बाद की गई जवाबी कार्रवाई को, या किसी पड़ोसी देश के बहाने अपने देश में राष्ट्रवादी भावना भड़काने को आसानी से बर्दाश्त नहीं करने वाली। पाकिस्तान ने आर्थिक मोर्चे पर घुटने टेक दिए हैं और वह गहरे आंतरिक राजनीतिक संकट से जूझ रहा है।
इसलिए वह भड़काऊ कार्रवाई अब शायद ही करेगा। इसके अलावा, चीन लद्दाख और दूसरी जगहों में एलएसी पर अपनी गतिविधियां तेज ही कर रहा है। वह इस स्थिति में पहुंच गया है कि उसे अगर राजनीतिक और रणनीतिक दृष्टि से फायदेमंद दिखेगा तो वह उकसाने वाली कार्रवाई कर सकता है।
पाकिस्तान के खिलाफ आप कुछ भी शुरू करके तुरंत जीत की घोषणा कर सकते हैं, लेकिन चीन के मामले में यह छूट नहीं ले सकते। यही वजह है कि मोदी सरकार चीन के मामले में बड़ी सावधानी से और शांतिवादी तेवर से कदम उठाती रही है।
चुनाव से पहले चीन ने अगर उकसाऊ कार्रवाई की, तो वह भारत की सुरक्षा के लिए खतरा होगा और सरकार के लिए एक चुनावी चुनौती होगी, क्योंकि वह दावे करती रही है कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा उसके अब तक के इतिहास में इतनी मजबूत कभी नहीं रही। संभव है, मोदी ने सुलह की कोशिश पहले ही की हो, लेकिन उसे गुप्त रखा गया हो। विपक्ष फिलहाल संसद में अपने अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी में जुटा है।
प्रधानमंत्री को इसकी खास चिंता नहीं होगी, लेकिन विपक्ष इस बहस का इस्तेमाल अपनी एकता का व्यापक दावा करने के लिए कर सकता है। संसद में एकजुट हमला एकता के उनके दावे को रेखांकित करेगा। यह ‘इंडिया’ को एक ब्रांड के रूप में भी स्थापित करने का उपक्रम साबित हो सकता है।राजनीति के प्रति मोदी-शाह का रुख यही रहा है कि किसी राजनीतिक खतरे या चुनावी जंग को हल्के में मत लो। लेकिन विपक्षी एकता, भाजपा विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण और जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य ने उनके लिए चुनौती बढ़ा दी है।
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