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क्या मनुष्य का पेट माइक्रोप्लास्टिक का समुद्र बन चुका है? - श्रीनारद मीडिया
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क्या मनुष्य का पेट माइक्रोप्लास्टिक का समुद्र बन चुका है?

क्या मनुष्य का पेट माइक्रोप्लास्टिक का समुद्र बन चुका है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वर्ष 2017 में ही अमेरिकी अखबार ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने एक रिपोर्ट छापी थी, जिसका शीर्षक था- मनुष्य का पेट माइक्रोप्लास्टिक का समुद्र बन चुका है. अब रक्त में माइक्रोप्लास्टिक मिलने से हमारा ध्यान प्लास्टिक की समस्या की ओर फिर गया है. हाल में नीदरलैंड के शोधकर्ताओं के एक समूह द्वारा किये गये परीक्षण में मानव रक्त में पहली बार मिला माइक्रोप्लास्टिक पाया गया. इसने दुनियाभर के शोधकर्ताओं को चिंता में डाल दिया है.

माइक्रोप्लास्टिक प्लास्टिक के सूक्ष्म कण हैं, जिनका व्यास 0.2 इंच यानी पांच मिमी से कम होता है. पर्यावरण इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार, शोधकर्ताओं ने 22 रक्त नमूनों का विश्लेषण किया, जिनमें से 17 में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया. इनमें से आधे नमूनों में पीइटी (पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट) था, जिसका उपयोग ड्रिंकिंग बॉटल बनाने के लिए किया जाता है.

खाद्य पैकेजिंग में व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले पॉलीस्टाइनिन में 36 प्रतिशत और पैकेजिंग फिल्मों और बैग में इस्तेमाल होने वाले पॉलीइथाइलीन 23 प्रतिशत पाया गया. दरअसल, प्लास्टिक एक रसायन है, जिसका हम अलग-अलग तरह से इस्तेमाल करते हैं. यह हमारे जीवन का हिस्सा हो चुका है. यह डिलेड बायोडिग्रेडेबल और नॉन-बायोडिग्रेडेबल पदार्थ है.

डिलेड बायोडिग्रेडेबल का मतलब है कि इसके नष्ट होने में बहुत समय लगे और नॉन-बायोडिग्रेडेबल का मतलब है कि जो कभी खत्म ही न हो. डिलेड बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक को नष्ट होने में 300 से 1200 साल तक का समय लगता है. हमारे द्वारा फेंका गया प्लास्टिक अगली पांच पीढ़ियों को मारता रहेगा और उसके बाद भी नष्ट नहीं होगा, अगर वह नॉन-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक है, तो यह हर जगह फैलता जाता है. वह मिट्टी में जाता है, जहां उसके छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते हैं.

कहीं इसे जलाया गया, तो हवा में इसके जहरीले तत्व घुल-मिल जाते हैं. हम कचरे के ढेरों पर लगातार प्लास्टिक जलता हुआ देख सकते हैं. तालाबों, नदियों और समुद्र में यह जाता है, जहां मछलियां इसे खा लेती हैं और प्लास्टिक उनके शरीर में पहुंच जाता है. जब मनुष्य ऐसी मछलियों को खाता है, तो वही प्लास्टिक हमारे शरीर में भी पहुंच जाता है. गाय प्लास्टिक खा जाती है. उसके दूध में तो प्लास्टिक नहीं पहुंचता, पर उसके रसायन जरूर दूध में आ जाते हैं.

प्लास्टिक के अंदर दो ऐसे रसायन- बीपीए और थैलेट्स- इंसानी शरीर के लिए घातक हैं. प्लास्टिक के उपयोग और ऐसे रसायनों के संपर्क में आने से कई प्रकार की बीमारियां और स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं. उदाहरण के लिए, पुरुषों में शुक्राणुओं की कमी हो सकती है. आप देख रहे हैं कि बड़ी संख्या में बांझपन दूर करने और कृत्रिम प्रजनन के क्लिनिक खुल रहे हैं.

इन रसायनों से महिलाओं में थायरॉयड की समस्या आती है. आज भारत में चार में से एक महिला थायरॉयड की गोली खा रही है. यदि लंबे समय तक प्लास्टिक के घातक संपर्क में व्यक्ति रहता है, वह कैंसर का कारण भी बन सकता है. एक समस्या लड़कियों में जल्दी मासिक चक्र का शुरू होना भी है. पहले आम तौर पर 12-13 साल की उम्र में मासिक चक्र शुरू होता था. प्लास्टिक स्त्री हार्मोन को बढ़ाता है, जिससे नौ साल की बच्चियों में भी यह चक्र प्रारंभ हो जा रहा है और उनके स्तन बढ़ जा रहे हैं. महिलाओं में स्तन कैंसर और गर्भाशय कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.

मान लें, आपने प्लास्टिक की कोई चीज फेंकी और आप जैसे एक या दो अरब लोगों ने भी ठीक ऐसा ही किया. यह प्लास्टिक मिट्टी में जमा होता जाता है. बारिश होने पर पहले जो पानी जमीन में चला जाता था और उससे भूजल चार्ज होता था, अब वह प्लास्टिक के चलते ऊपर रह जाता है और बाढ़ का कारण बनता है. साथ ही, चूंकि भूजल का दोहन बढ़ता जा रहा है, तो उसका स्तर भी नीचे जा रहा है.

इस प्रकार हमने हवा, पानी, मिट्टी आदि के साथ मछलियों और पशुओं को भी जहरीला बना दिया है. हमारे करतूतों की सजा हमें ही मिल रही है. प्लास्टिक के अाविष्कार करनेवाले वैज्ञानिक ने कहा था कि यह न गलेगा, न सड़ेगा और न जलेगा. उन्होंने इसकी अच्छाई बतायी थी, पर उन्हें अनुमान नहीं रहा होगा कि एक दिन प्लास्टिक मनुष्य जाति का इतना बड़ा नुकसान कर देगा. अगर आज हम इसके इस्तेमाल पर ठोस रोक लगाते हैं, तो उसका असर सामने आने में बीस साल से अधिक का समय लग सकता है.

हमें यह सवाल पूछना होगा कि जब प्लास्टिक नहीं था, तो क्या जीवन नहीं था. इसे खत्म करने पर सोचा जाना चाहिए. यह हमें गरीब बना रहा है. स्वास्थ्य समस्याओं और रोगों के उपचार के खर्च का संज्ञान लिया जाना चाहिए. अगर हम अपने साथ एक छोटी प्लेट व चम्मच लेकर चलें, तो प्लास्टिक के प्लेट-चम्मच की जरूरत नहीं होगी. व्यक्तिगत स्तर पर हमें अपनी जरूरतों में से प्लास्टिक को हटाना होगा. हम प्लास्टिक बोतलों की जगह तांबे, स्टील आदि की बोतलें रखें.

खाना गर्म करने के लिए प्लास्टिक के बर्तन न उपयोग करें. बाजार से सामान लाना हो, तो झोला ले जाएं. सामुदायिक स्तर पर यह हो सकता है कि कार्यालयों में अपने फ्लास्क और गिलास का इस्तेमाल किया जाए. सरकारी स्तर पर प्लास्टिक पर पूरी तरह से पाबंदी होनी चाहिए. इससे रोजगार पर असर पड़ने जैसा बेमतलब तर्क नहीं दिया जाना चाहिए. अस्पतालों और स्वास्थ्य पर बढ़ते बोझ को हटाना प्राथमिकता होनी चाहिए. एक बार आदत लग जायेगी, तो सब ठीक होता जायेगा. ाजनीतिक इच्छाशक्ति और सहभागिता की मजबूत भावना से प्लास्टिक समस्या से मुक्ति मिल सकती है.

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