क्या भारतवासियों में एक नया आत्मविश्वास आ गया है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
2014 के बाद एक आत्मविश्वास हर भारतवासी में आया है, जो कुछ समय पहले तक अवसाद और निराशा से घिरा था। भरोसा जगाने वाला यह समय हमें जगा कर कुछ कह गया और लोग राष्ट्रनिर्माण में अपनी भूमिका को रेखांकित और पुनःपरिभाषित करने लगे। ‘इस देश का कुछ नहीं हो सकता’ से ‘यह देश सब कुछ कर सकता है’ तक हम पहुंचे हैं। यह आकांक्षावान भारत है, उम्मीदों से भरा भारत है, अपने सपनों की ओर दौड़ लगाता भारत है। लक्ष्यनिष्ठ भारत है, कर्तव्यनिष्ठ भारत है। यह सिर्फ अधिकारों के लिए लड़ने वाला नहीं बल्कि कर्तव्यबोध से भरा भारत है।
नया भारत अपने सपनों में रंग भरने के लिए चल पड़ा है। भारत सरकार की विकास योजनाओं और उसके संकल्पों का चतुर्दिक असर दिखने लगा है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, अटक से कटक तक उत्साह से भरे हिंदुस्तानी दिखने लगे हैं। जाति, पंथ, भाषावाद, क्षेत्रीयता की बाधाओं को तोड़ता नया भारत बुलंदियों की ओर है। नीति आयोग के पूर्व सीईओ श्री अमिताभ कांत की सुनें तो— “2070 तक हम बाकी दुनिया को 20-30 प्रतिशत वर्कफोर्स उपलब्ध करवा सकते हैं और यह बड़ा मौका है।” ऐसे अनेक विचार भारत की संभावनाओं को बता रहे हैं।
अपनी अनेक जटिल समस्याओं से जूझता, उनके समाधान खोजता भारत अपना पुन: आविष्कार कर रहा है। जड़ों से जुड़े रहकर भी वह वैश्विक बनना चाहता है। उसकी सोच और यात्रा वैश्विक नागरिक गढ़ने की है। यह वैश्चिक चेतना ही उसे समावेशी, सरोकारी, आत्मीय और लोकतांत्रिक बना रही है। लोगों का स्वीकार और उनके सुख का विस्तार भारत की संस्कृति रही है। वह अतिथि देवो भवः को मानता है और आंक्राताओं का प्रतिकार भी करना जानता है। अपनी परंपरा से जुड़कर वैश्विक सुख, शांति और साफ्ट पावर का केंद्र भी बनना चाहता है।