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भारतीय सेना के शौर्य,और बलिदान की गाथा की अनेक कहानियां आपने जरूर पढ़ीं, और सुनी भी होंगी, लेकिन सेना में परंपरा की भी बहुत महत्व है। जी हां, उत्तराखंड की कुमाऊं रेजिमेंट में एक ऐसी ही परंपरा पिछले कई सालों से चली आ रही है। 7 कुमाऊं बटालियन में एक पहाड़ी ‘गोट’ (Goat) भी 7 कुमाऊं बटालियन रेजिमेंट सेना में भर्ती है।
सेना के अन्य जवानों की तरह ही लंबे बालों वाले ‘गोट’ को हवलदार का दर्जा मिला हुआ। बटालियन में इसका नाम ‘हवलदार सतवीर’ (Hav Satvir) है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 1963 में लॉन्ग रेंज पार्टी के दौरान ‘गोट’ को भर्ती किया गया था। ‘गोट’ का नाम सतवीर (Satvir) रखे जाने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है।
एस (S) से ‘सात कुमाऊं’, ए (A) से बटालियन मोटो, टी (T) से उस समय के कमान अधिकारी का नाम कर्नल थंबू, वी (V) से उस समय केटूआईसी का नाम विश्वनाथन, आई (I) से उस समय के वरिष्ठ कंपनी कमांडर का नाम ईश्वर सिंह दहिया, और आर (R) से उस समय के सुबेदार मेजर रावत।
01 सितंबर 1965 में यूनिट के तीसरे रेजिंग डे पर नाम की घोषणा हुई थी, और उस समय ‘सतवीर’ को लांस नायक की उपाधि दी गई थी, 1968 में नायक के पद पर पदोन्नति, और फिर पदोन्नत कर 1971 में हवलदार बनाया गया था। ‘गोट’ सतवीर यूनिट का हिस्सा है,और कार्यक्रम में प्रतिभाग भी किया है।
कुमाऊं रेजिमेंट के जवानों की बात मानें तो हवलदार सतवीर सही मायने में ‘Goat’ – ‘ग्रेट ऑफ ऑल टाइम्स’ है। बटालियन में सुबह की होने वाले पीटी से लेकर शाम को होने वाले खेलकूद सहित सभी गतिविधियाें में हवलदार सतवीर हिस्सा लेता हैञ लेकिन, बस उसे ट्रेस चेंज करने की छूट दी गई है।
‘गोट’ का चयन पहाड़ियों से किया जाता है। करीब 10 साल की सेवा बाद रिटायर कर दिया जाता है। ‘गोट’ की मौत होने पर पूरे सैनिक सम्मान के साथ उसे दफनाया भी जाता है। कर्नल इलाविया, जो दूसरी पीढ़ी के अफसर हैं, कहते हैं कि बचपन में ‘सतवीर’ के साथ उनके बहुत ही अच्छे पल थे। ‘कहा कि ‘सतवीर’ हमेशा उनकी यादों में ताजा है।