Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
हौसले का दूसरा नाम हेमू कालाणी, बचपन से मिले देशभक्ति के संस्कार. - श्रीनारद मीडिया

हौसले का दूसरा नाम हेमू कालाणी, बचपन से मिले देशभक्ति के संस्कार.

हौसले का दूसरा नाम हेमू कालाणी, बचपन से मिले देशभक्ति के संस्कार.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

21 जनवरी, 1943 को वंदे मातरम् का उद्घोष करते हुए स्वतंत्रता सेनानी हेमू कालाणी फांसी के फंदे की ओर बढ़ते हुए कह रहे थे- ‘मुझे गर्व है कि मैं भारतभूमि से ब्रिटिश साम्राज्य समाप्त करने हेतु अपने तुच्छ जीवन को भारत माता के चरणों में भेंट कर रहा हूं।’ फांसी के तख्ते पर चढ़ते हुए हेमू ने बुलंद आवाज में कहा- ‘इंकलाब जिंदाबाद’, ‘वंदे मातरम्’, ‘भारत माता की जय’ और फंदे से झूल गए। यह भारतवासियों की परतंत्रता के दिनों की गाथा है। तब ब्रिटिश शासन का दमनचक्र स्वाधीनता से जीने का अधिकार निर्ममता से छीन रहा था।

उनके कठोर निर्दयी व्यवहार से भारत माता की संतानें भयानक रूप से पीड़ित थीं। ऐसे में भगत सिंह व अन्यान्य राष्ट्रीय नेताओं की प्रेरणा से देशवासियों के हृदय में अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की अग्नि धधक उठी। भारतभूमि के कोने-कोने से युवा देशभक्त हंसते-हंसते स्वतंत्रता प्राप्ति यज्ञ में प्राणों की आहुति दे रहे थे। जनमानस के हृदय में उत्पन्न राष्ट्रीय चेतना की तरंग से भारतभूमि का सुदूर पश्चिमी भूखंड सिंध भी प्रभावित था। ऐसे में जिस युवक के राष्ट्रप्रेम ने सर्वोच्च अभिव्यक्ति प्राप्त की थी, वह थे- सिंधी वीर सेनानी हेमू कालाणी।

बचपन से मिले देशभक्ति के संस्कार: 23 मार्च, 1923 को सिंध प्रांत के सखर जिले में जन्मे हेमू को बाल्यकाल से ही मां ने देशभक्ति की भावना से भर दिया था। सिंध के कराची शहर में वर्ष 1930 में हुए अखिल भारतीय कांग्रेस के अधिवेशन की सरगर्मियों ने हेमू के किशोरमन को प्रभावित किया। इस अधिवेशन में महात्मा गांधी, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस, पंडित जवाहरलाल नेहरू, आचार्य जे. बी. कृपलानी, डा. चोइथराम गिडवानी आदि उपस्थित थे। सिंध में इनकी उपस्थिति मात्र से हेमू के हृदय में देशभक्ति का पुष्प खिल चुका था। इस पुष्प को पुष्पित करने का कार्य सरदार भगत सिंह की फांसी ने किया।

जान न्योछावर करने का प्रण: एक तरफ 23 मार्च, 1931 सरदार भगत सिंह की फांसी का दिन था तो दूसरी तरफ बालक हेमू का आठवां जन्मदिन। मात्र आठ वर्ष का बालक मिठाई अथवा खिलौनों की ओर आकर्षित नहीं था। वह तो भगत सिंह का अनुकरण करते हुए रस्सी का फंदा बनाकर शहीद होने का अभ्यास कर रहा था। उसी समय मां ने हेमू से पूछा, ‘बेटा यह क्या कर रहे हो?’ हेमू ने राष्ट्रभक्ति भाव से उत्तर दिया ‘मां! मैं भी फांसी पर चढ़ूंगा।’ हेमू की मां ने इसे लड़कपन समझा था किंतु माता-पिता को यह कहां ज्ञात था कि उनका हेमू एक दिन वास्तव में भारत मां को स्वतंत्र कराने के लिए फांसी के फंदे को चूमेगा और बलिदान हो जाएगा।

अंधेरी रातों में चमका वीर सितारा: हेमू स्वराज सेना मंडल के सिपाही बनकर सिंध के युवाओं के हृदय में देशप्रेम की भावना जगाकर उन्हें देश पर मर मिटने के लिए तैयार करने लगे। वह युवा साथियों के साथ गलियों-मोहल्लों में प्रभात फेरियां करते, आजादी के गीत गाते और अंग्रेज सरकार के विरुद्ध प्रतिबंद्धित साहित्य वितरित करते। महात्मा गांधी ने सिंध प्रांत की कुल सात यात्राएं की थीं। हेमू पर उनकी यात्राओं व नारों का भी प्रभाव पड़ा। ‘करो या मरो’ तथा ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के नारों ने हेमू की भारतभक्ति की धार को और तेज कर दिया था।

वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े हेमू ने अंग्रेज आततायियों को सबक सिखाने हेतु रेल की पटरियों से फिश प्लेटें निकालकर ट्रेन के डिब्बों को पलटने की बड़ी योजना बना डाली थी। इस क्रम में क्वेटा के स्वतंत्रता सेनानियों को कुचलने के लिए कराची से गोरों की पलटन लेकर जाने वाली विशेष रेलगाड़ी, जिसमें बड़ी मात्रा में बारूद व हथियार थे, को उड़ा देने की योजना के तहत हेमू व उनके साथी रात में एकत्र हुए। वे सभी रात के सन्नाटे में पटरियों से फिश प्लेटें निकालने लगे। आवाज सुनकर गश्त लगाते अंग्रेज सिपाही इन देशभक्तों पर टूट पड़े।

हेमू के साथी सिपाहियों को देखते ही वहां से भाग गए किंतु वीर हेमू अडिग रहे, खड़े रहे, डटे रहे। इसके बाद सिपाहियों द्वारा हेमू को भयानक शारीरिक यातनाएं दी गईं ताकि वह साथियों के नाम बता दें, लेकिन हेमू ने जुबान नहीं खोली। उन पर राजद्रोह का अभियोग लगाकर सैनिक न्यायालय में मुकदमा चलाया गया तथा 10 वर्ष की कठोर सजा सुनाई गई।

पूरी हुई अभिलाषा: सखर के सैनिक न्यायालय ने इस निर्णय की प्रतिलिपि सिंध के हैदराबाद मुख्यालय के प्रमुख कर्नल रिचर्डसन के पास भेजी। प्रतिलिपि पढ़कर वह क्रोध से आग बबूला हो गया और युवा हेमू की सजा को बढ़ाकर सजा-ए-मौत में बदल दिया। कू्रर अधिकारी के निर्णय से पूरा भारत चकित रह गया। इसके विरोध में अपील की गई किंतु निर्दयी शासक जिद पर अड़ा रहा और 21 जनवरी, 1943 को प्रात:काल भारत देश की स्वतंत्रता के परवाने हेमू कालाणी को सखर के केंद्रीय कारागार के फांसी स्थल पर ले जाया गया।

वहां जाने से पूर्व हेमू ने मां से गर्व में कहा ‘मां! मैं प्रसन्न हूं, मेरी अभिलाषा पूरी हो रही है।’ हेमू ने जल्लाद से फांसी का फंदा लेकर कहा, ‘इसे मैं स्वयं अपने गले में डालूंगा।’ इस प्रकार हेमू ने फांसी का फंदा गले में डालकर बुलंद आवाज में भारतमाता को नमन किया और इतिहास में अपना नाम अमर कर गए।

Leave a Reply

error: Content is protected !!