हिजाब विवाद से देश की अखंडता खतरे में पड़ेगी,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कर्नाटक का हिजाब विवाद पूरे देश में फैल गया है। मामला कर्नाटक हाई कोर्ट पहुंचा। पहले एकल जज पीठ ने सुनवाई की, किंतु मामला संवेदनशील समझकर न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित ने इसे बड़ी पीठ को प्रेषित करने का अनुरोध किया। मुख्य न्यायाधीश ऋतुराज अवस्थी ने स्वयं की अध्यक्षता में दीक्षित एवं एक मुस्लिम जज सहित तीन सदस्यों वाली पीठ गठित कर दी। वहां सुनवाई चल ही रही है कि मामला सुप्रीम कोर्ट ले जाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया। हालांकि हाई कोर्ट के आदेश होते ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जरूर सुना जाएगा।

मुस्लिम लड़कियों की ओर से इस आधार पर याचिका दाखिल की गई है कि हिजाब पहनना उनका धर्म संगत मूलभूत अधिकार है और उसे रोकना संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 25 के अंतर्गत प्राप्त उनके अधिकारों का हनन है। हिजाब शब्द का स्पष्ट उल्लेख तो उनके धर्मग्रंथ कुरान शरीफ में नहीं है, किंतु उसके सूरा-नूर की आयत 30/31 में हिदायत है कि महिलाएं नजर नीची करके चलें और अपना सिर एवं शर्मगाहों को ढककर रखें। प्रचलन में हिजाब सिर के बालों को ढकता हुआ वक्ष तक आच्छादित करने वाला एक वस्त्र है।

कर्नाटक में कर्नाटक शिक्षा अधिनियम लागू है, जिसकी धारा-133 में प्रविधान है कि सभी विद्यालय अपनी शिक्षा संस्था के लिए एक ड्रेस कोड लागू करेंगे। वह यूनिफार्म ऐसी कदापि नहीं है, जिसे पहनने से लड़कियों की अनुचित छवि बने। तब फिर स्कूल में कुरान का आधार लेकर पोशाक पहनी जाएगी या विधान अनुसार? यह प्रश्न आज ज्वलंत है। चिंता इस बात की है कि केंद्र सरकार ने जब तत्काल तीन तलाक निषेध करने संबंधी अधिनियम पारित किया था तो यह प्रकरण भी सुप्रीम कोर्ट तक गया था

2019 में इस पर विचार करते समय सुप्रीम कोर्ट ने यह देखा था कि कुरान में क्या व्यवस्था है। चूंकि कुरान में तुरंत तीन बार तलाक कहकर तलाक देने का निर्देश न होकर स्त्री के तीन मासिक धर्मो की प्रतीक्षा करने की व्यवस्था है। अत: केंद्र का कानून मान्य हो गया। यद्यपि तीन महीने में अर्थात तीन मासिक धर्म काल प्रतीक्षा करके यह अब भी दिया जा सकता है। मतलब यह है कि उनकी धर्म व्यवस्था चल रही है, जबकि हिंदुओं के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धाराएं लागू हैं।

देश में कई धर्म और पंथ हैं। यदि सबके अनुरूप देश चला तो दिगंबर जैन संप्रदाय के छात्र स्कूल में नग्न आने का अधिकार मांग सकते हैं। शैव संप्रदाय के लोग कह सकते हैं कि हमारे आराध्य भगवान शंकर तो विशेष अवस्था में रहते हैं, मैं भी अपने आराध्य का अनुकरण करूंगा। तब क्या होगा? ऐसी स्थिति में संविधान की संतुलित व्याख्या के अनुसार ही देश चलाया जाए तो ठीक है। वरना देश की अखंडता खतरे में पड़ेगी। यह समय सावधान रहने का है।

 

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