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हिमाचल प्रदेश ने विकास यात्रा शून्य से शुरू की और 51 साल में जो विकास किया. - श्रीनारद मीडिया
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हिमाचल प्रदेश ने विकास यात्रा शून्य से शुरू की और 51 साल में जो विकास किया.

हिमाचल प्रदेश ने विकास यात्रा शून्य से शुरू की और 51 साल में जो विकास किया.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हिमाचल प्रदेश ने विकास यात्रा शून्य से शुरू की और 51 साल में जो विकास किया, वो अन्य पहाड़ी राज्यों के लिए प्रेरणादायक बन गया। यूं कहा जाए कि पहाड़ों से बहने वाले पानी को राज्य के मेहनती लोगों ने अपने पसीने से सोने में बदल दिया। इसके फलस्वरूप पहाड़ी राज्य सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन द्वारा प्रदेश सर्वांगीण विकास के पथ पर अग्रसर है।

सीमित संसाधनों और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद प्रदेश ने सभी क्षेत्रों, विशेष तौर पर कृषि, बागवानी, ग्रामीण विकास, सामाजिक कल्याण, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा, पेयजल, उद्योग और पर्यटन में महत्वपूर्ण प्रगति की है। मंगलवार को हिमाचल प्रदेश 52वां पूर्ण राज्यत्व दिवस मना रहा है। सोलन में राज्यस्तरीय कार्यक्रम होगा, जिसमें मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित होंगे।

सुशिक्षित समाज

प्रदेश ने शिक्षा के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाई। 1970-71 में केवल 4693 शिक्षण संस्थान थे, जबकि 2021-22 में यह 15553 हो गए। आज सरकारी और निजी क्षेत्र में कुल 23 विश्वविद्यालय, आइआइटी, आइआइएम, एम्स व ट्रिपल आइटी जैसे उच्चस्तरीय संस्थान हैं। साक्षरता दर 82.80 प्रतिशत है। 2137 स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम के लिए आइसीटी लैब स्थापित की गई हैं। 800 अन्य स्कूलों में स्मार्ट कक्षाएं शुरू करने के लिए स्वीकृति दी गई है।

स्वस्थ समाज

स्वास्थ्य सदैव प्रदेश सरकार की प्राथमिकता रही। सरकार ने सभी भागों में स्वास्थ्य संस्थान खोले हैं। 1970-71 में स्वास्थ्य संस्थानों की संख्या केवल 587 थी। आज प्रदेश में 4320 स्वास्थ्य संस्थानों का बड़ा नेटवर्क दुर्गम क्षेत्रों तक है। प्रदेश में उपलब्ध बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण लिंग अनुपात, जन्म दर, मृत्यु दर तथा शिशु दर की स्थिति में बहुत सुधार आया है। हिमकेयर योजना से लोगों को कैशलेस उपचार दिया जा रहा है। वर्तमान में 4.63 लाख परिवार इस योजना के तहत पंजीकृत किए गए हैं।

नारी सशक्तीकरण

पंचायतीराज संस्थाओं में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है, ताकि राजनीतिक क्षेत्र में उनकी भागीदारी बढ़ सके। सरकारी नौकरियों में महिलाओं को तय आरक्षण तो नहीं है, लेकिन यहां 30 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं। महिला कल्याण पर बल देने की बदौलत प्रदेश को 2018 में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत अपने प्रदर्शन के लिए देश में शीर्ष राज्य घोषित किया गया।

पर्यावरण संरक्षण

पहले लोगों को खाना पकाने के लिए लकड़ी का उपयोग करना पड़ता था, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक था। अब घर-घर में घरेलू गैस सुविधा उपलब्ध होने से पर्यावरण संरक्षण हो रहा है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत प्रदेश में 1.36 लाख से अधिक गैस कनेक्शन, हिमाचल गृहिणी योजना के तहत 2.91 लाख परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन दिए गए। हिमाचल देश का पहला राज्य है जिसे धुआंमुक्त घोषित किया।

जल संरक्षण

1971 में राज्य के लोगों को बावडिय़ों व जल स्रोतों से पानी लाना पड़ता था। नलों से पीने के पानी की सुविधा नहीं थी। आज लोगों को घर-घर में नल से पानी की सुविधा प्रदान की गई है। 5.89 लाख पेयजल कनेक्शन के लिए 1078 करोड़ खर्च हुए हैं। राज्य की 94.19 प्रतिशत बस्तियों को पेयजल उपलब्ध करवाया गया है। जल जीवन मिशन के तहत 18.51 प्रतिशत की राष्ट्रीय औसत के मुकाबले राज्य में लगभग 60 प्रतिशत घरों में घरेलू कनेक्शन प्रदान किए गए हैं। उपमंडल काजा का टाशीगंग गांव घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से पेयजल आपूर्ति प्राप्त करने वाला सबसे ऊंचाई वाला गांव बना है।

गरीबी उन्मूलन

गरीबी दूर करने के लिए रियायती दरों पर सस्ता राशन उपलब्ध करवाया जाता है। गरीबों को रहने के लिए छत प्रदान की जाती है, जिसके तहत मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत 60 करोड़ रुपये व्यय कर 4417 घरों का निर्माण किया गया। विभिन्न आवास योजनाओं के तहत 10 हजार घरों के निर्माण का लक्ष्य पूरा किया गया है। गरीब परिवारों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाती है और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए भी सहायता का प्रविधान है।

जनसंख्या नियोजन

राज्य में नौकरी का एकमात्र साधन सरकारी सेवाएं थी, लेकिन तीन दशक पहले औद्योगिकीकरण की सोच ने जनसंख्या का नियोजन करने का बड़ा रास्ता निकाला है। राज्य को 2003 में औद्योगिक पैकेज के परिणामस्वरूप औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिला। राज्य में 2003-04 से 2012-13 तक 9140 उद्यम स्थापित किए गए। 911 उद्यम जनवरी, 2018 से जून, 2020 तक स्थापित किए गए। सरकार ने धर्मशाला में ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट का आयोजन किया। लगभग 96 हजार 721 करोड़ के निवेश के 703 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए।

हिमाचल ने यूं दिखाई देश को राह

  • चूल्हे के धुएं से होनी वाली बीमारियों से महिलाओं को से छुटकारा दिलाया गया। मौजूदा सरकार ने 2020 में रसोई को धुआं रहित बनाने के लिए कानूनी प्रविधान किया। जिसके तहत प्रत्येक घर को निश्शुल्क रसोई गैस चूल्हा व सिलेंडर उपलब्ध करवाए।
  • महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 2002 में हिमाचल ने पहल की थी। पंचायतों में महिला आरक्षण विधेयक पारित किया गया। इससे पुरुषों के बराबर ही महिलाओं को पंचायतों में प्रतिनिधित्व मिल सका।
  • उत्तर भारत को निर्मल जल-वायु मिलती रहे, इसके लिए 1983 में वन कटान पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था। तभी पहाड़ों में बर्फबारी होने पर दिल्ली तक के तापमान व मौसम पर असर रहता है।
  • आयु बढऩे के बाद औलाद बूढ़े माता-पिता को अकेले न छोड़ दें, इसकी आशंका को देखते हुए 2005 में हिमाचल ने माता-पिता भरण पोषण अधिनियम लाया था। इस कानून की शर्तें बेहद सख्त रखी गई थी कि माता-पिता को अकेला छोडऩे पर सरकारी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है।
  • जबरन मतांतरण करवाने से जुड़े मामले देश के कई राज्यों में चर्चा के विषय बनते आ रहे हैं। समय के साथ राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। लेकिन इस विषय में रोचक तथ्य ये है कि पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह 2004 में जबरन मतांतरण रोकथाम हेतु विधेयक लेकर आए थे।
  • 2009 में तत्कालीन धूमल सरकार ने पहाड़ों को प्लास्टिक मुक्त करने के लिए कानून लाकर प्रतिबंधित किया था। उसके बाद किसी भी दुकान पर पालीथीन की बिक्री बंद होने से पर्यावरण संरक्षित और सुरक्षित हुआ था।

केंद्र की बैसाखी छोड़कर अपने पैरों पर चलना है चुनौती

राज्य ने केंद्र की बैसाखियां छोड़कर अपने पैरों पर खड़ा होने का कभी प्रयास नहीं किया। नतीजा यह है कि जीएसटी में हिस्सेदारी घटने और राजस्व घाटा अनुदान में कटौती होते रहने से सरकार के सामने गंभीर वित्तीय चुनौतियां खड़ी होने वाली है। छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद कर्मचारियों को वेतन भुगतान करने के लिए सरकार को मासिक करीब दो हजार करोड़ रुपये चाहिए होंगे। सरकार को चुनौतियों का सामना करते हुए स्वावलंबन की ओर आगे बढऩा होगा।

बेहतर अधोसंरचना विकसित करनी होगी, ताकि रोजगार के साधन सृजित हो सकें और बेरोजगारी का समाधान हो पाए। कर्ज के सहारे राज्य को विकास की राह पर आगे लेकर चलना संभव नहीं होगा। अब औद्योगिकीकरण और पर्यटन विकास को ग्रामीण क्षेत्रों के साथ जोडऩे की जरूरत है।

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