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गैर-कांग्रेस शासित राज्यों में कांग्रेस पृष्ठभूमि के नौवें सीएम होंगे हिमंता बिस्व सरमा. - श्रीनारद मीडिया

गैर-कांग्रेस शासित राज्यों में कांग्रेस पृष्ठभूमि के नौवें सीएम होंगे हिमंता बिस्व सरमा.

गैर-कांग्रेस शासित राज्यों में कांग्रेस पृष्ठभूमि के नौवें सीएम होंगे हिमंता बिस्व सरमा.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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हिमंता बिस्व सरमा के असम का मुख्यमंत्री चुने जाने के साथ ही कांग्रेस से बाहर जाकर मुख्यमंत्री बनने वाले नेताओं के आंकड़ों में इजाफा हो गया है। अब देश में नौ गैर-कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री कांग्रेस की सियासी पृष्ठभूमि से होंगे। पूर्वोत्तर के सात में से अब पांच राज्यों के मुख्यमंत्री पुराने कांग्रेसी हो जाएंगे। अभी जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए हैं उनमें से तीन प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने अपना सियासी सफर कांग्रेस से शुरू किया था।असम में भाजपा के नया चमकता सितारा बन चुके हिमंता को कांग्रेस छोड़े हुए अभी छह साल भी नहीं हुए और वह राज्य के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।

कांग्रेस नेतृत्व ने नहीं दी थी अहमियत

हिमंता ने 2015 के अगस्त में जब कांग्रेस छोड़ी थी, तब वह पार्टी के एक बड़े नेता के रूप में उभर चुके थे, मगर तब न तो तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने उन्हें अहमियत दी और न ही केंद्रीय हाईकमान ने उनकी शिकायतों को तवज्जो दी, बल्कि उन्हें नजरअंदाज किया गया। हिमंता ने तब कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया और 2016 में भाजपा की प्रदेश में पहली सरकार के सबसे कद्दावर मंत्री बन गए। असम के हालिया चुनाव में कांग्रेस को सत्ता का दावेदार माना जा रहा था, तब हिमंता ने सारे राजनीति दांव-पेच और अपने कनेक्ट का इस्तेमाल करते हुए भाजपा को सत्ता दिलाने में सबसे अहम भूमिका निभाई।

ममता, हिमंता और रंगासामी ने कांग्रेस की राजनीति से बनाई थी पहचान

बंगाल चुनाव में धमाकेदार जीत दर्ज कर तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी हैं। पर उनकी राजनीतिक पहचान भी कांग्रेस से बनी थी। बेहद युवा उम्र में लोकसभा सदस्य से लेकर नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुकीं ममता ने 1997 में कांग्रेस के तत्कालीन नेतृत्व से खफा होकर अपनी पार्टी बनाई और आज बंगाल में कांग्रेस का सफाया हो गया है।

पुडुचेरी में इस साल मार्च तक सत्ता में रही कांग्रेस को उसके ही एक पूर्व दिग्गज एन. रंगासामी ने सत्ता से बाहर किया है। दिलचस्प यह है कि रंगासामी इससे पूर्व प्रदेश में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। कुछ साल पूर्व उन्होंने कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी एनआर कांग्रेस बना ली और इस चुनाव में राजग साझीदार के रूप में कांग्रेस से सत्ता छीन ली। वैसे हिमंता समेत इस समय पूर्वोत्तर के सात में से पांच राज्यों के मुख्यमंत्री कांग्रेस की पृष्ठभूमि से निकले हैं।

पूर्वोत्तर के अन्य चार राज्यों के साथ-साथ आंध्र व तेलंगाना के मुख्यमंत्री भी कांग्रेसी पृष्ठभूमि के

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने 2017 में कांग्रेस के 43 विधायकों के साथ पाला बदलकर भाजपा का दामन थाम लिया और वह राज्य में अभी भाजपा सरकार की अगुआई कर रहे हैं। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. वीरेन सिंह ने 2016 में कांग्रेस छोड़ी तो वह सूबे की कांग्रेस सरकार में मंत्री थे। नगालैंड के मुख्यमंत्री निफियू रियो एक दशक से भी अधिक समय तक राज्य में कांग्रेस सरकारों में मंत्री रहे मगर 2002 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और 2003 में अपनी क्षेत्रीय पार्टी का गठबंधन बनाकर चुनाव जीता और मुख्यमंत्री बन गए। लंबी पारी के बाद रियो कुछ समय के लिए लोकसभा में भी आए मगर फिर राज्य की सियासत में लौटकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं।

मेघालय में कोनार्ड संगमा एनपीपी गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री हैं और वह कांग्रेस के पुराने दिग्गज और पूर्व लोकसभा स्पीकर पीए संगमा के पुत्र हैं। संगमा ने 1998 में शरद पवार के साथ कांग्रेस छोड़ी थी और इसलिए कोनार्ड की सियासी शुरुआत एनसीपी से हुई थी। राज्य की सियासत में उन्हें पिता की विरासत का फायदा मिला जो लंबे समय तक मेघालय में कांग्रेस का चेहरा रह चुके थे।

दक्षिण के राज्य आंध्र प्रदेश में तो 2014 में कांग्रेस ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी खुद चलाई और आंध्र के बंटवारे व नेतृत्व की अनदेखी के बाद जगन मोहन रेड्डी ने कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी वाइएसआर कांग्रेस बना ली और 2014 के चुनाव में उनकी पार्टी विपक्ष में बैठी। जबकि 2019 के चुनाव में जगन ने बड़ी जीत के साथ आंध्र के मुख्यमंत्री की कमान थाम ली।

नए बने राज्य तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने भी अपना सियासी सफर कांग्रेस से शुरू किया था। हालांकि उन्होंने कांग्रेस काफी पहले छोड़ दी थी और टीडीपी के रास्ते आखिर में 2001 में अपनी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति बनाई और आज राज्य में उनका एकछत्र सियासी राज है। साफ है कि पूर्वोत्तर से दक्षिण तक कांग्रेस से बाहर गए इन नेताओं ने अपनी पुरानी पार्टी के प्रभुत्व को ही ध्वस्त किया है।

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