हिंदी दिवस समारोह नहीं, उत्सव है!

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हिन्दी भाषा नही…भावों की अभिव्यक्ति है|

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतीहारी बिहार में राजभाषा प्रकोष्ठ तथा हिंदी साहित्य सभा द्वारा हिंदी पखवाड़ा 2023 के अंतर्गत हिंदी दिवस समारोह का आयोजन गांधी भवन परिसर स्थित नारायणी कक्षा में हिंदी विभाग द्वारा किया गया। इसके अंतर्गत ‘हिंदी का वैश्विक परिदृश्य’ पर उपस्थित गणमान्य विद्वानों ने चर्चा की।

भाषा अभिव्यक्ति का मध्यम होती है,यह सभ्यता, संस्कृति,संस्कार, इतिहास और समाज की वाहिका होती है। इसमें संप्रेषण करना हम सभी का पावन कर्तव्य होता है, क्योंकि भारत की संस्कृति अनेकता में एकता और वसुधैव कुटुंबकम पर आधारित है,जिसमें विश्व कल्याण की समृद्धी और सुदृढता के स्वर है।

हिंदी का वैश्विक परिदृश्य।

विश्व के बदलते परिदृश्य में हिंदी अपने स्वर्ण काल की ओर अग्रसर हो रही है। विगत दिनों नई दिल्ली में संपन्न हुए 18वें जी-20 समारोह में हिंदी ने भारत का परचम लहराया है। हिंदी विदेशी धरती पर भारतीयता का प्रतिनिधित्व करती है। वैश्विक परिदृश्य में दुनिया के ग्लोबल ग्राम होने के कारण हिंदी तीव्र गति से आगे बढ़ रही है। वर्तमान सरकार द्वारा हिंदी का सरकारी स्तर पर अधिक से अधिक प्रयोग एवं विश्व के मंचों पर हिंदी में अपनी बात को पुरजोर ढंग से रखने का साहस भी इसे बढ़ाने में सहयोग दे रही है।

विश्व के लगभग सभी महादेशों से हिंदी की पत्र-पत्रिकाएं एवं इसके प्रचार-प्रसार में भागीदार संस्थाओं ने अपना अमूल्य योगदान प्रदान किया है। विश्व की कई नामचीन विश्वविद्यालय में अन्य भाषाओं के साथ हिंदी का पठन-पाठन कहीं ना कहीं भारतीय संस्कृति की तरफ वैश्विक जनमानस की झुकाव को प्रदर्शित करता है। विश्व के विभिन्न देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों ने भी हिंदी को अपनी मातृ शक्ति के रूप में अपने पुण्य भूमि पर स्थापित किया है, जिसकी झलक हमें समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं, समारोह,उत्सव के माध्यम से मिलती रहती है।

स्वतंत्रता आंदोलन की भाषा हिंदी।

ऐसा नहीं है कि भारतवर्ष में हिंदी से प्राचीन भाषा व बोली-वाणी प्रचलित नहीं है, लेकिन हिंदी हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की वह भाषा है जिसमें हमारे रणबाॅकुरों ने इसकी अठारह बोली- बाणियों में अपनी अभिव्यक्ति देते हुए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। इसलिए हिंदी हमारे लिए केवल राजभाषा नहीं वरन हमारी भाव की भाषा है। हिंदी का जब भी हम नाम लेते हैं हम गहरे भावुकता के भंवर में उतर जाते है। इसकी बोली-बाणियों में डेढ सौ वर्षो से अधिक का इतिहास सुरक्षित व संरक्षित है। पूरे देश एवं विदेश में भी स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में हिंदी संपर्क भाषा के रूप में भारत की सभी बोली-बाणियों को अपने में समाहित करते हुए एक नया स्वरूप दिया, क्योंकि अपनी भावनाओं, अपनी आवश्यकता का संदेश देना और दूसरे से संदेश लेना प्रत्येक प्राणी का प्राकृतिक गुण है।

स्वतंत्रता संग्राम में गैर हिंदी क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानियों ने हिंदी को अपने प्रचार-प्रसार का माध्यम बनाया, इसमें गोपाल कृष्ण गोखले, बाल गंगाधर तिलक,अरविंद घोष, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस जैसे कई विद्वान नेता रहे। यही कारण है की स्वतंत्रता के बाद एक लंबी संवाद श्रृंखला के उपरांत हिंदी को राजभाषा के रूप में स्थापित किया गया और इसके प्रचार प्रसार के लिए संविधान में व्यवस्था की गई।
अपनी बोली-वाणी भाषा, क्षेत्र, संप्रदाय और धर्म से ऊपर है इसकी बानगी हम बांग्लादेश के जन्म से समझ सकते हैं, साथ ही 1800 वर्षों तक विश्व के कई देश में निर्वासित जीवन जीने वाले इसराइलियों ने अपनी 2000 वर्ष प्राचीन भाषा हिब्रू को पुनर्जीवित करते हुए आज समृद्धि के नए परचम लहरा रहे हैं। अतःभाषा वह ताकत है जिसमें हम अपनी परंपराएं, संस्कार को जीवित रखते हैं।

हिंदी का व्यापक फलक और चुनौतियां।

भारत के कलकता विश्वविद्यालय में पहली बार सन 1922 में हिंदी पढ़ाने का कार्य प्रारंभ हुआ और आज 100 वर्ष के बाद दुनिया के 200 से अधिक विश्वविद्यालय में हिंदी शिक्षण की व्यवस्था है। आंकड़ों की माने तो विश्व में हिंदी तीसरे स्थान पर है। विश्व के 135 देश में हिंदी भाषा के जनता की उपस्थिति है। मॉरीशस और फिजी देश में हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। मॉरीशस में हिंदी का विश्व हिंदी सचिवालय 2008 से ही स्थित है। इंटरनेट की दुनिया में हिंदी बड़ी तीव्र गति से आगे बढ़ते हुए अपना स्थान बना चुकी है।
विद्वानों का तर्क है की भाषा वहीं प्रमुख होती है जो व्यापार की भाषा होती है।

इस समय अंग्रेजी व्यापार की भाषा है और जापान, चीन, रूस,फ्रांस जैसे देशों में अंग्रेजी का बढ़ता प्रचार प्रसार बढ रहा है। भारत की उच्च वर्ग, उच्च संस्थानों की भाषा अंग्रेजी बनी हुई है। अंग्रेजी माध्यम से आप यूपीएससी की परीक्षा आसानी से पास कर सकते है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में अंग्रेजी में ही सारा कार्य होता है, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय प्रबंधन संस्थान की भाषा अंग्रेजी है। यह कहा भी जाता है की अंग्रेजी में कंटेंट अधिक मात्रा में उपलब्ध है।
लेकिन यह भी सत्य है कि ज्ञान-विज्ञान, न्याय, चिकित्सा की भाषा अगर अंग्रेजी बनी हुई है तो औपनिवेशिक दस्ता की मानसिकता से हम अभी मुक्त नहीं हुए है।
बहरहाल हिंदी हमारी है, अपनी है इसे आगे बढ़ाने और आगे ले जाने का दायित्व हम सभी पर है।
और अंततः महात्मा गांधी जी कहते थे की हिंदी के बिना राष्ट्र गूंगा है।

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