एकता और अखण्डता को बनाये रखने में हिन्दी का अहम योगदान है,कैसे?
हिंदी को गंगा नहीं बल्कि समुद्र बनना होगा-आचार्य विनोबा भावे
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
हिन्दी बिना हिन्दुस्तान अधूरा है। देश की एकता और अखण्डता को बनाये रखने में हिन्दी का अहम योगदान है। आज हिन्दी सिनेमा विश्व में एक अहम स्थान रखता है। बॉलीवुड की पहचान भी हिन्दी से ही है। हिन्दी की वजह से ही बॉलीवुड में हजारों लोगों को रोजगार मिलता है। हिन्दी भाषा सिर्फ वार्तालाप और संचार का ही माध्यम नहीं है बल्कि यह देश में रोजगार के सृजन का भी माध्यम है। आज हिन्दी सिनेमा से लेकर हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों, और सोशल मीडिया पर हिन्दी का बोलबाला है, जो कि देश में लाखों रोजगार पैदा करते हैं। लेकिन अंग्रेजी व अन्य भाषाएं जिस हिसाब से विस्तार ले रही हैं, उससे हिंदी बहुत पीछे पिछड़ती जा रही है।
ज्यादातर सरकारी विभागों और केंद्रीय मंत्रालयों में हिंदी का प्रचलन अब भी अच्छा खासा है। लेकिन जितना होना चाहिए, उस हिसाब से हिंदी भाषा को तवज्जो नहीं मिल रही। कागजी कोशिशें में कोई कमी नहीं है। पर, धरातल पर सब शून्य ही है। केंद्र सरकार हिंदी को बढ़ावा देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही, पर समाज साथ नहीं दे रहा। समाज के दिलो-दिमाग पर अंग्रेजी का भूत सवार है। प्रत्येक व्यक्ति अपने बच्चों को अंग्रेजी की शिक्षा दिलवाना चाहता है।
जरूरत इस बात की है कि हिंदी दिवस के दिन मात्र रश्मअदायगी न हो,् हमें अपनी देशी भाषा के प्रति संकल्पित होना होगा। शुद्ध हिंदी बोलने वालों को देहाती व गंवार न समझा जाए। बीपीओ व बड़ी-बड़ी कंपनियों में हिंदी जुबानी लोगों के लिए नौकरी नहीं होती। इसी बदलाव के चलते मौजूदा वक्त में देश का हर दूसरा आदमी अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने को मजबूर है।
हिंदी को जिंदा रखने के लिए खुद से भी कोशिशें करनी होंगी। इसके लिए जनांदोलन की जरूरत है। हिंदी के वर्चस्व को बचाने की हमारे सामने बड़ी चुनौती है। जबकि, देखा जाए तो हिंदी को विभिन्न देशों के कॉलेजों में पढ़ाने का प्रचलन बढ़ा है। संदेह है कहीं ऐसा न हो विदेशी लोग हिंदी भाषा के बल पर फिर दोबारा से हमारे देश में घुसपैठ कर जाए। जब वह हिंदी बोल और समझ लेंगे तब वह आसानी से यहां घुस सकेंगे। हमें सतर्क रहने की जरूरत है।
हिंदी साहित्य, कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का सबसे पहले विचार महात्मा गांधी ने वर्ष 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में किया था।
अब विश्व भर की वेबसाइट हिंदी को भी तवज्जो दे रही हैं। ईमेल, ईकॉमर्स, ईबुक, इंटरनेट, एसएमएस एवं वेब जगत में हिंदी को बड़ी सहजता से पाया जा सकता है। माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, आइबीएम तथा ओरेकल जैसी कंपनियां अत्यंत व्यापक बाजार और भारी मुनाफे को देखते हुए हिंदी प्रयोग को बढावा दे रही हैं। एक अध्ययन के मुताबिक हिंदी सामग्री की खपत करीब 94 फीसद तक बढ़ी है। हर पांच में एक व्यक्ति हिंदी में इंटरनेट प्रयोग करता है। फेसबुक, ट्विटर और वाट्स एप में हिंदी में लिख सकते हैं। इसके लिए गूगल हिंदी इनपुट, लिपिक डॉट इन, जैसे अनेक सॉफ्टवेयर और स्मार्टफोन एप्लीकेशन मौजूद हैं। हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद भी संभव है।
हिन्दी विश्व की एक प्राचीन, समृद्ध तथा महान भाषा होने के साथ ही हमारी राजभाषा भी है, यह हमारे अस्तित्व एवं अस्मिता की भी प्रतीक है, यह हमारी राष्ट्रीयता एवं संस्कृति की भी प्रतीक है. विश्व के 180 से अधिक देशों में प्रतिवर्ष 10 जनवरी को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ मनाया जाने लगा है। चूंकि, भारतीय संविधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 को हिन्दी को राजभाषा के रूप में अंगीकार किया था। इसीलिए, देश में प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को ‘राष्ट्रीय हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। हिंदी हर स्तर, हर क्षेत्र और हर दिशा में निरंतर अपना परचम फहरा रही है। नि:संदेह, यह हिंदी का नया स्वर्णिम दौर है!
राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की यह घोषणा साकार होगी–
“है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी-भरी
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी।”
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