अपनी भाषा-भूषा-भावादि के प्रति आग्रह रखें हिन्दू – परमाराध्य शङ्कराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्दः जी महाराज
श्रीनारद मीडिया / सुनील मिश्रा वाराणसी यूपी
प्रयागराज सं. २०८१ अचला सप्तमी तदनुसार दिनाङ्क 4 फरवरी 2025 ई. / भाषा-भूषा-भावादि में शुद्धता – पवित्रता अथवा परिष्कार से हमारे जीवन को ऊर्जा प्राप्त होती है, मन को शान्ति मिलती है, आत्मविश्वास बढ़ता है, स्वास्थ्य सुधर जाता है और हमारे सामाजिक सम्बन्धों में घनत्व आता है। इसके विपरीत इनमें साङ्कर्य होने से तन-मन और वातावरण पर दुष्प्रभाव आता है और यदि वह पीढ़ी दर पीढ़ी चलता चला जाए तो हमें पूरी तरह हमारी पहचान से दूर कर देता है।उदाहरण के लिए हमने अङ्ग्रेज़ी तारीखों को अपने व्रत-पर्वादि में भी सम्मिलित कर उनकी सटीकता को प्रभावित कर लिया है। भारतीय तिथियों अमावस्या माघ महीने में मनाए जाने वाले कुम्भ पर्व के साथ हमारा संवत्सर २०८१ विक्रम नहीं, अपितु २०२५ ई. जोड़ लिया है और प्रचार कर रहे हैं तब १२ कुम्भ पीछे जाने के लिए १४४ वर्ष पीछे जाकर १८८१ के कुम्भ को जोड़ रहे हैं जबकि भारतीय गणना के अनुसार हमारा पिछला बारहवाँ कुम्भ १८८३ ई. में सम्पन्न हुआ था क्योंकि हमारी गणना में बृहस्पति के अतिचारी होने पर कुम्भ कभी ११ या १३ वर्ष बाद भी हुआ है। अतः अपनी तिथियों से ही हमें वस्तुस्थिति को पकड़कर रखने में सफलता मिल सकती है। इसके विरुद्ध साङ्कर्य से तथ्यगत हानि होती है। यह स्पष्ट है। यही परिस्थिति भाषा, भाव, भूषा आदि में भी परिलक्षित है।
उक्त बातें परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती १००८ ने भाषा-भूषा आदि के साङ्कर्य पर विचार विषय पर व्यक्त करते हुए कही। उन्होंने कहा कि परमधर्मसंसद् 1008 इस धर्मादेश द्वारा समस्त हिन्दुओं को निर्देश प्रदान करती है कि वे अपने भाषा-भूषा-भावादि की शुद्धता-पवित्रता बनाए रखने के लिए अपनी तिथियों, अपने नामों, अपनी भाषा और भूषा आदि के प्रयोग का आग्रह आरम्भ करें।आगे कहा कि भारत का नाम केवल भारत स्वीकार करें। उसका अनुवाद भारत ही हो। भारत की तिथि विक्रम संवत् अथवा शक् संवत्सर की गणना से ही हो। जन्मदिन मनाएं, बर्थडे नहीं। अपनी वेशभूषा धोती-दुपट्टा अपनायें। नव संवत्सर मनाएं, न्यू ईयर नहीं। भारतीय पर्व भारत की तिथियों से मनाए जाने जैसे उपक्रमों का आग्रह आरम्भ करें ताकि भारत और भारतीय संस्कृति साङ्कर्य दोषरूपी बादलों से निकलकर स्वच्छ आभा के साथ आकाशमण्डल में देदीप्यमान हो सके।
आज विषय स्थापना सक्षम योगी जी ने किया। एवं विषय विशेषज्ञ के रूप में श्रीमती रति हेगड़े जी उपस्थित रही एवं आईआईटी धनबाद के प्रो. राम नारायण त्रिपाठी जी ने विशेष उद्बोधन प्रस्तुत किया। चर्चा में विशिष्ट अतिथि के रूप में श्रीमती करुणा सिंह जी, हंसा भारती भैरवी माता जी, वृन्दर भगत जी, वसंत कुमार कन्दोई जी, उपस्थिति रहे। इसी क्रम में सचिन जानी जी, अनुसूया प्रसाद उनियाल जी, राज कुमार शर्मा जी, दे जी रैना जी, संजय जैन जी, सन्त त्यागी जी, साध्वी सोनी जी, दंगल सिंह गुर्जर जी, सर्वभूतहृदयानप्द जी आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।प्रकर धर्माधीश के रूप में श्री देवेंद्र पांडेय जी ने संसद का सञ्चालन किया। सदन का शुभारम्भ जयोद्घोष से हुआ। अन्त में परमाराध्य ने धर्मादेश जारी किया जिसे सभी ने हर-हर महादेव का उदघोष कर पारित किया।उक्त जानकारी शंकराचार्य जी महाराज के मीडिया प्रभारी संजय पाण्डेय ने दी है।