हिंदुत्व एक बार फिर लांछित और अपमानित हुआ हैं,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हिंदू अस्मिता वास्तव में अद्वितीय है। यह विश्व लोकमंगल के लिए सक्रिय विराट मानवीय संवेदना है। यह भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों की जीवनशैली है। हिंदू धर्म का अपना दर्शन है। अपनी अनुभूति है और विशेष वैज्ञानिक विवेक भी, लेकिन हिंदू अपनी ही मातृभूमि पर सैकड़ों वर्षों से अपमानित होते रहे हैं। यह 2016 की बात है जब संसद के उच्च सदन में हिंदू संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना ‘स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया’ से की गई थी।

तब भी भारत भक्ति और भारतद्रोह को एक बताने का प्रयास हुआ था। हिंदू अस्मिता पर कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने नया हमला किया है। इस हमले में हिंदुत्व और आतंकवाद एक जैसे बताए गए हैं। विश्व इतिहास में ऐसी तुलना अतुलनीय है। खुर्शीद ने अपनी किताब के ‘द सैफरन स्काई’ अध्याय में लिखा है कि ‘साधु संत सनातन धर्म और क्लासिकल हिंदुइज्म को जानते-मानते हैं। अब उसे किनारे करके नया हिंदुत्व गढ़ा जा रहा है, जो आइएस एवं बोको हराम जैसे जिहादी इस्लामी संगठनों जैसा है।’ खुर्शीद के इस रुख पर राजनीति गरमा गई है।

कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि ‘हम भले ही हिंदुत्व को हिंदू धर्म की मिलीजुली संस्कृति से अलग एक राजनीतिक विचार मानें, लेकिन हिंदुत्व की तुलना आइएस जैसे संगठनों से करना तथ्यात्मक रूप से गलत है।’ वहीं राहुल गांधी और शशि थरूर ने अपने-अपने ढंग से खुर्शीद का समर्थन किया है। दरअसल सेक्युलरवादी और कथित उदारपंथी हिंदू धर्म को कट्टर और हिंसक बताते रहे हैं।

जबकि भारत में हिंदू बहुमत ही लोकतंत्र और वास्तविक पंथनिरपेक्षता की गारंटी है। खुर्शीद से पूछा जाना चाहिए कि भारत का हिंदुत्व वास्तव में आइएस जैसा होता तो क्या वह यहां इसी तरह की किताब लिख सकते थे? क्या मुस्लिम देशों में इस्लाम की आलोचना संभव है। हिंदुत्व के कारण ही उन्हें ऐसे आक्रामक सांप्रदायिक लेखन की छूट है। वामपंथी और खुर्शीद जैसे लोग हिंदू समाज पर आक्रामक लेखन-भाषण करते हैं, लेकिन कुरान पर उनका एक भी भाष्य नहीं है। दुर्भाग्य से भारत का धर्म/सनातन धर्म/हिंदू धर्म रिलीजन या मजहब जैसा माना जाता है।

वह हिंदू धर्म को हिंदुइज्म कहते हैं। इज्म का अर्थ विचार या एक वाद होता है। प्रत्येक वाद का प्रतिवाद भी होता है। हिंदू चेतना वाद नहीं है। समाजवाद, साम्यवाद, मार्क्‍सवाद, पूंजीवाद, भौतिकवाद, आध्यात्मिकवाद जैसे अनेक वादों से लोग परिचित हैं। सभी वाद तत्कालीन समाज की मुख्यधारा से पृथक नई धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। हिंदू अस्मिता वाद नहीं है। यह मौलिक है।

इसी तरह हिंदू शब्द में त्व जोड़कर हिंदुत्व बना है। त्व का अंग्रेजी अनुवाद नेस है। नेस या त्व का अर्थ है होना। अंग्रेजी में स्टेट आफ बींग। हिंदुत्व अर्थात हिंदुनेस। हिंदू चिंतन और धर्म परंपरा के विरोधी हिंदुइज्म और हिंदुत्व की व्याख्या वोट बैंक के लिहाज से करते हैं। हिंदू इस्लाम और ईसाइयत की तरह एककोशीय रचना नहीं है। हिंदू बहुकोशीय धर्म है। डा. आंबेडकर ने ‘रिडल्स इन हिंदुइज्म’ में तमाम प्रश्न उठाए हैं कि ‘हिंदू पत्थर पूजते हैं, नदियां पूजते हैं, कुछ पशुओं को पूजते हैं। किसी हिंदू से पूछिए कि वह हिंदू क्यों है।

वह इसका सीधा उत्तर नहीं दे सकता।’ हिंदू परंपरा के भीतर अनेक रीतियां हैं। अनेक प्रतीतियां और अनुभूतियां है। यह आस्तिकता के साथ विवेकसम्मत दर्शन भी है। हजारों देवी-देवता हैं, तर्क है, प्रतितर्क हैं।

हिंदू धर्म जड़ नहीं है। इसका जन्म किसी देवदूत की घोषणा से नहीं हुआ। वैदिककाल के पहले दर्शन का विकास हुआ। ऋग्वेद के रचनाकार विद्वानों ने प्रकृति के भीतर एक अंतर्सांगीत देखा। प्रकृति को नियमबद्ध पाया। उन्होंने प्रकृति की नियमबद्धता का नाम ऋत रखा। ताप देना अग्नि का धर्म है। नीचे बहना और रसपूर्ण होना जल का धर्म है। इसी तरह बीज का मिट्टी-पानी पाकर पौध बनना, पौध में कली खिलना, फूल खिलना और फिर बीज बनना यह सब नियमबद्ध है। पूर्वजों ने इससे प्रेरित होकर समाज के लिए भी एक आचार शास्त्र गढ़ा। इसे सनातन धर्म कहा गया है। सनातन अर्थात जो सदा से है। नित्य नया है। सनातन वैदिक धर्म का सतत विकास हुआ है।

गांधी जी ने जवाहरलाल नेहरू को लिखे एक पत्र में कहा था, ‘मेरे लिए हिंदुत्व छोड़ना असंभव है। हिंदुत्व के कारण मैं ईसाइयत, इस्लाम और अन्य धर्मों से प्रेम करता हूं। इसे मुझसे दूर कर दो तो मेरे पास कुछ भी नहीं बचेगा।’ हिंदू दर्शन का ध्येय लोकमंगल है, लेकिन गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारियों की दृष्टि में हिंदुत्व आइएस और बोको हराम जैसा है। हिंदू कभी भी आक्रामक नहीं रहे।

डा. राममनोहर लोहिया समाजवादियों के नायक थे। उन्होंने ‘सगुण, निगरुण धर्म पर एक दृष्टि’ में लिखा, ‘हम आत्मसमर्पण की क्षति को खत्म करना सीखें और यह तभी होगा जब हिंदू धर्म में आप तेजस्विता लाएं।’ हिंदुत्व की तेजस्विता अनिवार्य है, लेकिन आज भारत के समाजवादी गांधी, लोहिया से बहुत दूर हैं। हिंदुत्व का अपमान समाजवादी सोच में पंथनिरपेक्षता है।

हिंदू जीवन रचना सरल, तरल और विरल है। हिंदू होने का अपना एक विशिष्ट आनंद है। हिंदू भौतिकवादी हो सकते हैं। उन पर धर्म का कोई प्रतिबंध नहीं। उन्हें आध्यात्मिक होने की स्वतंत्रता है। उन पर किसी धर्म ग्रंथ का बोझ नहीं है। वे कोई भी विचार अपना सकते हैं। पुनर्जन्म प्राचीन हिंदू विश्वास है। हिंदू विवेक में इस धारणा के प्रति भी अंधविश्वास नहीं है। यह शास्त्रों में भी बहस का विषय रहा है। अंधविश्वास रहित लोकतंत्र हिंदुओं की ही देन है। हिंदू धर्म में धर्म के अतिक्रमण की भी परंपरा है। हिंदुत्व को सांप्रदायिक, हिंसक सिद्ध करने का कुत्सित प्रयास मुस्लिम वोट बैंक लोभी दलतंत्र ने किया।

नि:संदेह हिंदू और हिंदुत्व को आतंकी सिद्ध करना विश्व के 1.5 अरब से ज्यादा लोगों का अपमान करने जैसा है। हिंदू अपनी क्षमता, प्रतिभा, योग्यता के साथ दुनिया की संपन्नता-सुख के लिए सक्रिय हैं, लेकिन यही हिंदू एक बार फिर से लांछित और अपमानित किए गए हैं। मूलभूत प्रश्न है कि हिंदू कब तक अपमानित होंगे। सहनशीलता की भी कोई सीमा होती है। यह शुभ संकेत है कि हिंदू समाज जाग गया है। ऐसे कथन बर्दाश्त के बाहर हैं।

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