मराठा आरक्षण की मांग का इतिहास और इसका कोटा
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय द्वारा एक बार फिर से शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नियुक्तियों में आरक्षण की मांग की गई है।
- इतिहास:
- मराठा जातियों का एक समूह है, जिसमें किसानों और ज़मींदारों के अलावा अन्य व्यक्ति शामिल हैं, जो राज्य की आबादी का लगभग 33% है।
- हालाँकि अधिकांश मराठा, मराठी भाषी हैं, किंतु सभी मराठी भाषी व्यक्ति मराठा समुदाय से नहीं हैं।
- ऐतिहासिक रूप से उनकी पहचान बड़ी भूमि जोत वाली ‘योद्धा’ जाति के रूप में की गई है।
- हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में भूमि विखंडन, कृषि संकट, बेरोज़गारी एवं शैक्षिक अवसरों की कमी जैसे कारकों के कारण कई मराठा लोगों को सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन का सामना करना पड़ा है। यह समुदाय अभी भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- इसलिये वे सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBC) की श्रेणी के तहत सरकारी नियुक्तियों तथा शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की मांग कर रहे हैं।
- मराठा जातियों का एक समूह है, जिसमें किसानों और ज़मींदारों के अलावा अन्य व्यक्ति शामिल हैं, जो राज्य की आबादी का लगभग 33% है।
- मराठा आरक्षण मांग की स्थिति:
- वर्ष 2017:
- सेवानिवृत्त न्यायाधीश एन जी गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले 11 सदस्यीय आयोग ने सिफारिश की कि मराठों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBC) के तहत आरक्षण दिया जाना चाहिये।
- वर्ष 2018:
- महाराष्ट्र विधानसभा ने मराठा समुदाय के लिये 16% आरक्षण का प्रस्ताव वाला विधेयक पारित किया।
- वर्ष 2018:
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने आरक्षण को बरकरार रखते हुए कहा कि इसे 16% के बजाय शिक्षा में 12% और नौकरियों में 13% किया जाना चाहिये।
- वर्ष 2020:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इसके कार्यान्वयन पर रोक लगा दी और मामले को एक बड़ी पीठ के लिये भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया।
- वर्ष 2021:
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1992 में निर्धारित कुल आरक्षण पर 50% की सीमा का हवाला देते हुए वर्ष 2021 में मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया।
- 12% एवं 13% (क्रमशः शिक्षा और नौकरियों में) के मराठा आरक्षण ने कुल आरक्षण सीमा को क्रमशः 64% और 65% तक बढ़ा दिया था।
- इंदिरा साहनी फैसले, 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि आरक्षण की सीमा 50% होगी केवल कुछ असामान्य और असाधारण स्थितियों में दूर-दराज़ के क्षेत्रों की आबादी को मुख्यधारा में लाने के लिये आरक्षण में 50% की छूट दी जा सकती है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि महाराष्ट्र में राज्य सरकार द्वारा सीमा का उल्लंघन करने की कोई “असाधारण परिस्थिति” या “असाधारण स्थिति” नहीं थी।
- इसके अलावा न्यायालय ने फैसला सुनाया कि राज्य के पास किसी समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े का दर्जा देने का कोई अधिकार नहीं है। न्यायालय के अनुसार, केवल राष्ट्रपति ही सामाजिक और पिछड़े वर्गों की केंद्रीय सूची में बदलाव कर सकता है, राज्य केवल “सुझाव” दे सकते हैं।
- बेंच ने सर्वसम्मति से 102वें संविधान संशोधन की संवैधानिक वैधता को बनाए रखा, लेकिन इस सवाल पर मतभेद था कि क्या इससे SEBC की पहचान करने की राज्यों की शक्ति प्रभावित होगी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मराठा समुदाय के लिये अलग आरक्षण अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (कानून की उचित प्रक्रिया) का उल्लंघन करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1992 में निर्धारित कुल आरक्षण पर 50% की सीमा का हवाला देते हुए वर्ष 2021 में मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया।
- वर्ष 2022:
- नवंबर 2022 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये 10% कोटा बनाए रखने के बाद राज्य सरकार ने कहा कि जब तक मराठा आरक्षण का मुद्दा हल नहीं हो जाता, तब तक समुदाय के आर्थिक रूप से कमज़ोर सदस्य EWS कोटा से लाभ उठा सकते हैं।
- वर्ष 2017:
2018 का 102वाँ संशोधन अधिनियम:
- इसने संविधान में अनुच्छेद 338B और 342A प्रस्तुत किया।
- अनुच्छेद 338B नव स्थापित राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से संबंधित है।
- अनुच्छेद 342A राष्ट्रपति को किसी राज्य में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े समुदायों को निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है।
- इसमें कहा गया है कि आरक्षण का लाभ देने हेतु सामाजिक और पिछड़े वर्गों के लिये किसी समुदाय को केंद्रीय सूची में शामिल करना संसद का कार्य है।
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