होलोकाॅस्ट दिवस: मानवता के शर्मसार की कथा 

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1939-45 के बीच 60 लाख यहुदियों को जलाकर मार डाला गया था

होलोकाॅस्ट का मतलब होता है जलाकर मार डालना

✍️  राजेश पाण्डेय

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क


आज होलोकास्ट दिवस है यह दिन उस नस्लीये नरसंहार को याद करने के लिए मनाया जाता है, जब विश्व की सबसे बड़ी त्रासदी में से एक, यहूदियों को हिटलर ने जलाकर मार डाला था।
समय द्वितीय विश्व युद्ध का था। स्थान यूरोप का था। जर्मनी में हिटलर के नाजी का शासन था। हिटलर को इस बात का विश्वास हो गया था की प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी के हार का कारण ये यहूदी ही रहे। जिन्होंने देश को धोखा दिया है। देश के युद्ध होने पर भी इन लोगों ने सहयोग नहीं किया। यह पूरा समुदाय षड्यंत्रकारी है। इन्हें समाप्त करके ही जर्मनी का वैभव लौटाया जा सकता है।

होलोकाॅस्ट घटना के स्रौत

कई देशों के हस्तक्षेप के बाद 27 जनवरी 1945 को आशितवज कैंप से 7000 यहूदियों को छुड़ाया गया। था।यह कैंप पोलैंड में स्थित था जिसे यातना शिविर के रूप में हिटलर ने बसा रखा था। पूरे यूरोप से ट्रेनों में भर-भर कर यहूदी ले आये जाते थे। इस शिविर में रखे जाते थे, वहीं इन्हें गैस चैंबर में डालकर मार दिया जाता फिर उन्हें जलकर खत्म कर दिया जाता। पूरे यूरोप में इसका कोई विरोध नहीं करता था क्योंकि हिटलर ने जनमानस को यह समझा दिया था कि तुम्हारी गरीबी, बदहाली का प्रमुख कारण ये यहूदी है, जिन्होंने पूरे यूरोप के धन संपदा पर कब्जा कर रखा है,

यह किसी के भरोसे लायक नहीं है यह अआर्य हैं, इन्हें खत्म करके ही हम अपनी खुशहाली और समृद्धि ला सकते हैं इनके ही कारण जर्मनी प्रथम युद्ध में प्रथम विश्व युद्ध में हार गया था। देश कई प्रकार के आर्थिक दंडों का सामना करना पड़ा था।


इन सारे प्रकरणों को आप ‘ऐनी फ्रेंक की डायरी’, हिटलर की आत्मकथा (मिनकाॅफ) और स्टीफन स्पीलबर्ग की फिल्म ‘शिंडलर्र लिस्ट’ से समझ सकते है। 1939 से 1945 तक प्रत्येक दिन 12000 यहूदियों को हिटलर के सैनिक जलाकर मार डालते थे। तत्कालीन समय के यूरोप में 90 लाख यहूदी रहते थे, जिनमें से 60 लाख यहूदियों को मार डाला गया इसमें 15 लाख बच्चे थे।

विश्व की दस त्रासदियों में से प्रथम त्रासदी के रूप में होलोकाॅस्ट का नाम आता है।विश्व के देश में यहूदी नागरिक एवं आज पूरे इजरायली शोक सभा का आयोजन करते हुए अपने पूर्वजों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।

दिवस की हमारे लिए प्रासांगिकता

भारत में विविधता की एकता है। परन्तु कभी-कभी चुनाव, त्यौहार एवं उत्सव के समय सामुदायिक तनाव बढ़ जाते है। एक दूसरे के प्रति घृणा की भावना चरम पर पहुंच जाती है।

परन्तु अंध अनुकरणीयता उस स्तर तक नहीं पहुंचनी चाहिए कि अमुक समुदाय को ही समाप्त कर दिया जाए। सभी समुदाय से हमारा सामंजस्य हो। किसी भी समुदाय के प्रति घृणा हमारे हृदय एवं मस्तिष्क में नहीं आए। इस दिवस से हम भारतवासी यह सीख ले सकते है। परन्तु इतिहास की यह बर्बर वृतांत मानवता के शर्मसार होने की कथा सुनाती रहेगी।

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