खौफनाक घटनाएं ने बढ़ाई सरकार की चिंता, प्रभावित होगा सामाजिक तानाबाना.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जितना चिंताजनक यह है कि कश्मीर में कश्मीरी सिखों और हिंदुओं को निशाना बनाने के साथ गैर कश्मीरियों पर चुन-चुनकर हमले किए जा रहे हैं, उतना ही यह भी कि पड़ोसी देश बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर जिहादियों के कहर का सिलसिला थम नहीं रहा है। कश्मीर और बांग्लादेश की ये खौफनाक घटनाएं केवल भारत सरकार की चिंता बढ़ाने वाली ही नहीं, देश के सामाजिक तानेबाने को प्रभावित करने वाली भी हैं।
स्पष्ट है कि न केवल केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारों को सावधान रहना होगा, बल्कि आम लोगों को भी। इसमें किसी को तनिक भी संदेह नहीं होना चाहिए कि देश विरोधी ताकतें और खासकर पाकिस्तान यह चाहता है कि कश्मीर और बांग्लादेश की घटनाएं हमारे सामाजिक सद्भाव को चोट पहुंचाएं और वह उसका बेजा लाभ उठाए।
पाकिस्तान केवल कश्मीर को ही आतंक और अस्थिरता की आग में झोंकने का काम नहीं कर रहा है। वह बांग्लादेश के कट्टरपंथियों को भी खाद-पानी दे रहा है। बांग्लादेश के गृह मंत्री की मानें तो हिंदुओं पर हमले के लिए जमात-ए-इस्लामी जैसे वे संगठन जिम्मेदार हैं, जिनका सीधा संपर्क पाकिस्तान से है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से पाकिस्तान नए सिरे से अपने आसपास आतंकवाद भड़काने में जुट गया है।
भारत को उसके इन खतरनाक इरादों पर पानी फेरने में सफलता तब मिलेगी, जब देश के लोग एकजुटता दिखाएंगे और सद्भाव विरोधी तत्वों को हतोत्साहित करेंगे। इस एकजुटता में सभी दलों को बिना किसी किंतु-परंतु भागीदार बनना होगा। यदि वे देश के सबसे बड़े शत्रु के खिलाफ एकजुट नहीं होंगे तो किसके खिलाफ होंगे?
यह ठीक नहीं है कि जब कहीं अधिक सतर्क रहने एवं संयम बरतने की आवश्यकता है, तब कुछ लोग उत्तेजना फैलाने और माहौल खराब करने का काम कर रहे हैं। बंगाल में इंडियन सेक्युलर फ्रंट बनाकर कांग्रेस और वाम दलों के सहयोग से चुनाव लड़ने वाले फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने बांग्लादेश की घटनाओं को लेकर जिस तरह जहर उगला और वहां के निरीह हिंदुओं पर बर्बर हमलों को जायज ठहराया, उससे यही पता चलता है कि कैसे खतरनाक तत्व राजनीति में घुसकर समाज में विष घोल रहे हैं।
इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि विभिन्न दलों के नेताओं ने इस मौलाना के बयान की निंदा की, क्योंकि बंगाल सरकार को तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। इसलिए और भी, क्योंकि बांग्लादेश की घटनाओं का सबसे ज्यादा असर बंगाल में ही पड़ने का अंदेशा है।
यह ठीक नहीं कि अपने साथियों की हत्याओं से डरे-सहमे मजदूरों ने पलायन करना शुरू कर दिया है। यदि यह पलायन नहीं रुका तो दहशत बढ़ने के साथ ही कश्मीर की आर्थिकगतिविधियां भी ठप हो सकती हैं, क्योंकि उनके बगैर घाटी का काम चलने वाला नहीं है। बेहतर हो कि इस बात को कश्मीरी जनता भी समङो और वह अन्य प्रांतों के मजदूरों को भरोसा दिलाने के लिए आगे आए। यह काम निदरेष-निहत्थे लोगों को निशाना बना रहे आतंकियों की निंदा करने की रस्म अदायगी से होने वाला नहीं है।
दुर्भाग्य से कश्मीर में असर रखने वाले दल और खासकर नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के नेता ऐसा ही करते दिख रहे हैं। जहां महबूबा मुफ्ती आतंकियों के खिलाफ एक शब्द कहने को तैयार नहीं, वहीं फारूक अब्दुल्ला गैर कश्मीरियों की हत्या को कश्मीर के खिलाफ साजिश बता रहे हैं। वह यह नहीं बताना चाहते कि यह साजिश कौन कर रहा है और किसके इशारे पर?
यह समझने की जरूरत है कि ऐसे नेता कश्मीर के हालात सुधारने में मददगार नहीं बन सकते। वैसे भी यह किसी से छिपा नहीं कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद उन्होंने किस तरह जहर उगलने के साथ देश को धमकाने वाले बयान दिए थे। ऐसे नेताओं को हतोत्साहित करना होगा और इसमें सफलता तब मिलेगी जब शेष देश से पक्ष-विपक्ष के दलों की ओर से एक सुर में आवाज उठाई जाएगी। कश्मीर से उठते सवाल दलगत राजनीति का नहीं, राष्ट्र के मान-सम्मान का विषय हैं।
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