डेयरी क्षेत्र पर बढ़ते तापमान और हीट स्ट्रेस का प्रभाव कैसे पड़ रहा है?
भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बना हुआ है।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
वर्ष 2022 में ‘लैंसेट’ में प्रकाशित एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि बढ़ते तापमान से वर्ष 2085 में सदी के अंत तक भारत के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में दुग्ध उत्पादन 25% तक कम हो सकता है।
शुष्क और अर्ध-क्षेत्रों के लिये दुग्ध उत्पादन में कमी का यह अनुमान पाकिस्तान (28.7% ) के बाद भारत में दूसरा सबसे अधिक है। आर्द्र और उप-आर्द्र क्षेत्रों में यह कमी 10% तक अनुमानित की गई थी।
हीट स्ट्रेस का मवेशियों पर प्रभाव:
- उच्च तापमान गाय के प्राकृतिक मेटिंग व्यवहार को प्रदर्शित करने की क्षमता को प्रभावित करता है, क्योंकि यह ओस्ट्रस (मादा पशु की मेटिंग के लिये तत्परता) अभिव्यक्ति की अवधि और तीव्रता दोनों को कम करता है।
- अध्ययन के अनुसार गर्मी के मौसम में मवेशियों की गर्भधारण दर में 20% से 30% के बीच कमी आ सकती है।
- लैंसेट के अध्ययन से यह भी पता चलता है कि स्तनपान कराने वाली दुधारू गायों में स्तनपान न कराने वाली गायों की तुलना में हीट स्ट्रेस के प्रति संवेदनशीलता अधिक होती है।
- इसके अलावा, दूध के उत्पादन और ऊष्मा उत्पादन के बीच सकारात्मक संबंध (अधिक दूध देने वाली गायें शुष्क गायों की तुलना में अधिक ऊष्मा उत्सर्जित करती हैं।) के कारण, अधिक दूध देने वाली गायों को कम दूध देने वाले पशुओं की तुलना में हीट स्ट्रेस से अधिक परेशानी होती है।
- देश का दुग्ध उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। हालाँकि बढ़ते तापमान का असर, विशेषकर संकर नस्ल की गायों पर पड़ने से घरेलू मांग को पूरा करना मुश्किल हो जाएगा और अंततः प्रति व्यक्ति खपत में गिरावट आ सकती है।
- जलवायु परिवर्तन से डेयरी क्षेत्र के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होने की संभावना है।
- सीधा प्रभाव:
- तापमान-आर्द्रता सूचकांक में बदलाव के कारण पशुओं को होने वाला तनाव सीधे तौर पर दुग्ध उत्पादन को प्रभावित करेगा।
- अप्रत्यक्ष प्रभाव:
- मवेशियों के लिये चारण और जल की उपलब्धता पर प्रतिकूल जलवायु स्थितियों का अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
- सीधा प्रभाव:
भारत में दुग्ध-उत्पादन की स्थिति:
- ‘आधारभूत पशुपालन सांख्यिकी- 2022’ के अनुसार, सत्र 2021-2022 में भारत में कुल दुग्ध उत्पादन 221.06 मिलियन टन था, जिसके कारण भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बना हुआ है।
- देश में कुल दुग्ध उत्पादन में स्वदेशी नस्ल के मवेशियों का योगदान 10.35% है, जबकि गैर-वर्णित मवेशियों का योगदान 9.82% और गैर-वर्णात्मक भैंसों का योगदान देश के कुल दुग्ध उत्पादन में 13.49% है।
- शीर्ष पाँच प्रमुख दुग्ध उत्पादक राज्य राजस्थान (15.05%), उत्तर प्रदेश (14.93%), मध्य प्रदेश (8.06%), गुजरात (7.56%) और आंध्र प्रदेश (6.97%) हैं।
- वैश्विक दुग्ध उत्पादन में भारत का योगदान लगभग 23% है।
डेयरी किसानों की समस्याएँ:
- सामने किये गए मुद्दे:
- किसानों का आरोप है कि सरकार ने मूल मुद्दों का समाधान करने के बदले ऐसी नीतियाँ पेश की हैं जिनसे देश की दुग्ध उत्पादकता में और कमी आने का खतरा है।
- ऐसी ही एक नीति दुधारू मवेशियों का लिंग-आधारित वीर्य उत्पादन है, जिसका लक्ष्य “90% सटीकता” के साथ केवल मादा बछड़े पैदा कराना है। ऐसा दुग्ध उत्पादन बढ़ाने और आवारा मवेशियों की आबादी को नियंत्रित करने के लिये किया गया है।
- अगले पाँच वर्षों में, कार्यक्रम के तहत 5.1 मिलियन मवेशियों का गर्भाधान कराया जाएगा, जो सुनिश्चित गर्भाधान पर 750 रुपए या लिंग-आधारित वीर्य की लागत का 50% सब्सिडी प्रदान करता है।
- इस नीति का दुष्परिणाम नर मवेशियों को नज़रअंदाज़ करना और धीरे-धीरे उनकी संख्या कम करना है।
- मादा मवेशियों की संख्या में वृद्धि:
- कृत्रिम गर्भाधान और प्राकृतिक सेवा में 50% नर बछड़े और 50% मादा बछड़े होते हैं। इस नीति के तहत मादा मवेशियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना है।
- सरकार ने इस बात को अनदेखा कर दिया है कि नर मवेशियों का प्रयोग कृषि कार्यों में ऊर्जा स्रोत के रूप में किया जा सकता है।
- मादा पशुओं की जनन क्षमता समाप्त हो जाने के बाद उनकी उपयोगिता भी एक मुद्दा है, क्योंकि कई राज्यों में मवेशियों की हत्या विरोधी नियमों के कारण गायों को बेचना मुश्किल हो गया है।
कृत्रिम गर्भाधान:
- परिचय:
- कृत्रिम गर्भाधान मादा नस्लों में गर्भधारण की एक नवीन विधि है।
- यह मवेशियों में जननांग संबंधित बीमारियों को फैलने से भी रोकता है जिससे नस्ल की दक्षता बढ़ती है।
- कमियाँ:
- मवेशियों की प्राकृतिक मेटिंग को अनदेखा कर या रोककर कृत्रिम रूप से प्रजनन करवाना सैद्धांतिक रूप से क्रूरता है, कृत्रिम गर्भाधान प्रक्रिया से होने वाली क्रूरता या दर्द का ज़िक्र आमतौर पर नहीं किया जाता है।
आगे की राह
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिये पशु प्रजनन और प्रबंधन प्रथाओं में अनुसंधान एवं नवाचार को प्रोत्साहित करना।
- सतत् कृषि पद्धतियों और डेयरी संचालन के लिये नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देना।
- ऐसी नीतियों का समर्थन करना जो नर और मादा दोनों प्रकार के मवेशियों के कल्याण पर विचार करे।
- उन मादा मवेशियों के नैतिक प्रबंधन के लिये विकल्पों का अन्वेषण करना चाहिये जिनकी जनन क्षमता समाप्त हो जाती हैं।
- चूँकि जलवायु परिवर्तन एक चुनौती है जो हम सभी को प्रभावित करती है, तो डेयरी क्षेत्र को न केवल अनुकूलन रणनीतियाँ विकसित करनी चाहिये बल्कि डेयरी क्षेत्र में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के लिये योगदान देकर सहायता करनी चाहिये।
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