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पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का एग्जिट पोल,क्या होते हैं ये, कैसे किये जाते हैं? - श्रीनारद मीडिया

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का एग्जिट पोल,क्या होते हैं ये, कैसे किये जाते हैं?

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का एग्जिट पोल,क्या होते हैं ये, कैसे किये जाते हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देश के पांच राज्यों में नई सरकार चुनने के लिए विधानसभा चुनाव के तहत चार राज्यों असम, तमिलनाडु, केरल व पुड्डुचेरी के मतदाता अपना फैसला दे चुके हैं। आज पश्चिम बंगाल के आठवें चरण के चुनाव के पूरा होते ही पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। 2 मई को पांचों राज्यों के चुनावी नतीजे आएंगे लेकिन इससे पहले ही एग्जिट पोल के जरिए अनुमान बता देगा कि इन राज्यों में किसकी सरकार बनने जा रही है। चुनाव के बाद एग्ज़िट पोल सामने आते हैं। हम बता रहे हैं कि एग्ज़िट पोल आखिर होता क्या है। एग्ज़िट पोल कैसे होता है।

क्या होता है एग्ज़िट पोल?

एग्ज़िट पोल चुनावी सर्वे का एक हिस्सा है। जब वोटर अपना वोट डालकर मतदान केंद्र से बाहर निकल रहा होता है तो उससे सवाल किया जाता है कि उसने किसे वोट दिया। इसी प्रक्रिया को व्यापक स्तर पर किया जाता है और बड़े स्तर पर जो नतीजे निकल कर आते हैं, वो एग्ज़िटपोल कहलाता है। एग्ज़िट पोल मतदान संपन्न होने के बाद दिखाया जाता है।

क्यों करते हैं एग्ज़िट पोल?

एग्ज़िट पोल करने वाला व्यक्ति वोटर का डेमोग्राफिक डाटा इकट्ठा करता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि उसने जिसे वोट किया उसके पीछे क्या फैक्टर्स थे। चूंकि लोगों द्वारा डाले गए वोट गोपनीय होते हैं। ऐसे में एग्ज़िट पोल ही एकमात्र रास्ता है, जिससे ये जानकारी इकट्ठा की जा सकती है। भारत में एग्ज़िट की शुरुआत करने का श्रेय इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन के चीफ एरिक डी. कॉस्टा को जाता है। चुनाव के दौरान एग्ज़िट पोल की मदद से जनता के मिजाज को परखने वाले वे पहले व्यक्ति थे।

कैसे करते हैं एग्ज़िट पोल?

मतदान के दौरान अलग-अलग बूथों पर डाले जा रहे वोट एक समान नहीं होते और सुबह से शाम तक वोटिंग पैटर्न में बदलाव भी आते हैं। ऐसे में पूरे दिन में किया गया सिर्फ एक सर्वे गलत तस्वीर पेश कर सकता है। इसलिए एग्ज़िट पोल मुख्य रूप से स्विंग (उतार-चढ़ाव) और टर्नआउट कैलकुलेट करते हैं। सर्वे करने वाला व्यक्ति हर चुनाव में उसी बूथ पर वापस जाता है जिस बूथ पर वो हर बार जाता रहा है। वह उसी वक्त बूथ पर जाता है जिस वक्त वह पिछली बार गया था। इसके बाद जुटाए गए आंकड़ों की तुलना पिछले एग्ज़िट पोल से की जाती है। फिर ये कैलकुलेट किया जाता है कि विधानसभा क्षेत्र में वोटों के बंटवारे में कैसे उतार-चढ़ाव आए। इस उतार-चढ़ाव को उसी तरह के दूसरे विधानसभा क्षेत्र में अप्लाई किया जाता है और फिर जो नतीजे निकल कर आते हैं उन्हें एग्ज़िट पोल में दिखाया जाता है।

एग्जिट पोल पर प्रतिबंध

शुरुआती दिनों में ओपिनियन पोल जिस तेजी के साथ लोकप्रिय हुआ, उतनी ही तेजी से वह राजनीतिक दलों खटकने लगा। लिहाजा सभी दल एक सुर में इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने लगे। 1999 में चुनाव आयोग ने बाकायदा एक एक्जीक्यूटिव ऑर्डर के तहत ओपिनियन पोल और एक्जिट पोल को प्रतिबंधित कर दिया। एक समाचार पत्र ने आयोग के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने इस आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि आयोग के पास ऐसे ऑर्डर जारी करने की शक्ति नहीं है और किसी मसले पर सर्वदलीय सर्वसम्मति उसके खिलाफ कानूनी प्रतिबंध का आधार नहीं होती है।

दोबारा प्रयास

2009 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर इसे प्रतिबंधित किए जाने की मांग जोरों से उठने लगी। लिहाजा आयोग ने कानून मंत्रालय को प्रतिबंध के संदर्भ में कानून में बदलाव के लिए तुरंत एक अध्यादेश लाए जाने संबंधी पत्र लिखा। 2009 में संप्रग सरकार ने जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में संशोधन कर दिया। संशोधित कानून के अनुसार चुनावी प्रक्रिया के दौरान जब तक अंतिम वोट नहीं डाल दिया जाता, एक्जिट पोल नही किया जा सकता है। कोई भी पोल के नतीजों को न तो दिखा सकता है और न ही प्रकाशित कर सकता है।

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