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भारत नई विश्व व्यवस्था को किस प्रकार आकार दे सकता है? - श्रीनारद मीडिया

भारत नई विश्व व्यवस्था को किस प्रकार आकार दे सकता है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

यह स्पष्ट है कि शीत युद्धोत्तर बहुपक्षीयता जिसमें विभिन्न देशों के बीच सहयोग शामिल है, वैश्विक और क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर अपने निम्न स्तर पर पहुँच गया है। हाल ही में जकार्ता में आयोजित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (East Asia Summit) और दिल्ली में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन से यह परिदृश्य स्पष्ट हो गया है, जो वैश्विक सहयोग की पिछली प्रणाली में विद्यमान गंभीर और संभवतः स्थायी समस्याओं को रेखांकित करते हैं।

शीत युद्धोत्तर बहुपक्षीयता वर्ष 1991 में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद की अवधि को संदर्भित करती है, जब विश्व भर के कई देश व्यापार, सुरक्षा, मानवाधिकार और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर विभिन्न प्रकार के सहयोग एवं समन्वय में संलग्न हुए थे। यह दो महाशक्तियों- संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ तथा उनके अपने-अपने सहयोगियों के बीच बड़े संघर्षों की अनुपस्थिति से सुगम हुआ। शीत युद्धोत्तर बहुपक्षीयता लोकतंत्र, विधि का शासन और मुक्त बाज़ार जैसे उदारवादी सिद्धांतों पर आधारित थी तथा इसे संयुक्त राष्ट्र (United Nations), यूरोपीय संघ (EU), आसियान ASEAN) और विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसी संस्थाओं का समर्थन प्राप्त था।

नई विश्व व्यवस्था (New World Order) क्या है?

नई बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था (new multilateral world order) पद 21वीं सदी में विभिन्न देशों और क्षेत्रों के बीच सहयोग एवं संवाद के नए रूपों के उद्भव को संदर्भित करता है। यह वैश्वीकरण, जलवायु परिवर्तन, महामारी, आतंकवाद और अन्य मुद्दों से उत्पन्न चुनौतियों एवं अवसरों पर एक प्रतिक्रिया है जिसके लिये सामूहिक कार्रवाई और साझा समाधान की आवश्यकता होती है।

नई बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था की कुछ प्रमुख बातें:

  • विकासशील विश्व और ‘वैश्विक दक्षिण’ (Global South) से वृहत अभिव्यक्तियों और दृष्टिकोणों को शामिल करने के लिये संयुक्त राष्ट्र , IMF और विश्व बैंक जैसे मौजूदा बहुपक्षीय संस्थानों का विस्तार एवं विविधीकरण
  • ब्रिक्स (BRICS), अफ्रीकी संघ(AU), आसियान (ASEAN) और यूरोपीय संघ (EU) जैसे नए क्षेत्रीय एवं उप-क्षेत्रीय संगठनों का निर्माण और सुदृढ़ीकरण, जिनका उद्देश्य क्षेत्रीय एकीकरण, विकास, सुरक्षा एवं सहयोग को बढ़ावा देना है।
  • अनौपचारिक नेटवर्कों और पहलों का उद्भव—जैसे अलायंस फॉर मल्टीलैट्रलिज़्म (Alliance for Multilateralism), G20 और क्वाड (QUAD), जो ऐसे विशिष्ट मुद्दों या चुनौतियों के समाधान पर लक्षित हैं, जो राष्ट्रीय सीमाओं से परे असर रखता हैं और समन्वित कार्रवाई की मांग करते हैं।
  • विश्व की बहुध्रुवीय वास्तविकता को चिह्नित करना, जहाँ कोई भी एक देश या गुट वैश्विक एजेंडे पर हावी नहीं हो सकता या उसे निर्देशित नहीं कर सकता और जहाँ विभिन्न अभिकर्ताओं को सहमति और पारस्परिक लाभ की खोज में संवाद एवं समझौता वार्ता में शामिल होना पड़ता है।

मौज़ूदा बहुपक्षीयता के पतन के पीछे के प्रमुख कारण:

  • चीन का उदय और उसका विस्तारवाद: मौजूदा बहुपक्षीयता के पतन के पीछे के प्राथमिक कारणों में से एक है वैश्विक आर्थिक एवं सैन्य शक्ति के रूप में चीन का उदय। एशिया में और वैश्विक स्तर पर चीन की विस्तारवादी नीतियाँ मौजूदा बहुपक्षीय व्यवस्था को चुनौती देती हैं। पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं को बदलने के इसके एकतरफा प्रयासों और इसके मुखर क्षेत्रीय विस्तारवाद ने तनाव उत्पन्न किये हैं तथा क्षेत्रीय एवं वैश्विक संस्थाओं को अस्थिर कर दिया है।
  • चीन की ओर से आर्थिक और सुरक्षा संबंधी खतरे: चीन द्वारा उत्पन्न आर्थिक और सुरक्षा संबंधी खतरों ने संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और भारत जैसे देशों को चीन के साथ अपने संबंधों के पुनर्मूल्यांकन के लिये विवश किया है। इस क्रम में चीन के ऊपर व्यापक आर्थिक अंतर निर्भरता को जोखिम-मुक्त करने के प्रयास शुरू हो गए हैं, जिसका मौजूदा बहुपक्षीय आर्थिक संस्थानों पर प्रभाव पड़ रहा है।
  • रूस की कार्रवाई: वर्ष 2014 में यूक्रेन के क्रीमिया पर रूस के आक्रमण एवं अधिग्रहण ने शीत युद्धोत्तर सुरक्षा व्यवस्था के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती को चिह्नित किया, विशेष रूप से यूरोप में। इस घटना ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में दरार और संघर्ष पैदा कर बहुपक्षीयता को बाधित कर दिया।
  • बहुपक्षीय प्रणाली के भीतर मौजूद विरोधाभास: बहुपक्षीय प्रणाली को स्वयं आंतरिक विरोधाभासों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। सदस्य देशों के बीच इन आंतरिक असहमतियों और परस्पर-विरोधी हितों ने बहुपक्षीय संगठनों की प्रभावशीलता को कमज़ोर कर दिया है तथा सर्वसम्मति निर्माण में बाधा उत्पन्न की है।
  • वैकल्पिक सुरक्षा मंचों का उदय: चीन के विस्तारवाद की प्रतिक्रिया में क्वाड (QUADS), AUKUS और ट्राईलैटेरल कॉम्पैक्ट्स (trilateral compacts) जैसे वैकल्पिक सुरक्षा मंच सामने आए हैं। ये मंच पारंपरिक बहुपक्षीय संस्थानों से परे एक बदलाव को दर्शाते हैं, जिससे आसियान जैसे मौजूदा क्षेत्रीय संगठनों की निरंतर प्रासंगिकता एवं केंद्रीयता पर सवाल खड़े होते हैं।
  • प्रमुख खिलाड़ियों के बदलते परिप्रेक्ष्य: भारत जैसे प्रमुख खिलाड़ियों के बदलते दृष्टिकोण ने भी मौजूदा बहुपक्षीयता के पतन में योगदान दिया है। अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के बारे में भारत के उभरते दृष्टिकोण—जो चीन के प्रभुत्व वाले ‘एकध्रुवीय एशिया’ के बारे में चिंताओं से हटकर संयुक्त राज्य अमेरिका एवं उसके सहयोगियों के साथ अधिक सक्रिय संलग्नता की ओर बढ़ा है—ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बहुपक्षीयता की गतिशीलता को बदल दिया है।
  • वैश्विक वित्तीय संकट और G7 का विस्तार: वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने G7(Group of Seven) का विस्तार करने की आवश्यकता को रेखांकित किया ताकि इसमें मध्य शक्तियों को शामिल करते हुए वैश्विक आर्थिक स्थिरता को पुनर्बहाल किया जा सके। हालाँकि यह वैश्विक चुनौतियों से निपटने की दिशा में एक सकारात्मक कदम था, इसने मौजूदा बहुपक्षीय ढाँचे की सीमाओं को भी उजागर किया।

भारत नई विश्व व्यवस्था को किस प्रकार आकार दे सकता है?

  • भारत विधि के शासन, संप्रभुता के लिये सम्मान और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान पर आधारित मुक्त एवं खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रसार के लिये क्वाड और आसियान के साथ-साथ विभिन्न अन्य क्षेत्रीय एवं उप-क्षेत्रीय मंचों में अग्रणी भूमिका निभा सकता है।
    • भारत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता से उत्पन्न चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिये समान विचारधारा वाले देशों के साथ अपने समुद्री सुरक्षा सहयोग को भी आगे बढ़ा सकता है।
  • भारत अपने व्यापार एवं निवेश साझेदारों में (विशेष रूप से ‘वैश्विक दक्षिण’ के देशों के साथ) विविधता लाकर और विनिर्माण, सेवाओं एवं नवाचार जैसे प्रमुख क्षेत्रों में अपनी घरेलू क्षमताओं का विकास कर पुन:वैश्वीकरण की प्रक्रिया (re-globalisation process) में योगदान दे सकता है।
    • भारत एक अधिक लोकतांत्रिक और न्यायसंगत वैश्विक शासन प्रणाली का भी वकालत कर सकता है जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं की वास्तविकताओं एवं आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करें।
  • भारत G20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी का उपयोग एक वैश्विक नेता के रूप में अपने विज़न और उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन सतत विकास, स्वास्थ्य सुरक्षा एवं डिजिटल परिवर्तन जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सर्वसम्मति का निर्माण करने के एक अवसर के रूप में कर सकता है।
  • भारत साझा हितों एवं चुनौतियों को उज़ागर करके और समावेशी एवं व्यावहारिक समाधान प्रस्तावित करके विकसित और विकासशील देशों के बीच की खाई को पाटने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
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