भारत नए वैश्वीकरण का उपयोग अपने लाभ के लिये कैसे कर सकता है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
वैश्वीकरण (Globalisation) के लाभ स्पष्ट और अभेद्य रूप से प्रकट हुए हैं; हालाँकि, चूँकि हाल के वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था एक दबाव की शिकार हुई है, कंपनियों और सरकारों द्वारा वैश्विक व्यापार एवं निवेश को पृथक करने की गति में वृद्धि देखी गई है।
- वैश्विक ढाँचों पर भरोसा करने के बजाय दुनिया के देश अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिये तेज़ी से क्षेत्रीय या द्विपक्षीय व्यापार समझौतों की ओर रुख कर रहे हैं। प्रवृत्ति में इस परिवर्तन के लिये उभरते आर्थिक राष्ट्रवाद (Economic Nationalism), बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और अपने वादों की पूर्ति में विभिन्न बहुपक्षीय संस्थानों की विफलता जैसे कारकों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
- वैश्वीकरण के इस खंडित रूप का दुनिया भर के देशों के लिये अवसरों और चुनौतियों दोनों ही विषयों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और सहयोग के भविष्य के लिये गहरा प्रभाव पड़ा है।
वैश्वीकरण से क्या तात्पर्य है?
- वैश्वीकरण का उभार: जिसे आज ‘वैश्वीकरण’ के रूप में जाना जाता है, उसे शीत युद्ध की समाप्ति और वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ भारत में मान्यता प्राप्त हुई।
- दो प्रणालियों- लोकतंत्र और पूंजीवाद की एक शाखा के रूप में वैश्वीकरण मुक्त व्यापार (Free Trade) पर बल रखता है और इसने पूंजी एवं श्रम के अंतर-देश गमन की वृद्धि में योगदान किया है।
- राजनीतिक अर्थ में, यह अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के माध्यम से बढ़ते वैश्विक शासन या राष्ट्रीय नीतियों के बढ़ते संरेखण को संदर्भित करता है।
- वैश्वीकरण के लिये प्रेरक कारक: मोटे तौर पर आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक, प्रौद्योगिकीय और सामाजिक कारकों ने वैश्वीकरण का मार्ग प्रशस्त किया है।
- आर्थिक कारकों में कम व्यापार एवं निवेश बाधाएँ और वित्तीय क्षेत्र के विस्तार जैसे कारक शामिल हैं;
- राजनीतिक कारकों में व्यापार एवं वाणिज्य को सुविधाजनक बनाने के लिये दुनिया भर में सरकार की नीतियों में सुधार शामिल हैं;
- सामाजिक कारकों में परिवहन और संचार में उल्लेखनीय सरलता के साथ-साथ सांस्कृतिक अभिसरण शामिल हैं; और
- प्रौद्योगिकी कारकों में विश्व भर में सूचना प्रसारित करने में आसानी और हाल में दूरस्थ कार्य की ओर तेज़ी से आगे बढ़ने जैसे कारकों ने राष्ट्रीय सीमाओं को व्यापक रूप से अप्रासंगिक बना दिया है।
वैश्वीकरण किस प्रकार खंडित हो रहा है?
- खंडित वैश्वीकरण का उभार: जबकि वैश्वीकरण ने बाज़ारों को बेहतर तरीके से कार्य करने के लिये प्रेरित किया है, नीति निर्माताओं ने इसके प्रतिकूल वितरणात्मक परिणामों की अनदेखी की है।
- कई समुदाय और देश पीछे रह गए हैं जिससे हाशियाकरण और अलगाव की एक व्यापक भावना का प्रसार हुआ है।
- वैश्वीकरण में हालिया उथल-पुथल: सबसे हालिया उदाहरण यूक्रेन पर आक्रमण का है जिसके कारण रूस (एक G20 देश) पर प्रतिबंध लगाया गया और अंतर्राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली का शस्त्रीकरण (weaponisation) हुआ।
- यूरोपीय संघ छोड़ने के पक्ष में यूनाइटेड किंगडम की वोटिंग वैश्वीकरण के विरुद्ध सबसे प्रकट राजनीतिक अभिव्यक्तियों में से एक थी।
- इसके अलावा, चीन के साथ अमेरिका की टैरिफ युद्ध की शुरुआत ने भी दो प्रमुख आर्थिक शक्तियों के बीच के विभाजन को गहरा कर दिया है।
- जलवायु परिवर्तन/पर्यावरण सुरक्षा संबंधी नीतियों की बढ़ती मान्यता के साथ ‘क्लीनटेक’ नवाचारों और चक्रीय अर्थव्यवस्था दृष्टिकोणों के लिये एक वैश्विक होड़ का परिदृश्य भी बना है।
- सोलर पीवी से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों तक हरित प्रौद्योगिकियों की बड़े पैमाने पर शुरुआत वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में परिवर्तन ला रही है और विनिर्माण केंद्रों को अधिक ‘अनुकूल’ देशों की ओर स्थानांतरित कर रही है।
- क्या वि-वैश्वीकरण (De-Globalisation) अंतिम परिणाम है?: जारी सभी उथल-पुथल के बावजूद, उपलब्ध आँकड़े दिखाते हैं कि वैश्वीकरण की वैसी समाप्ति नहीं हो रही, जिस गति से इसके स्वरूप में परिवर्तन आ रहा है।
- वैश्विक अर्थव्यवस्था का विखंडन क्षेत्रीय आर्थिक क्षेत्रों के सशक्तीकरण या समान विचारधारा वाले देशों के वैश्वीकरण जैसे परिणाम दे रहा है , न कि वि-वैश्वीकरण की दिशा में अग्रसर है। वैश्विक व्यापार वैश्विक विकास में अभी भी अनिवार्य रूप से एक महत्वपूर्ण स्तंभ बना रहेगा।
- खंडित वैश्वीकरण की मुख्य विशेषताएँ: खंडित वैश्वीकरण का जो युग उभरा है, वह नकार के बजाय प्रतिस्थापन (Substitution rather Than Negation) की विशेषता रखता है।
- सरल शब्दों में, विभिन्न देश वैश्विक व्यापार में भागीदारी नहीं करने के बजाय अपने मौजूदा व्यापार भागीदारों को किसी अन्य देश से प्रतिस्थापित कर रहे हैं।
- उदाहरण के लिये, यूरोपीय संघ एवं अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रतिबंधों ने रूस के तेल निर्यात को भौतिक रूप से कम नहीं किया है, बल्कि उन्हें चीन और भारत की ओर पुनर्निर्देशित किया है।
- इसके अतिरिक्त, विश्व एक समानांतर सीमा-पार भुगतान और निपटान प्रणाली के सृजन के तरीकों की तलाश कर रहे देशों के साथ वि-डॉलरीकरण (de-dollarisation) की एक लहर भी देख रहा है।
भारत इस नए वैश्वीकरण का उपयोग अपने लाभ के लिये कैसे कर सकता है?
- क्षेत्रीय एकीकरण की पैरोकारी: व्यापार, निवेश और आर्थिक एकीकरण से संबंधित मुद्दों पर अपने रुख के साथ भारत वैश्वीकरण के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- निकट अतीत में भारत वैश्वीकरण से व्यापक रूप से लाभान्वित हुआ है और विशेष रूप से आईटी और सेवा क्षेत्रों में ‘आउटसोर्सिंग’ का केंद्र बन गया है।
- भारत ने दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौता (SAFTA) और बिम्सटेक (BIMSTEC) जैसी पहलों के माध्यम से क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण की पैरोकारी की है और उसे ऐसा करना जारी रखना चाहिए।
- इस मंच को सफल बनाने में भारत की प्रगति काफी हद तक उसकी अपनी आर्थिक नीतियों, भू-राजनीतिक विकास और वैश्विक आर्थिक रुझानों जैसे कारकों पर निर्भर करेगी।
- सार्वजनिक/निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग: आपूर्ति शृंखलाओं को पुनर्बहाल करने और हरित परिवर्तन को गति देने की स्वाभाविक रूप से जटिल प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिये भारत में कंपनियों को केंद्र/राज्य सरकारों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए।
- नीति निर्माताओं को अपने दृष्टिकोण और कार्यान्वयन के तरीके पर समग्रता से विचार करने की आवश्यकता है, जबकि दीर्घावधिक निवेशकों को भविष्य की अपनी आवंटन रणनीतियों में अधिक परिष्कृत भू-राजनीतिक, सामाजिक-राजनीतिक और पर्यावरणीय विश्लेषणों को शामिल करना चाहिए।
- ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज़ के रूप में भारत: जबकि भारत भी मुक्त व्यापार एवं वैश्वीकरण का प्रबल पक्षधर रहा है और व्यापार एवं निवेश संबंधी बाधाओं को दूर करने पर बल देता रहा है, यह वैश्वीकरण के कुछ पहलुओं का आलोचक भी रहा है, विशेष रूप से लाभों के असमान वितरण के संबंध में और स्थानीय उद्योगों एवं श्रमिकों पर नकारात्मक प्रभाव के संबंध में।
- भारत ने वैश्वीकरण के प्रति अधिक संतुलित और न्यायसंगत दृष्टिकोण पर भी बल दिया है ताकि सुनिश्चित हो सके कि इसके लाभ अधिक व्यापक रूप से साझा हो सकें और यह कि पर्याप्त सामाजिक एवं पर्यावरणीय सुरक्षा का परिदृश्य बने।
- एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति के रूप में भारत वैश्विक दक्षिण या ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज़ बन सकता है जिन्हें वैश्विक मंचों पर अभी तक सीमित प्रतिनिधित्व प्राप्त है।
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