डेंगू के खतरे से लोगों को बचाया जा सकता है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देश में डेंगू के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। इस साल के देश के आंकड़ों की ही बात करें तो देश में डेंगू के कारण मरने वालों की संख्या लगभग 100 के आंकड़े को छू रही है। अकेले केरल में ही डेंगू के कारण 38 मौत की सूचना मिल रही है। डेंगू की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने उच्च स्तरीय बैठक कर आवश्यक निर्देश दिए हैं।

दरअसल हमारे देश में डेंगू का पीक सीजन जुलाई से अक्टूबर तक रहता है। वैसे डेंगू अब किसी देश की सीमा में बंधा नहीं है और दुनिया के 129 देशों या यों कहें कि दुनिया की आधी आबादी के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। देश दुनिया की सरकारों और विश्व स्वास्थ्य संगठन के सामने डेंगू बड़ी चुनौती बनकर उभरा है।

यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट को अतिश्योक्तिपूर्ण मानें तब भी इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि डेंगू आज और आने वाले समय के लिए दुनिया के देशों के लिए गंभीर समस्या बनता जा रहा है। दुनिया के 129 देश डेंगू की गिरफ्त में आ चुके हैं तो इससे भी मतभेद नहीं हो सकता कि दुनिया के देशों में होने वाली बीमारियों में से 70 फीसदी बीमारी का केन्द्र एशिया महाद्वीप बना हुआ है।

डेंगू दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से दुनिया के देशों को अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है। डब्ल्यूएचओ की ही मानें तो आज दुनिया की आधी अबादी डेंगू संभावित क्षेत्र के दायरे में आ गई है। डेंगू की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि पेरु के अधिकांश इलाकों में डेंगू के कारण इमरजेंसी लगाई जा चुकी है तो अमेरिका जैसा विकसित देश भी इसके दायरे से बाहर नहीं है। एक मोटे अनुमान के अनुसार भारत में ही डेंगू के औसतन 600 मामले प्रतिदिन आ रहे हैं।

दरअसल डेंगू एडीज प्रजाति के मच्छर से फैलता है। डेंगू के मच्छर के बारे में यह माना जाता है कि नमी वाले क्षेत्र खासतौर से पानी एकत्रित होने वाले स्थानों पर यह तेजी से फैलता है। सुबह के समय यह अधिक सक्रिय रहता है। यह भी माना जाता है कि डेंगू होने का दो तीन दिन के बुखार में जांच के दौरान तो पता ही नहीं चलता वहीं तीन चार दिन तक लगातार बुखार के बाद जांच कराने पर डेंगू का पता चलता है। यह भी सही है कि डेंगू से प्रभावित लोग एक से दो सप्ताह में ठीक भी हो जाते हैं।

पर कमजोर इम्युनिटी वाले व्यक्ति की या डेंगू के गंभीर होने की स्थिति में जब तेजी से प्लेटलेट्स कम होने लगती हैं तब यह शरीर के दूसरे ओरगन्स को प्रभावित कर मौत का कारण भी बन जाता है। हालांकि डेंगू के कारण मृत्यु की दर नाममात्र की है पर इसकी गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि डेंगू की कारण मौत के आंकड़े भी साल दर साल बढ़ते ही जा रहे हैं।

कोरोना ने दुनिया के देशों को बहुत कुछ सिखाया है। घर की चार दीवारी में कैद होने से लेकर सबकुछ बंद होने के हालातों से लोग दो चार हो चुके हैं। अपनों को अपने सामने ही जाते हुए देखा है। प्लेग को छोड़ दिया जाये तो संभवतः यह पहला मौका होगा जब सब कुछ चाहते हुए भी कोरोना काल में लोग अपनों को अंतिम विदाई तक भी सही ढंग से नहीं दे पाये। कोरोना की त्रासदी से अभी उभर भी नहीं पाये हैं कि जानलेवा बीमारियों के नित नए वेरियंट सामने आ रहे हैं।

इनके पीछे पिछड़े देशों की गरीबी एक कारण है तो दूसरी और जलवायु परिवर्तन के कारण डेंगू जैसे रोग तेजी से फैल रहे हैं। अत्यधिक बारिश, बाढ़, अत्यधिक गर्मी, अत्यधिक सर्दी यहां तक की बेमौसम की बरसात जैसे हालात और आए दिन आने वाले समुद्री तूफान चिंता के कारण बनते जा रहे हैं। कोरोना ने तो छोटे-बड़े, गरीब-अमीर, विकसित-अविकसित किसी में भी भेद नहीं किया और पूरी तरह से साम्यवाद को साकार किया।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के चार अरब लोग डेंगू संभावित क्षेत्र में हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक कार्यक्रम प्रमुख डॉ. रमन वेलायुधन का मानना है कि 2000 की तुलना में 2022 तक डेंगू से प्रभावित लोगों का आंकड़े में आठ गुणा तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। यदि हम हमारे देश भारत की ही बात करें तो 2018 में 101192 मामले सामने आये थे वहीं 2022 में डेंगू के 233251 मामले सामने आए। यदि 2020 के साल को छोड़ दिया जाए तो भारत में डेंगू के मामले लगातार बढ़ते ही रहे हैं। कमोबेश यही हालात दुनिया के दूसरे देशों में देखने को मिल रहे हैं। डेंगू के कारण दुनिया के देशों में एकाध मौत के समाचार भी लगातार आ रहे हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना ने लोगों में समझ पैदा की है। कोरोना काल में सतर्कता का जो संदेश गया वह भले ही आज बीते जमाने की बात हो गई हो पर डेंगू के संभावित खतरे को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन और दुनिया के देशों को कोई खास व प्रभावी रणनीति बनानी होगी। इसके लिए जहां साधन संपन्न व विकसित देशों को खुले दिल से आगे आना होगा वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन को दुनिया के देशों में कार्यरत गैर सरकारी संगठनों व समाजसेवियों को आगे लाना होगा। जिस तरह से कोरोना का एकजुट होकर मुकाबला किया गया ठीक उसी प्रकार का प्रयास, जन जागरण अभियान, अवेयरनेस कार्यक्रम व रोकथाम के संभावित उपायों को प्रभावी तरीके से अंजाम देना होगा।

जब आज दुनिया की आधी आबादी यानी की चार अरब लोग आसानी से डेंगू की जद में आ सकते हैं तो उसकी गंभीरता को समझना होगा। जो पैसा डेंगू होने पर उसके ईलाज पर खर्च होता है उसमें से ही यदि कुछा राशि फॉगिंग, टीकाकरण या अन्य सुरक्षात्मक उपायों पर खर्च की जाती है और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा साधनहीन, अविकसित व गरीब देशों तक डेंगू की रोकथाम के लिए अधिक सहायता पहुंचाई जाती है तो डेंगू की बढ़ती रफ्तार को काबू में किया जा सकता है।

इसके लिए सरकारों को कोरोना की तरह एसओपी जारी करने के साथ ही लोगों को जागरूक करना होगा ताकि डेंगू के मच्छर को फैलने से रोका जा सके। दरअसल मच्छरों से पैदा होने वाली बीमारियां अधिक तेजी से फैलती है और बहुत जल्दी रोग ग्रसित कर देती हैं। इसलिए ठोस कार्ययोजना बनाकर आगे आना होगा। डेंगू व मलेरिया आदि बदलते मौसम में अधिक सक्रिय हो जाते हैं, ऐसे में सतर्कता ही बचाव वाले सिद्धांत के साथ ही इसकी रोकथाम के उपाय करने होंगे। इसके लिए एक और जहां शोधकर्ताओं को आगे आना होगा वहीं इस क्षेत्र में कार्य कर रहे गैरसरकारी संगठनों को भी सक्रिय होना होगा।

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