हमारे फोन ने हमारे दिमाग को कितनी गहराई से बदल दिया है
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
नोटिफिकेशन के प्रति सेंसिटिव दिमाग
ये स्टडी अमेजन किंडल ने ऑस्ट्रेलिया में की है। इस रिसर्च के नतीजों से पता चलता है कि हमारा दिमाग फोन के नोटिफिकेशन को लेकर कितना सेंसिटिव हो चुका है। कई बार तो ऐसा भी हो जाता है कि फोन में बिना कोई नोटिफिकेशन आए भी हमें उसकी आवाज सुनाई देती है और हम फोन चेक करने लगते हैं।

रिसर्च में क्या पता चला?
- रिसर्च में हिस्सा लेने वाले 78 फीसदी लोगों ने माना है कि वह हर घंटे एक बार अपना फोन जरूर चेक करते हैं।
- इसमें से कई लोग ऐसे भी है, जो कम से कम 50 बार अपना स्क्रीन अनलॉक करते हैं।
- 86 फीसदी लोगों ने माना है कि फोन चेक करने की आदत की वजह से वह शाम होने तक तनाव महसूस करने लगते हैं।
- 69 फीसदी लोगों ने माना कि हर रात फोन चेक करने के कारण अपने निर्धारित समय से लेट सोते हैं।
मेंटल हेल्थ पर पड़ रहा असर
विशेषज्ञ मानते हैं कि फोन चेक करने की आदत हमारे अंदर इतना बस चुकी है कि कोई वाइब्रेशन, पिंग या फोन की लाइट ऑन होते ही हम उसे तुरंत चेक करने लगते हैं। इससे किसी भी एक चीज पर ध्यान लगाना मुश्किल हो जाता है। इससे न सिर्फ हमारी नींद पर असर पड़ता है, बल्कि मेंटल हेल्थ भी बुरी होती चली जाती है। समय के साथ इससे प्रोडक्टिविटी कम होती है, बेचैनी बढ़ती है और फिर स्थिति बिगड़ती चली जाती है।
कैसे बनाएं फोन से दूरी?
यूं तो आज के डिजिटल दौर में फोन से दूर रह पाना आसान नहीं है, क्योंकि सुबह दूध की दुकान में पेमेंट करने से लेकर रात में न्यूज पढ़ने तक सब कुछ फोन से ही हो रहा है। लेकिन फिर भी कुछ आदतों में बदलाव करके इसे एडिक्शन को कम किया जा सकता है।
नियम बना लें कि सुबह उठने के एक घंटे बाद और सोने के एक घंटे पहले फोन का इस्तेमाल नहीं करेंगे और इसका कड़ाई से पालन करें। सप्ताह में किसी एक दिन बिना फोन के रहने की आदत डालें। सोशल मीडिया एप्स के नोटिफिकेशन को बंद कर दें। अगर आस-पास कहीं जा रहे हों, तो फोन को घर पर ही छोड़ दें।
बच्चों की मेंटल हेल्थ पर असर
मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों की मानसिक सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। स्क्रीन पर लगातार समय बिताने से उनकी एकाग्रता कमजोर हो सकती है, जिससे पढ़ाई और अन्य एक्टिविटीज में उनका ध्यान भटक सकता है। इसके अलावा, ज्यादा मोबाइल इस्तेमाल करने वाले बच्चे चिड़चिड़े और गुस्सैल हो सकते हैं।
नींद की समस्या
बच्चों को देर रात तक मोबाइल देखने की आदत हो जाती है, जिससे उनकी नींद पर असर पड़ता है। मोबाइल की ब्लू लाइट मेलाटोनिन हार्मोन को प्रभावित करती है, जो नींद को कंट्रोल करता है। इससे बच्चों की नींद पूरी नहीं हो पाती और वे दिनभर थकान महसूस करते हैं।
आंखों पर बुरा असर
मोबाइल स्क्रीन से निकलने वाली रेडिएशन और ब्लू लाइट बच्चों की नाजुक आंखों को नुकसान पहुंचा सकती है। इससे आंखों में जलन, पानी आना और धुंधला दिखने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। अगर बचपन से ही मोबाइल का अधिक उपयोग किया जाए, तो आगे चलकर चश्मा लगाने की नौबत आ सकती है।
फिजिकल एक्टिविटी में कमी
मोबाइल में व्यस्त रहने वाले बच्चे आउटडोर गेम्स नहीं खेलते, जिससे उनकी फिजिकल एक्टिविटीज कम हो जाती हैं। इसका सीधा असर उनकी सेहत पर पड़ता है और वे मोटापे जैसी समस्याओं का शिकार हो सकते हैं। इसके अलावा, लगातार बैठकर मोबाइल देखने से उनकी रीढ़ की हड्डी और गर्दन पर भी प्रभाव पड़ता है।
सोशल स्किल्स पर असर
मोबाइल की लत बच्चों को सामाजिक रूप से कमजोर बना सकती है। वे दोस्तों और परिवार के साथ बातचीत करने की बजाय मोबाइल में व्यस्त रहते हैं। इससे उनके कम्युनिकेशन स्किल्स और कॉन्फिडेंस पर नेगेटिव असर पड़ सकता है।
कैसे करें मोबाइल के यूज को कंट्रोल?
- बच्चों को मोबाइल देने के बजाय उन्हें आउटडोर गेम्स और क्रिएटिव एक्टिविटीज में शामिल करें।
- मोबाइल के इस्तेमाल के लिए टाइम फिक्स करें और उसे सख्ती से फॉलो करवाएं।
- सोने से कम से कम एक घंटे पहले बच्चों का मोबाइल इस्तेमाल बंद करवा दें।
- बच्चों को टेक्नोलॉजी का सही तरीके से इस्तेमाल करना सिखाएं, ताकि वे इसका सही यूज कर सकें।
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