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 ऊँ नमः शिवाय कैसे बना सबसे प्रभावशाली शिवमंत्र,   पढ़े यह खबर

 ऊँ नमः शिवाय कैसे बना सबसे प्रभावशाली शिवमंत्र,   पढ़े यह खबर

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

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ॐ नम: शिवाय” इस मंत्र से संसार में भला कौन नहीं परिचित होगा. इसे पंचाक्षर मंत्र के नाम से भी जाना जाता है. पंचाक्षर मंत्र नमः शिवाय है लेकिन प्रणव “ऊँ” के साथ इसे संपुट करके जप करने पर फल पूर्ण हो जाता है. ओम नमः शिवाय मंत्र कैसे आया, इसकी क्या महिमा है, इसे कैसे जपें? पंचाक्षर मंत्र से जुड़े सारे रहस्य जानिए.

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ओम नमः शिवाय. शिव जी का ध्यान आते ही जो मंत्र सबसे पहले जिह्वा पर आता है है वह ओम नमः शिवाय ही है. इसे पंचाक्षर मंत्र कहा जाता है. लिखने में ओम नमः शिवाय भी लोग लिखते हैं और ऊँ नमः शिवाय भी लिखते हैं. मंत्र की शक्ति तो उसकी ध्वनि है. उच्चारण में दोनों एक हैं. नासिका की ध्वनि आनी चाहिए. “ऊँ” संपुट के साथ “ऊँ नमः शिवाय” को षडाक्षर यानी छह अक्षरों वाला भी कई बार कहा जाता है. ओम नमः शिवाय मंत्र की इतनी महिमा क्यों कही जाती है?

क्यों ओम नमः शिवाय शिव मंत्र का पर्याय बन गया है? शिवमंत्र से ओम नमः शिवाय का स्मरण ही क्यों हो आता है?

शिव महापुराण और लिंग महापुराण के अनुसार ओम नमः शिवाय मंत्र के माहात्‍म्य का वर्णन करोड़ वर्षों में भी संभव नहीं. शिवजी इसका कारण भी बताते हैं. शिवजी में भक्ति है तो सबसे प्रभावशाली शिवमंत्र की महिमा को पूरी और धैर्य के साथ समझिए. इसे अंत तक पढ़िएगा. ज्यादा बड़ा नहीं है.

पार्वतीजी को बालिका के रूप में शिवजी की सेवा करते लंबा समय हो गया पर शिवजी ध्यान में ही रहते. कभी पार्वतीजी की ओर दृष्टि भी न डाली. पार्वतीजी पूरे मनोयोग से उनकी सेवा कर रही थीं. वह उन्हें पतिरूप में प्राप्त करने की इच्छुक थीं पर अनंतयोगी शिवजी ध्यानलीन थे.

एक बार पार्वतीजी बहुत विकल हो गईं. उन्हें लगता ही न था कि शिवजी की प्राप्ति हो सकती है. तभी वहां नारदजी का प्रवेश हुआ.

नारदजी ने पार्वतीजी को बताया कि आप भगवान शिव की शक्ति हैं. आपने यह शरीर शिव की शिवा होने के लिए ही धारण किया है. अभी शिवजी यह नहीं चाहते कि आपको आपकी शक्तियों का परिचय हो. इसलिए आप स्वयं को पहचान नहीं पा रही हैं और व्यथित हैं. आप शिवजी के लिए ही बनी हैं अतः उन्हें प्राप्त करने की आशा न त्यागें.

यह सुनकर पार्वतीजी प्रसन्न हो गईं.

उन्होंने नारदजी से पूछा- देवर्षे आपकी बात सुनकर मेरे मन को बड़ा आनंद हुआ है. आप सभी रहस्यों से परिचित हैं. मुझे यह बताएं कि शिवजी को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए.

नारदजी ने पार्वतीजी को विधि-विधान के साथ पंचाक्षर मंत्र नमः शिवाय दिया और कहा कि इसे प्रणव ऊं के साथ जप करें. भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सुलभ और सरल साधन है- ओम नमः शिवाय का जप.

नारदजी से सारे विधि-विधान समझकर पार्वतीजी ने अनंत काल तक इस मंत्र का जप किया. एक तपस्विनी की तरह उन्होंने असंख्य कष्ट सहते हुए उमा, अपर्णा भी हो गईं.

 

अब कथा आगे बढ़ाते हैं-

शिव-शिवा का मिलन हो गया. शिवजी माता पार्वती को उनकी शक्तियों से परिचित कराने लगे. आपको आश्चर्य होता होगा न जब आप कहीं पढ़ते होंगे कि पार्वतीजी को उनके बारे में शिवजी ही बता रहे हैं. आप सब सोचते होंगे यह क्या मामला है. मेरे बारे में मुझे ही कोई और कैसे बता रहा है. इस रहस्य को समझिए. सनातन के रहस्य गूढ़ हैं.

शिवजी संहारक हैं. उन्होंने सभी प्राण-निष्प्राण, लौकिक-अलौकिक के लिए एक अवधि तय की है. इस अवधि के बाद उसे नष्ट होना होगा और पुनः नया निर्माण होगा. मैंने आपको वामन अवतार की कथा सुनाई थी. आपको स्मरण हो तो मैंने लिखा था- बलि को श्रीहरि ने सुतललोक में भेज दिया और कहा अगले कल्प में तुम इंद्र होगे. आपने ध्यान दिया था?

नारायण ने कहा अगले कल्प में तुम इंद्र होगे, यानी वर्तमान इंद्र अगले कल्प में बदल जाएंगे. अर्थात इंद्र बदलते रहते हैं. देवराज इंद्र ही नहीं बदलते समस्त शक्तियां भी बदलती हैं. लोमश ऋषि की कथा याद होगी. उन्होंने अनेक ब्रह्मा और करोड़ो इंद्र की बात देवराज को बताई तो भौंचक रह गए थे.

इसे सूक्ष्म रूप में ऐसे जानिए कि आपके दादाजी परिवार के मुखिया होते हैं. उनके देहांत के बाद पिता, पिता के देहांत के बाद आप और फिर यही क्रम चलता रहता है. यही व्यवस्था अलौकिक संसार की भी है. संसार की सभी शक्तियों का यही क्रम है. यह बात मैं कोई मनगढ़ंत नहीं कह रहा हूं, बल्कि यह बात स्वयं शिवजी ने पार्वतीजी से कही है.

लिंग महापुराण के पच्चीसवें अध्याय में पंचाक्षरी विद्या उसके जप विधान तथा पंचाक्षर मंत्र ओम नमः शिवाय के माहात्म्य का वर्णन शिवजी पार्वतीजी से कर रहे हैं. शिव-शिवा के बीच ओम नमः शिवाय की महिमा पर यह चर्चा सभी शिवभक्तों को भक्तिपूर्वक सुननी चाहिए. इसमें बहुत से प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे जो आपके मन में जाने कब से चल रहे होंगे. बहुत सुंदर चर्चा है. यदि आपने इसे नहीं जाना तो आप बहुत कुछ से वंचित रहे समझो.

 

पार्वतीजी बोलीं- हे महेश्वर! मैंने जिस ओम नमः शिवाय मंत्र का जप करके आपको प्राप्त किया उसके माहात्म्य के विषय में विस्तार से सुनना चाहती हूं. जिस मंत्र को जपने से आपकी प्राप्ति हो गई उसकी महत्ता सिद्ध करने के लिए यही पर्याप्त है. फिर भी मैं जानना चाहती हूं ओम नमः शिवाय पंचाक्षरी मंत्र इतना प्रभावी क्यों है?

शिवजी ने देवी के अनुरोध पर उन्हें ओम नमः शिवाय पंचाक्षरी मंत्र की महिमा बतानी आरंभ की.

 

शिवजी बोले- देवी 100 करोड़ वर्षों में भी भी पंचाक्षर मंत्र का महत्व नहीं कहा जा सकता है. पर आपके अनुरोध पर मैं इसे संक्षेप में बताता हूं.

प्रलय के उपस्थित होने पर समस्त चराचर जगत देवता तथा असुर, नाग राक्षस आदि नष्ट हो जाते हैं. और आपके सहित सभी पदार्थ प्रकृति में लीन होकर प्रलय को प्राप्त हो जाते हैं. उस समय एकमात्र मैं रह जाता हूं. दूसरा कुछ भी नहीं रह जाता. उस समय सभी वेदों, शास्त्रों को मैं उसी पंचाक्षर मंत्र में स्थित करके उन्हें सुरक्षित करता हूं. तब मैं एक होता हुआ भी उस समय प्रकृति तथा आत्मा के भेदों से दो रूपों में रहता हूं.

भगवान नारायण महामय शरीर धारण करके जल के मध्य में योगरुपी पर्यंक पर शयन करते हैं. उनके नाभिकमल से पांच मुखवाले ब्रह्मा उत्पन्न हुए. ब्रह्मा को सृजन का कार्य करना होता है पर उनके पास कोई सहायक नहीं थे. उन ब्रह्मा ने इस कार्य में असमर्थ तथा सहायकविहीन होने के कारण प्रारंभ में अमित तेज वाले दस मानस पुत्रों को उत्पन्न किया. ये ही ब्रह्मा के प्रथम मानसपुत्र कहे जाते हैं.

हे देवी जब ब्रह्मा के दस मानसपुत्र हो गए तो सृष्टि की वृद्धि के लिए ब्रह्मा ने मुझसे निवेदन किया- हे महादेव मेरे पुत्रों को शक्ति प्रदान कीजिए.

 

उनके ऐसा कहने पर मैंने अपने पांच मुखों पांच विशिष्ट अक्षरों का उच्चारण किया. ब्रह्मा ने अपने पांच मुखों से उन अक्षरों को ग्रहण करते हुए वाच्यभाव से परमेश्वर को जान लिया. मेरा आकार अपरिमित है, इसे मापा नहीं जा सकता. जहां भी शून्य दिखे मै वहां स्थित हूं. ब्रह्मा ने इन्हीं पंचअक्षरों से मुझे वाचक के रूप में जान लिया.

ब्रह्मा ने जैसे ही इसे जाना अपने पुत्रों को विधि के साथ इसे सिद्ध करने का उपदेश किया. इस तरह अपने पिता से ब्रह्मा के दसो मानसपुत्र तत्काल मुझे जान गए. मैं उनके लिए सुलभ हो गया. वे मेरे दर्शन जब चाहें करने में सक्षम हो गए. मैंने उन्हें संपूर्ण ज्ञान तथा अणिमा आदि आठ सिद्धियां प्रदान कीं. इसलिए इस मंत्र का इतना महत्व है.

देवी पंचाक्षर के इस संक्षिप्त माहात्म्य को सुनकर संतुष्ट थीं. उनकी इच्छा अब यह जानने की हुई कि इसे सरलता से कैसे सिद्ध किया जाए. देवी ने ओम नमः शिवाय मंत्र के सिद्धि की विधि से जुड़े अनेक प्रश्न किए. शिवजी ने उनका उत्तर देना आरंभ किया.

शिवमहापुराण में भी ओम नमः शिवाय के माहात्म्य का सुंदर वर्णन है. कहा गया है कि सात करोड़ मंत्रों और अनेको उपमंत्रों के होने पर भी भगवान शिव द्वारा प्रदान किए गए पंचाक्षर मंत्र के समान दूसरा कोई मंत्र नहीं.

जो भी ‘ओम नम: शिवाय’ मंत्र का जप विधि-विधान से कर लेता है उसे समस्‍त शुभ अनुष्‍ठानों को पूरा किया मान लेना चाहिए. ‘ओम नम: शिवाय’ मंत्र के जप में लगा पुरुष अधम भी हो तो भी, पापकर्मों से मुक्‍त हो जाता है.

महादेव ने महादेवी को जो ज्ञान दिया वह हमारे काम के हैं. इन्हें जरूर जानिए.

 

देवी ने पूछा- जिस मंत्र में समस्त सृष्टि को आप समा देते हैं फिर तो उसे प्राप्त करना बहुत कठिन है. सामान्य लोगों के लिए तो वह असंभव होगा. फिर आपकी प्राप्ति वह कैसे करें.

महादेव ने कहा-देवी निःसंदेह इस मंत्र में सृष्टि की समस्त शक्तियों को आपके साथ मैं समाता हूं. इस मंत्र के जप से जुड़े विधानों का पालन करता हुआ जो योग्य गुरू के मार्गदर्शन में पूर्ण करता है वह इसे सिद्ध भी कर लेता है.

 

शिवजी ने ओम नमः शिवाय पंचाक्षरी की सिद्धि से जुड़ी विधियां अंग न्यास, कर न्यास, देहन्यास और पुरश्चरण के साथ बड़े विस्तार से बताईं. यहां आपको संक्षिप्त रूप में कुछ काम की बातें प्रस्तुत कर रहा हूं. पूरी विधि-विधान के साथ जपकार्य तो गुरू के मार्गदर्शन में करना चाहिए. फिर भी कुछ ऐसी मोटी-मोटी बातें हैं जिनका आप सरलता से पालन कर सकते हैं. इससे आप अपने जप का ज्यादा फल प्राप्त कर सकते हैं.

पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय के जप से जुड़े विधानः

– घर में किए गए जब को सामान्य फल वाला जानना चाहिए.

– गोशाला में किया गया जब उससे सौ गुना फलदायक होता है.

– नदी के तट पर किया गया जप लाख गुना फलदायी होता है.

– शिव के सानिध्य में किया गया जप अनंत गुना फलदायक होता है.

– समुद्रतट पर, देव सरोवर में, पर्वत पर, देवालय में अथवा सभी पवित्र आश्रमों में किया गया जप करोड़ गुना फलदायक होता है.

-शिव की सन्निधि में सूर्य, गुरु, दीपक, गौ अथवा जल के समक्ष जपकर्म ही श्रेष्ठ माना जाता है.

 

पार्वतीजी ने पूछा- उत्तम फल के इस प्रणव युक्त पंचाक्षर मंत्र ओम नमः शिवाय का जप कैसे करना चाहिए?

महादेव ने पार्वतीजी को जप से जुड़ी कुछ आवश्यक बातें बताईं.

– एक-एक करके अंगुली से जप की गणना करने पर वह सामान्य फल प्रदान करता है.

– रेखाओं की सहायता से जप करने पर वह आठ गुना फलदायक कहा गया है.

– उत्तर जीवफलों से जप करने पर 10 गुना फलदायी होता है.

– शंखमणियों से जप करने पर सौ गुना फल होता है.

– प्रवाल मूंगा से जप करने पर हजार गुना फल होता है.

– स्फटिक से जप करने पर दस हजार गुना फल होता है.

– मोतियों से करने पर लाख गुना फलदायक कहा जाता है.

– कमल के बीज से जप करने पर दस लाख गुना फल होता है.

– सोने के स्वर्ण खंडों से जप करने पर जप करोड़ गुना फलदायक कहा जाता है.

– कुशा की ग्रंथि तथा रुद्राक्षों से गणना करने पर जप अनंत गुना फलदायक होता है.

अर्थात रूद्राक्ष या कुशा ग्रंथि ही सर्वाधिक उत्तम है.

 

यह सब जानने के बाद महादेवी ने पूछा कि इस जप के दौरान अन्य कौन सी बातों का ध्यान रखना चाहिए? जप की माला, जपसंख्या, जप की दिशा और जप की विधि से जुड़े रहस्य क्या हैं?

 

 

जप की माला, जप स्थान और जप के अन्य विधानः

महादेवी के पूछने पर शिवजी ने बताया-

–  25 मनकों की माला मोक्ष के लिए होती है. 27 मणियों की माला पुष्टि के लिए जानना चाहिए,

– 30 मनकों की माला धन संपदा के लिए जानना चाहिए.

–  50 मनकों की माला अभिचार कर्म के लिए होती है.

–  108 की माला सर्वफल के लिए होती है.

 

जप की दिशाः

पूर्व की ओर मुख करके किया गया जप वशीकरण की शक्ति देने वाला होता है. दक्षिण की ओर मुख करके किया गया जप अभिचार कर्म की शक्ति देने वाला होता है. पश्चिम की ओर मुख करके किए गए जप को धन प्रदान करने वाला जानना चाहिए. उत्तर की ओर मुख करके किया गया जप शांति प्रदान करने वाला होता है.

जप में अंगुलियों का प्रयोगः

अंगूठे को मोक्ष देने वाला जानना चाहिए.

तर्जनी अंगुली शत्रु का नाश करने वाली तथा मध्यमा धन प्रदान करने वाली है.

अनामिका शांति प्रदान करती है.

जप कार्य में कनिष्ठा रक्षणीय होती है.

अंगूठे से अन्य अंगुलियों के साथ मंत्र का जप करना चाहिए क्योंकि बिना अंगूठे के किया जपकर्म निष्फल होता है.

 

यह सब जानने के बाद माता पार्वती ने शिवजी से पूछा- हे देवाधिदेव! सबसे उत्तम यज्ञ जप यज्ञ को क्यों कहा गया है? जप की महिमा के बारे में बताएं. क्या जपकर्म से सारे विधान पूरे हो सकते हैं? यदि जप इतना प्रभावी है तो इसकी क्या विधि है? मुझे यह सब बताकर कृपा करें.

महादेव ने जप यज्ञ अर्थात जप की महिमा बतानी शुरू की.

 

जप यज्ञ ही सर्वश्रेष्ठ यज्ञ हैः

शिवजी बोले- हे महादेवी! जप यज्ञ सभी यज्ञों से श्रेष्ठ है. सभी यज्ञ हिंसा के साथ हुआ करते हैं. पत्र-पुष्प, धन-धान्य या किसी भी वस्तु को प्राप्त करने के लिए कोई न कोई जीव को कष्ट तो होता है किंतु जप यज्ञ बिना हिंसा के होता है. जितने भी अनुष्ठान यज्ञ दान तथा तप हैं वे सब जप यज्ञ की 16 वीं कला के बराबर भी नहीं है. अतः जपयज्ञ को ही सर्वश्रेष्ठ मानना चाहिए.

पंचाक्षरी मंत्र के सवा करोड़ जप को विधि-विधान से जीवनकाल में पूर्ण कर लेने वाला व्यक्ति मुझे अत्यंत प्रिय है. उसे मेरे शिवलोक में उसकी इच्छानुसार प्रवेश की अनुमति रहती है. वह अपने मन अनुसार मेरे दर्शन कर सकता है.

जप के प्रारंभ और अंत में तीन-तीन प्राणायाम करना चाहिए. अंत में एक सौ आठ बार बीजमंत्र का जप करना चाहिए. श्वास रोककर चालीस बार जप करना चाहिए. यह पंचाक्षर मंत्र का प्राणायाम कहलाता है. प्राणायाम से शीघ्र ही सभी पापों का नाश होता है एवं इंद्रियों का निग्रह होता है. अतः प्राणायाम अवश्य करना चाहिए.

वाचिक जप, उपांशु जप और मानस जप यज्ञः

वाचिक जप यज्ञ से सौ गुना ज्यादा महत्व उपांशु जप यज्ञ का है. मानस जप यज्ञ हजार गुना फलदाई कहा गया है.

साधक स्पष्ट पद अक्षरों वाले शब्दों के साथ उदात्त अनुदात्त तथा स्वरित स्वर में वाणी के द्वारा मंत्रों का उच्चारण करता है तो वह जप यज्ञ वाचिक होता है.

यदि साधक धीमे स्वर में मंत्र का उच्चारण करता है और कुछ कुछ होठों में चलाता है तथा उसे कुछ-कुछ कान में सुनाई पड़ता है तो वह जब उपांशु जप कहा जाता है.

यदि साधक मन में अक्षर समूह के वर्ण से वर्ण तथा पद से पद शब्दार्थ का बार-बार चिंतन करता है तो जप को मानस जप कहा गया है.

तीनों जप यज्ञ में उत्तरोत्तर श्रेष्ठ है. यानी वाचिक से उपांशु श्रेष्ठ है और उपांशु से मानस श्रेष्ठ है. इस प्रकार मानस जप यज्ञ सर्वश्रेष्ठ है.

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