भारत में सूचना का अधिकार किस प्रकार अस्तित्व में आया?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, जिसकी कभी एक ऐतिहासिक सुधार के रूप में सराहना की गई थी, साथ ही जिसने शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करके नागरिकों को सशक्त बनाने का प्रयास किया, सत्तासीन लोगों के व्यवस्थित प्रतिरोध के कारण इसकी प्रभावशीलता में लगातार गिरावट आई है। विश्व के सबसे सुदृढ़ पारदर्शिता कानूनों में से एक होने के बावजूद, सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारियों के वर्चस्व वाले सूचना आयोगों, नियुक्तियों में विलंब और मामलों के बढ़ते बैकलॉग के कारण इसका कार्यान्वयन कमज़ोर होता चला गया है। नवीनतम विफलता डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम के साथ हुई है, जिसके बारे में आलोचकों का तर्क है कि यह RTI को “सूचना से अस्वीकृति के अधिकार” में बदल रहा है।
- सूचना के अधिकार की न्यायिक मान्यता (वर्ष 1975-1989)
- वर्ष 1975: सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना के अधिकार को मौलिक अधिकारों के हिस्से के रूप में मान्यता दी।
- वर्ष 1982: अनुच्छेद 19(1)(a) एवं अनुच्छेद 21 के तहत विस्तारित व्याख्या के रूप में RTI को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जीवन के अधिकार से जोड़ा गया।
- वर्ष 1985: भोपाल गैस त्रासदी के बाद गैर सरकारी संगठनों ने पर्यावरण संबंधी सूचना तक नागरिक अभिगम की मांग की।
- ज़मीनी स्तर के आंदोलन और प्रारंभिक प्रारूप (सत्र 1990-1999)
- 1990 का दशक: राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) जैसे आंदोलनों ने जन सुनवाई के माध्यम से मजदूरी भुगतान में भ्रष्टाचार को उजागर किया।
- वर्ष 1996: जन सूचना अधिकार के लिये राष्ट्रीय अभियान (NCPRI) का गठन, जिसने भारतीय प्रेस परिषद के साथ मिलकर RTI विधेयक का प्रारूप तैयार किया।
- वर्ष 1997: सरकार ने प्रारूप एच.डी. शौरी समिति को भेजा, जिसने अपनी अनुशंसाएँ प्रस्तुत कीं।
- विधायी प्रयास और प्रारंभिक राज्य RTI कानून (2000-2004)
- वर्ष 2000: संसदीय स्थायी समिति ने RTI प्रारूप की समीक्षा की; राजस्थान, महाराष्ट्र, गोवा, तमिलनाडु, दिल्ली और कर्नाटक ने राज्य RTI कानून पारित किये।
- वर्ष 2002: संसद ने सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया, लेकिन इसे कभी अधिसूचित नहीं किया गया।
- वर्ष 2003: सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार पर RTI आधारित शासन सुधार लागू करने का दबाव डाला।
- वर्ष 2004: UPA सरकार के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में एक सख्त RTI कानून का वादा किया गया।
- RTI अधिनियम का पारित होना (सत्र 2004-2005)
- वर्ष 2004: NCPRI ने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (NAC) को संशोधन प्रस्तुत किया।
- दिसंबर 2004: सरकार ने केवल केंद्र सरकार को कवर करने वाला एक सीमित RTI विधेयक पेश किया, जिसके कारण विरोध हुआ।
- वर्ष 2005: लॉबिंग के बाद, संसद ने केंद्र और राज्य सरकारों को कवर करते हुए एक व्यापक RTI अधिनियम पारित किया।
- 12 अक्तूबर 2005: RTI अधिनियम लागू हुआ, जिसके तहत पुणे में शाहिद रज़ा बर्नी द्वारा दायर RTI आवेदन, इस कानून के तहत दायर पहला आवेदन था।
- वर्ष 2004: NCPRI ने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (NAC) को संशोधन प्रस्तुत किया।
सूचना का अधिकार (RTI) भारत में शासन में किस प्रकार योगदान देता है?
- लोकतंत्र का सुदृढ़ीकरण और नागरिक सशक्तीकरण: RTI नागरिकों को सरकारी रिकॉर्ड, नीतियों और निर्णयों तक पहुँच बनाने में सक्षम बनाता है, जिससे जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
- यह सहभागी लोकतंत्र को सुदृढ़ी करता है, जिससे लोगों को प्राधिकारियों से सवाल करने और बेहतर शासन की मांग करने का अवसर मिलता है।
- यह सामाजिक लेखापरीक्षा के लिये एक साधन के रूप में भी कार्य करता है, जिससे सीमांत समुदायों को अपने अधिकारों का दावा करने में मदद मिलती है।
- उदाहरण: चुनावी बॉण्ड योजना में अनियमितताओं पर सवाल उठाने में RTI आवेदनों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चुनावी बॉण्ड योजना मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करने के कारण असंवैधानिक है।
- भ्रष्टाचार से लड़ना और सुशासन को बढ़ावा देना: RTI भ्रष्टाचार, प्रशासनिक अकुशलता और नीतिगत विफलताओं को उजागर करने में मदद करता है, जिससे लोक सेवक अधिक जवाबदेह बनते हैं।
- शासन में गोपनीयता को कम करके, यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी अनुबंध, धन आवंटन और निर्णय लेने की प्रक्रिया जाँच के अधीन हैं।
- उदाहरण: आदर्श हाउसिंग घोटाला (वर्ष 2010) तब उजागर हुआ जब एक RTI से पता चला कि किस प्रकार सैनिकों व अन्य सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिये बने फ्लैटों को अवैध रूप से राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को आवंटित कर दिया गया था।
- लोक कल्याणकारी योजनाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करना: RTI सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन और धन के उपयोग पर नज़र रखने, लीकेज और अकुशलता को रोकने में मदद करता है।
- नागरिक उपस्थिति रिकॉर्ड, व्यय विवरण और लाभार्थी सूची की मांग कर सकते हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सार्वजनिक धन इच्छित प्राप्तकर्त्ताओं तक पहुँचे।
- उदाहरण: हाल ही में RTI के तहत पूछे गए प्रश्नों से पश्चिम बंगाल की MNREGA योजना में अनियमितताएँ उजागर हुईं, जिनमें फर्ज़ी कार्य रिकॉर्ड, पुराने जॉब कार्ड और अनुचित निविदा प्रक्रिया का खुलासा हुआ।
- मौलिक अधिकारों और सामाजिक न्याय को कायम रखना: RTI अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 19(1)(a) (वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) से संबद्ध है, क्योंकि सूचना तक पहुँच सूचित निर्णय लेने एवं अन्य मौलिक अधिकारों का प्रयोग करने के लिये आवश्यक है।
- यह मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं, पत्रकारों और सीमांत समूहों के लिये भेदभाव एवं अन्याय से लड़ने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
- उदाहरण: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में (सत्र 2008-09) RTI से प्राप्त सूचना में BPL राशन कार्डों के दुरुपयोग का खुलासा हुआ, जिसके कारण वास्तविक लाभार्थियों को उनके हक का अनाज नहीं मिल पा रहा था, जिससे सरकार को इस समस्या को सुधारने के लिये मज़बूर होना पड़ा।
- मीडिया और व्हिसलब्लोअर्स को सशक्त बनाना: RTI पत्रकारों, कार्यकर्त्ताओं और व्हिसलब्लोअर्स के लिये एक शक्तिशाली जाँच उपकरण के रूप में कार्य करता है, जिससे उन्हें आधिकारिक रिकॉर्ड तक पहुँचने तथा गलत कामों को उजागर करने में मदद मिलती है।
- इसने सरकारी अनुबंधों, न्यायिक कार्यवाहियों और प्रशासनिक निर्णयों को अधिक सुलभ बनाकर खोज़ी पत्रकारिता को सुदृढ़ किया है।
- उदाहरण: कोयला आवंटन घोटाला (Coalgate) RTI के माध्यम से उजागर हुआ, जिसके परिणामस्वरूप अवैध कोयला ब्लॉक आवंटन रद्द कर दिये गए।
सूचना के अधिकार की प्रभावशीलता को पुनः स्थापित करने के लिये, भारत को समय पर नियुक्तियों को प्राथमिकता देनी चाहिये, डिजिटल पारदर्शिता को बढ़ाना चाहिये और व्हिसलब्लोअर सुरक्षा को सुदृढ़ करना चाहिये। सक्रिय खुलासे और AI-संचालित केस प्रबंधन विलंब को कम कर सकते हैं और शासन को बेहतर बना सकते हैं। एक सही मायने में सशक्त RTI कार्यढाँचा जवाबदेही और सार्वजनिक विश्वास सुनिश्चित करके लोकतंत्र को सुदृढ़ करेगा। पारदर्शिता का भविष्य भागीदारीपूर्ण शासन के लिये एक साधन के रूप में RTI को पुनर्जीवित करने पर निर्भर करता है।
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