कैलेंडर’ शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कैलेंड्स इज ‘कैलेंडर’ शब्द बना। वैसे लैटिन भाषा में ‘कैलेंड्स’ का अर्थ हिसाब-किताब करने का दिन माना गया। उसी आधार पर दिनों, महीनों और वर्षों का हिसाब करने को ‘कैलेंडर’ कहा गया है।
एक समय था जब कैलेंडर नहीं थे। लोग अनुभव के आधार पर काम करते थे। उनका यह अनुभव प्राकृतिक कार्यों के बारे में था। वर्षा, सर्दी, गर्मी, पतझड़ आदि ही अलग-अलग काम करने के संकेत होते। धार्मिक, सामाजिक उत्सव और खेती के काम भी इन्हीं पर आधारित थे लेकिन इनके आधार पर समय का सही बंटवारा करना मुश्किल हो जाता। लोगों ने अनुभव किया कि दिन-रात का बंटवारा कभी गड़बड़ नहीं होता। इसी तरह रात में चंद्रमा दिखने का भी एक क्रम हैं।
रोम का सबसे पुराना कैलेंडर वहां के राजा न्यूमा पोंपिलियस के समय का माना जाता है। यह राजा ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में था। आज विश्व भर में जो कैलेंडर प्रयोग में लाया जाता है। उसका आधार रोमन सम्राट जूलियस सीजर का ईसा पूर्व पहली शताब्दी में बनाया कैलेंडर ही है। जूलियस सीजर ने कैलेंडर को सही बनाने में यूनानी ज्योतिषी सोसिजिनीस की सहायता ली थी। इस नए कैलेंडर की शुरुआत जनवरी से मानी गई है। इसे ईसा के जन्म से छियालीस वर्ष पूर्व लागू किया गया था।
जूलियस सीजर के कैलेंडर को ईसाई धर्म मानने वाले सभी देशों ने स्वीकार किया। उन्होंने वर्षों की गिनती ईसा के जन्म से की। जन्म के पूर्व के वर्ष बी.सी. (बीफोर क्राइस्ट) कहलाए और बाद के ए.डी. (आफ्टर डेथ)। जन्म पूर्व के वर्षों की गिनती पीछे को आती है, जन्म के बाद के वर्षों की गिनती आगे को बढ़ती है। सौ वर्षों की एक शताब्दी होती है।
भारतीय काल गणना पद्धति सबसे प्राचीन है और वैज्ञानिक भी। हमारे यहाँ सृष्टि की रचना के साथ ही कालगणना का शुभारंभ माना गया है। ऎसा कहा जाता है कि सृष्टि की रचना का प्रथम दिन चैत्र मास का प्रथम दिवस था। ब्रह्मपुराण के मुताबिक “चैत्रमास के प्रथम दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी।” यथा– चैत्रं मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेहनि।
ज्योतिष शास्त्र में इस बात का उल्लेख है कि जब सृष्टि की रचना हुई और पूर्व क्षितिज पर सूर्यदेव प्रकट हुए तब सूर्य का होरा था, अतएव सृष्टि की रचना का प्रथम दिवस रविवार माना गया है। दरअसल, ज्योतिष मतानुसार एक अहोरात्र (दिन रात) में २४ होरा होते हैं और २५वाँ होरा जिस ग्रह का होता है उससे संबंधित वार होता है।
इस पच्चीसवें होरा में सूर्योदय भी होता है। उदाहरणार्थ रविवार की शुरूआत के पश्चात पच्चीसवाँ होरा चंद्रमा का होता है अतएव रविवार के पश्चात सोमवार आता है। इसी क्रमानुसार मंगलवार, बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार और शनिवार का नामकरण हुआ है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज में अवस्थित अशोक चक्र के २४ खंड भी इस सतत प्रवाहमान होरा चक्र के प्रतीक बताए गए हैं। समूचे विश्व में वारों का यही क्रम है। अंग्रेजी के सैटरडे सैटर्न अथवा शनि, संडे सूर्यवार और मन डे या मून डे चंद्रवार के ही पर्याय हैं।
भारतीय ग्रह, तारा और नक्षत्र विज्ञान वैज्ञानिकों का आज भी पथ प्रदर्शन कर रहे हैं। हमारे शास्त्रों में नक्षत्रों और तारों के जिस रूप और आकार का वर्णन है, आधुनिक वैज्ञानिक विशाल उपकरणों के जरिए उनकी पुष्टि कर रहे हैं। अन्य देशों में भारतीय ज्योतिष एवं ज्योतिष गणना विज्ञान प्रचलन में हैं ही, पाकिस्तान भी इसमें पीछे नहीं है।
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