लू के थपेड़ों से लोग जिंदगी कैसे हार जाते है?

लू के थपेड़ों से लोग जिंदगी कैसे हार जाते है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

हीटवेव अब संकट का कारण बनता जा रहा है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

लू के थपेड़ों से डेढ़ लाख से अधिक लोग जिंदगी की जंग हार जाते हैं। वैसे तो दुनिया के सभी देश इससे प्रभावित हो रहे हैं पर भारत, रुस और चीन इससे सर्वाधिक प्रभावित हैं। प्रकृति का अत्याधिक और अंधाधुंध दोहन का परिणाम सामने आने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि धरती के बढ़ते तापमान से दुनिया के देश चिंतित ना हो या इससे बेखबर हो पर इसे संतुलित करने के प्रयासों में जो लक्ष्य हासिल किया जाना था वह अभी दूर की कोड़ी ही सिद्ध हो रहा है। हालात बेहद चिंतनीय और गंभीर है। भारत के साथ-साथ ही दुनिया के देश अब जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से दो चार होने लगे हैं।

बेमौसम बरसात, तेज गर्मी, तेज सर्दी, आए दिन तूफानों का सिलसिला, भू स्खलन, सुनामी, ग्लेसियरों से बर्फ का तेजी से पिघलना, भूकंपन, जंगलों में आए दिन दावानल और ना जाने क्या-क्या दुष्परिणाम सामने आते जा रहे हैं। हालात तो यहां तक होते जा रहे हैं कि मौसम के समय व अवधि में भी तेजी से बदलाव होता जा रहा है। कब बरसात आ जाएं तो कब तेज गर्मी और कब सर्दी के तेवर तेज या कम हो जाते हैं यह पता ही नहीं चल रहा है। सबसे चिंतनीय बात यह है कि हीटवेव की चपेट में आने से लोगों की मौतों में तेजी से इजाफा होने लगा है। देखा जाए तो यह हीटवेव मौत का कारण बनने लगी है।

हीटवेव और उसकी अवधि अब संकट का नया कारण बनती जा रही है। आस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में सामने आया है कि भारत के साथ ही चीन और रुस में हीटवेव के कारण सर्वाधिक मौत हो रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के देशों में केवल लू के थपेड़ों की लपेट में आने से एक लाख 54 हजार से अधिक व्यक्ति अपनी जान गंवा देते हैं। प्रति दस लाख में से 236 व्यक्तियों की मौत हीटवेव के कारण हो रही है।

रिपोर्ट की माने तो इनमें से हर पांचवां जान गंवाने वाला व्यक्ति भारतीय है। यह अपने आप में चिंतनीय और गंभीर है। यह अध्ययन भी 43 देशों के 750 स्थानों के तापमान के अध्ययन के आधार पर है। अध्ययन कर्ताओं के अनुसार पिछले 30 सालों में हीटवेव के कारण मौत के आंकड़ें में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

भारतीय मौसम विभाग की माने तो पूर्वी भारत में 1901 के बाद सर्वाधिक गर्मी इस साल अप्रैल में रिकॉर्ड की गई है। प. बंगाल में 2015 के बाद अप्रेल में सर्वाधिक लू के थपेड़ों को झेलना पड़ा है। इस तरह के कमोबेस हालात दुनिया के अधिकांश देशों में देखे जा सकते हैं। हालात तो यहां तक होते जा रहे हैं कि समुद्र का जल स्तर बढ़ता जा रहा है और उसके परिणाम स्वरुप समुद्र के किनारे बसे शहरों का अस्तित्व तक संकट में आने लगा है।

दरअसल यह सारी समस्या मानव जनित समस्या है। अधांधुंध शहरीकरण, पेड-पौधों के जंगलों के जगह लोह कंक्रिट के खड़े होते जंगल, जन संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी और कार्बन् उत्सर्जन में लगाम लगाने में विफलता के परिणाम सामने आते जा रहे हैं। जैविक विविधता प्रभावित होती जा रही है। आधुनिकीकरण के नाम पर नित नए प्रयोग होने लगे हैं। जलवायु को प्रभावित करने वाले उत्पादों का उपयोग बेतहासा बढ़ा है। दुर्भाग्यजनक हालात यह है कि जिस उत्पाद को हम आज उपादेय बता रहे हैं एक समय बाद वहीं उत्पाद से होने वाले नुकसान गिनाने लगते हैं।

दूसरी और वातावरण की नमी को समाप्त कर तापमान बढ़ाने में इन उत्पादों की खास भूमिका हो रही है। इन सबके साथ ही इंसानी गतिविधियों में बदलाव होने के साथ ही दखल बड़ा है। एक समय था जब बड़े जोर शोर के साथ पोलिथीन को उतारा गया और आज दुनिया के देश पालिथीन से मुक्ति चाहने लगे है। इसका कारण भी साफ है लोगों को पोलिथीन से होने वाले नुकसान का पता चलने लगा है।

प्रकृति के साथ खिलवाड करने का नजीजा सामने आने लगा है। वातावरण दूषित होने के साथ ही कभी सावन बिन बरसात रह जाता है तो कभी अप्रेल मई में भी बरसात के कारण सर्दी से दो चार होना पड़ जाता है। समय आ गया है जब इस समस्या के निराकरण के लिए विशेषज्ञों को खासतौर से ध्यान देना होगा नहीं तो हालात दिन प्रतिदिन बद से बदतर होते जाएंगे। इसे भले ही चेतावनी समझा जाएं या कुछ और पर सब कुछ शीशे की तरह साफ है। अब समय आ गया है कि धरती के बढ़ते तापमान के स्तर को कम करने के उपायों पर गंभीरता से प्रयास किये जाएं।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!