भारत कैसे चट्टानों के बीच छुपाकर रखता है तेल?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
दुनियाभर में कच्चे तेलों के बढ़ते दामों ने सभी देशों की चिताएं बढ़ा रखी हैं। क्योंकि कच्चे तेलों की कीमत में इजाफा होगा तो पेट्रोल-डीजल के दामों पर भी इसका सीधा असर पड़ेगा। पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ेंगी तो मंहगाई बढ़ेगी। ऐसे में मंहगाई को रोकने के लिए टैक्स को कम करने के क्रम में सरकार को नुकसान भी झेलना पड़ता है। जैसा कि दिवाली से ठीक पहले मोदी सरकार की तरफ से ऐलान किया गया कि पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क ( 5 रुपए और 10 रुपए कम कर दिया गया है।
लेकिन सरकार के इस फैसले से सरकारी खजाने पर काफी असर भी पड़ता है। ये हाल सिर्फ भारत का नहीं है बल्कि अमेरिका, चीन, जापान जैसे देशों का भी यही हाल है। इस सभी देशों ने तेल उत्पादक देशों को सबक सिखाने के लिए अपने देश में मौजूद तेल के भंजार (ऑयल रिजर्व) का इस्तेमाल करने का प्लान बनाया है। जिससे दुनिया भर के कच्चे तेल की कीमतों को कम करने में मदद मिलेगी।
भारत अपने स्ट्रैटजिक पेट्रोलियम रिजर्व में से 50 लाख बैरल रिलीज करने का ऐलान किया है। ऐसे में आज के इस विश्लेषण में आपको हम बताएंगे की क्या होता है स्ट्रैटजिक रिजर्व और इनमें कच्चे तेल को कैसे स्टोर किया जाता है। रिजर्व से तेल रिलीज करने के फैसले का आम आदमी पर कैसा असर होगा। तो आइए शुरु करते हैं आज का एमआरआई।
सबसे पहले आपको हम बताते हैं कि इस खबर के बारे में आज हम क्यों बात कर रहे हैं। दरअसल, बीते दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऑर्गेनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज प्लस (ओपेक+) से कच्चे तेल की सप्लाई बढ़ाने के लिए कहा था। जिसके पीछे कोरोना महामारी कम होने के बाद बढ़ी डिमांड का हवाला दिया था। ओपेक+ ने बाइडेन की बात को नजरअंदाज कर दिया। जिसके बाद सभी देशों ने मिलकर स्ट्रैटजिक ऑयल रिजर्व से तेल रिलीज करने का प्लान बनाया गया है। ताकी कच्चे तेल की कीमतों में कमी लाई जा सके।
इस तरह देशों का साथ मिलकर ऑयल रिलीज करना इतिहास में पहली बार होगा। भारत के 3.8 करोड़ बैरल के भंडार में से 50 लाख बैरल निकालने की बात हो या अमेरिका के 60 करोड़ बैरल के भंडार में से 5 करोड़ बैरल निकालने की। ये मात्रा इतनी कम है कि इसका कोई और अर्थ नहीं लिया जा सकता। निश्चित रूप से ये एक सांकेतिक कदम है।
क्या होते हैं ऑयल रिजर्व
आर्थिक मसलों से जुड़ा विषय है इसलिए थोड़ा बेसिक से समझते हैं। हम सब अपने जीवन में काम करते हैं कोई नौकरी करता है कोई व्यापार लेकिन इसके साथ ही एक चीज जो हमारे वर्तमान की अपेक्षा आने वाले कल को ज्यादा मजबूत बनाती है वो है बचत। हम जो अपने परिश्रम से अर्जित करते हैं उसमें से थोड़ा-थोड़ा बचाकर रख लेते हैं।
किसलिए ताकि कोई विपत्ति आए, आपदा आए या कभी नौकरी चली जाए। तो किसी के समक्ष हाथ पसारने की बजाए उसमें से अपनी बुनियादी जरूरतों मसलन रोटी, कपड़ा जैसी चीजों के लिए खर्च कर सके। वक्त कभी कहकर नहीं आता, इसलिए हमें अच्छे व बुरे वक्त दोनों के लिए पहले से ही तैयार रहना चाहिए, जिससे कि ऐसी नौबत ही नहीं आए कि हमको रुपयों के लिए किसी के सामने हाथ फैलाना पड़े।
इसी प्रकार से भारत समेत कई देश कच्चे तेलों को भी रिजर्व करके रखते हैं। दुनिया में कच्चे तेल की सप्लाई की कमी होती है तो वो अपना काम रिजर्व किए गए कच्चे तेल से चला सकते हैं। भंडार यूं कहें तो किसी देश ने अगर हमला कर दिया और देश की स्थिति नहीं है कि कच्चे तेल को खरीदा जाए तो कहीं से लाया जाए तो इसका इस्तेमाल किया जाता है। आपातकालीन स्थिति के अलावा इन भंडारण का इस्तेमाल तेल की कीमतों को काबू में रखने के लिए भी किया जाता है। अमेरिका, चीन, जापान, भारत, यूके समेत दुनिया भर के कई देश ऐसा भंडार रखते हैं।
किस देश के पास कितना ऑयल रिजर्व
वेनेज़ुएला | 30,230 करोड़ बैरल | |
सऊदी अरब | 26,620 करोड़ बैरल | |
कनाडा | 17,050 करोड़ बैरल | |
ईरान | 156 करोड़ बैरल | |
इराक | 145 करोड़ बैरल | |
रूस | 107 करोड़ बैरल | |
कुवैत | 102 करोड़ बैरल | |
यूएई | 98 करोड़ बैरल | |
अमेरिका | 69 करोड़ बैरल |
तेल की गुफाओं का निर्माण
अमेरिका ने 1975 में पहली बार दुनिया का सबसे पहला स्ट्रैटजिक रिजर्व बनाया। अमेरिका के पास सबसे ज्यादा स्ट्रैटजिक रिजर्व है। चीन भी 90 दिन की तेल खपत जितना रिजर्व बना रहा है। 1990 के दशक में खाड़ी युद्ध के दौरान भारत लगभग दिवालिया हो गया था। उस समय तेल के दाम आसमान छू रहे थे। इससे पेमेंट संकट पैदा हो गया। भारत के पास सिर्फ तीन हफ्ते का स्टॉक बचा था। भारत में 1991 के खाड़ी युद्ध के बाद स्ट्रैटजिक रिजर्व बनाने की चर्चा तेज हुई। इस समस्या से निपटने के लिए 1998 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अंडरग्राउंड स्टोरेज बनाने का फैसला किया। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की ऊंची कीमत, तेल के कृत्रिम कुएं बनाने का मंहगा खर्च और साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से मुश्किल हालात इस मामले को टालते रहे।
2005 की कीमतों के हिसाब से प्रोजेक्ट की लागत 2837 करोड़ आंकी गई। 2008 में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने इसकी इजाजत दी। फिर नरेंद्र मोदी की एनडीए सरकार ने इसे आगे बढ़ाया। पहले फेज के तहत देश में 53.3 लाख टन क्षमता के 3 स्ट्रैटजिक रिजर्व बनाए गए। इन्हें बनाने में करीब 4 हजार करोड़ का खर्च आया। दो नए स्ट्रैटजिक रिजर्व बनाने में 20 करोड़ खर्च के अनुमान लगाए गए हैं। इनके बन जाने के बाद देश में सभी रिजर्व में कुल मिलाकर 1 करोड़ 50 लाख टन कच्चा तेल स्टोर हो सकेगा। आपातकाल में 90 दिन यानी कि 3 महीने तक देश में इस तेल से काम चल सकता है।
तेल का रिजर्व
विशाखापटनम | 13.3 लाख टन |
मंगलौर | 15 लाख टन |
पादुर | 25 लाख टन |
भारत में कहां-कहां स्ट्रैटजिक रिजर्व
भारत में इस वक्त तीन जगह पर स्ट्रैटजिक रिजर्व यानी कच्चे तेल के कृत्रिम कुएं बनाए गए हैं। भारत में फिलहाल आंध्र प्रदेश के विशाखापटनम, कर्नाटक के मैंगलौर और केरल के पादुर में स्ट्रैटजिक रिजर्व बनाए गए हैं। इसके अलावा भारत की तरफ से उड़ीसा के चांदी कोल और राजस्थान के बीकानेर में दो नए स्ट्रैटजिक रिजर्व बनाने का ऐलान साल 2017 में किया गया था। भारतीय रिफाइनरियों के पास आमतौर पर 60 दिनों का तेल का स्टॉक रहता है। ये स्टॉक जमीन के अंदर मौजूद होते हैं। इन्हें आम भाषा में तेल की गुफाएं कहा जाता है।
इस भंडार को आधिकारिक भाषा में स्ट्रैटिजिक पेट्रोलियम रिजर्व कहा जाता है। इन तीनों रिजर्व में 50 लाख मीट्रिक टन कच्चा तेल स्टोर किया जा सकता है। इन रिजर्व को ऑपरेट करने का जिम्मा इंडियन स्ट्रैटजिक पेट्रोलियम रिजर्व्स लिमिटेड (ISPR) को दिया गया है, जो कि पेट्रोलियम मिनिस्ट्री के अंडर ही काम करता है।
रिजर्व में किसका तेल
- विदेशी तेल कंपनियां इन भूमिगत भंडारों को भरेगी
- आबु धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (एडीएनओसी) के पास पादुर भंडार लीज पर
- मंगलौर स्टोरेज को भी एडीएनओसी द्वारा भरा जाएगा
- आपात स्थिति में इस पर पहला अधिकार भारत सरकार के पास
भारत के अलावा International Energy Agency (IEA) के 29 सदस्य देशों के पास स्ट्रैटजिक तेल भंडार है। इनमें अमेरिका ब्रिटेन, जर्मनी, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। ये देश 90 दिन के नेट ऑयल इम्पोर्ट के बराबर एमरजेंसी रिजर्व रख सकते हैं। चीन और अमेरिका के बाद जापान के पास सबसे बड़ा एमरजेंसी तेल भंडार है। वैसे तो अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार का संचालन करने वाले संगठन ओपेक के सदस्य देशों के पास सबसे ज्यादा कच्चा तेल है। OPEC देशों के अलावा जो देश ऑयल एक्सपोर्ट करते हैं उन्हें OPEC+ देश कहा जाता है। OPEC+ में रूस, ओमान, मैक्सिको, मलेशिया समेत 10 देश शामिल है। वहीं OPEC में ईरान, इराक, यूएई और सऊदी समेत 13 देश हैं।
कीमतों में आ सकती है प्रति लीटर 2 से 3 रुपए की कमी
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अगर कच्चे तेल की घटती कीमतों का फायदा पेट्रोलियम कंपनियां आम लोगों को देती हैं तो पेट्रोल-डीजल की कीमतों में प्रति लीटर 2 से 3 रुपए तक की कमी हो सकती है। हालांकि अगर आने वाले दिनों में डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होता है तो कीमतों का कम होना मुश्किल हो जाएगा। कच्चा तेल अभी 80 डॉलर प्रति बैरल के आसपास कारोबार कर रहा है।
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