नवरात्रि कितने  प्रकार  के होते हैं एवं क्‍या है उनका  महत्‍व, पढ़ें खबर

नवरात्रि कितने  प्रकार  के होते हैं एवं क्‍या है उनका  महत्‍व, पढ़े खबर

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श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:


नवरात्र प्रारंभ हो गया है  जिसे   बहुत से लोग इस नवरात्र को शारदीय नवरात्रि भी कहते हैं तो, इसी आलोक में क्या आपने कभी सोचा है कि जब हमारे यहाँ ऋतु चार (जाड़ा, गर्मी, बरसात एवं वसंत ऋतु) होती है तो फिर नवरात्र महज दो (शारदीय एवं चैत्रीय) ही क्यों होते हैं ???

क्योंकि, अगर मौसम चार हैं तो फिर नवरात्र भी चार ही होने चाहिए थे न ??

तो, आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि असल में…. हमारे चंद्रमास के अनुसार नवरात्रि वास्तव में ही चार होते है….

■ आषाढ शुक्लपक्ष में “आषाढ़ी” नवरात्र.
■ आश्विन शुक्लपक्ष में “शारदीय” नवरात्र.
■ माघशुक्ल पक्ष मे “शिशिर” नवरात्र.
■ चैत्र शुक्ल पक्ष मे “बासन्तिक” नवरात्र.

परंतु, परंपरा से दो नवरात्र (चैत्र एवं आश्विन मास ) ही सर्वमान्य हैं.

क्योंकि, चैत्रमास “मधुमास” एवं आश्विन मास “ऊर्जमास” नाम से प्रसिद्ध है… जो शक्ति के पर्याय है.

अतः शक्ति आराधना हेतु इस काल खण्ड को “नवरात्र” शब्द से सम्बोधित किया गया है…

नवरात्र का मतलब हो गया….
“नवानां रात्रिणां समाहारः” अर्थात “नौ रात्रियों का समूह”.

अब यहाँ रात्रि का तात्पर्य…
“विश्रामदात्री” “सुखदात्री” के साथ एक अर्थ “जगदम्बा” भी है.
“रात्रिरुप यतो देवी दिवारुपो महेश्वरः”

तंत्रग्रन्थो मे तीन रात्रि इस प्रकार हैं…

1) “कालरात्रि”~ महा फाल्गुन कृष्णपक्ष चतुर्दशी “महाकाली” की रात्रि
2) “मोहरात्रि”~ आश्विन शुक्लपक्ष अष्टमी “महासरस्वती” की रात्रि.
3) “महारात्रि”~ कार्तिक कृष्णपक्ष अमावश्या “महालक्ष्मी” की रात्रि.

यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि एक अंक से सृष्टि का आरम्भ है तथा सम्पूर्ण मायिक सृष्टि का विस्तार आठ अंक तक ही है.

इससे परे “ब्रह्म” है जो नौ अंक का प्रतिनिधित्व करता है.

इसीलिए, नवमी तिथि के आगमन पर शिव शक्ति का मिलन होता है.

इसी कारण… शक्ति सहित शक्तिमान को प्राप्त करने हेतु भक्त को नवधा भक्ति का आश्रय लेना पड़ता है.

क्योंकि, जीवात्मा नौ द्वार वाले पुर (शरीर) का स्वामी है.

“नवछिद्रमयो देहः”…. अर्थात, इन छिद्रो को पार करता हुआ जीव ब्रह्मत्व को प्राप्त करता है.

अतः नवरात्र की प्रत्येक तिथि के लिए कुछ साधन ज्ञानियों द्वारा नियत किये गये है…

1)”प्रतिपदा” — इसे “शुभेच्छा” कहते है, जो प्रेम जगाती है क्योंकि प्रेम बिना सब साधन व्यर्थ है.
अतः… “प्रेम” को अविचल अडिग बनाने हेतु”शैलपुत्री” का आवाहन पूजन किया जाता है.
क्योंकि, अचल पदार्थो मे पर्वत सर्वाधिक अटल होता है.

2) “द्वितीया”– धैर्यपूर्वक “द्वैतबुद्धि” का त्याग करके ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए “माँब्रह्मचारिणी” का पूजन करना चाहिए.

3) “तृतीया” —- “त्रिगुणातीत” (सत, रज, तम से परे) होकर “माँ चन्द्रघण्टा” का पूजन करते हुए मन की चंचलता को वश मे करना चाहिए.

4) “चतुर्थी”– “अन्तःकरणचतुष्टय” (मन, बुद्धि , चित्त एवं अहंकार) का त्याग करते हुए मन एवं बुद्धि को “कूष्माण्डा” देवी चरणो मे अर्पित करना चाहिए.

5) “पंचमी”— “इन्द्रियो के पाँच विषयो” अर्थात शब्द, रुप, रस, गन्ध एवं स्पर्श का त्याग करते हुए “स्कन्दमाता” का ध्यान करना चाहिए.

6) “षष्ठी”- “काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, एवं मात्सर्य” का परित्याग करके “कात्यायनी देवी” का ध्यान करना चाहिए.

7) “सप्तमी” – “रक्त, रस, माँस, मेदा,अस्थि, मज्जा एवं शुक्र” इन सप्त धातुओ से निर्मित क्षण भंगुर दुर्लभ “मानव” देह को सार्थक करने के लिए “कालरात्रि देवी” की आराधना करना चाहिए.

8) “अष्टमी” – “ब्रह्म की अष्टधा प्रकृति” यथा “पृथ्वी,अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि एवं अहंकार” से परे “महागौरी” के स्वरुप का ध्यान करते हुए “ब्रह्म” से एकाकार होने की प्रार्थना करना चाहिए.

9) “नवमी” – “माँ सिद्धिदात्री” की आराधना “नवद्वार” वाले शरीर की प्राप्ति को धन्य बनाते हुए आत्मस्थ हो जाने का प्रयास करना चाहिए.

यहाँ ध्यान देने की बात है कि…. पौराणिक दृष्टि से आठ लोकमाताएँ हैं तथा तन्त्रग्रन्थों मे आठ शक्तियाँ है…

1) ब्राह्मी – सृष्टिक्रिया प्रकाशित करती है।

2) माहेश्वरी – यह प्रलय शक्ति है।

3) कौमारी – आसुरी वृत्तियो का दमन करके दैवीय गुणो की रक्षा करती है।

4) वैष्णवी – सृष्टि का पालन करती है।

5) वाराही – आधार शक्ति है इसे काल शक्ति कहते है।

6) नारसिंही – ये ब्रह्म विद्या के रुप मे ज्ञान को प्रकाशित करती है।

7) ऐन्द्री – ये विद्युत शक्ति के रुप मे जीव के कर्मो को प्रकाशित करती है।

8) चामुण्डा – प्रवृत्ति (चण्ड), निवृत्ति (मुण्ड) का विनाश करने वाली है।

साथ ही, आसुरी शक्तियाँ भी आठ ही हैं..

1) मोह – महिषासुर
2) काम – रक्तबीज
3) क्रोध – धूम्रलोचन
4) लोभ – सुग्रीव
5) मद मात्सर्य – चण्ड मुण्ड
6) राग द्वेष – मधु कैटभ
7) ममता – निशुम्भ
8) अहंकार – शुम्भ

इसीलिए, अष्टमी तिथि तक इन “दुर्गुणों” रुपी “दैत्यो” का संहार करके “नवमी तिथि” को “प्रकृति पुरूष” का एकाकार होना ही “नवरात्र का आध्यात्मिक” रहस्य है।

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