हम भारतीय ट्रैफिक जाम में कितना समय खराब करते हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आप जानते हैं कि भारत के दो शहर विश्व में सबसे खराब ट्रैफिक जाम वाले शहरों की सूची में शीर्ष दस में जगह बनाए हुए हैं? बात हो रही है देश की व्यावसायिक राजधानी मुंबई और देश की सिलिकॉन वैली बेंगलुरु की। ये दोनों ही शहर सूची में क्रमशः पांचवें और दसवें स्थान पर हैं। मुंबई में जहां हर व्यक्ति औसतन वर्ष में 121 घंटे ट्रैफिक जाम में बिताता है, वहीं बेंगलुरु में ये आंकड़ा 110 घंटे के करीब है। और आपको यह जानकर हैरत नहीं होनी चाहिए कि सूची में 11वें स्थान पर भी भारत का ही शहर है- दिल्ली।

यहां पर भी औसतन हर व्यक्ति ट्रैफिक जाम में 110 घंटे प्रति वर्ष बिताता है। यह आंकड़ा अंतरराष्ट्रीय यातायात एजेंसी टॉमटॉम द्वारा जारी किए गए विश्व के 404 शहरों के ट्रैफिक इंडेक्स से लिया गया है। परंतु चौंकाने वाली बात यह है कि बेंगलुरु और दिल्ली का जनसंख्या घनत्व लगभग 11,000 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है जो कि न्यूयॉर्क के बराबर ही है। फिर भी न्यूयॉर्क दुनिया में सबसे खराब यातायात वाले शहरों की सूची में 43वें क्रम पर आता है। यहां पर लोग औसतन प्रति वर्ष 80 घंटे ही ट्रैफिक जाम में बिताते हैं। ऐसा क्यों?

यदि प्रति वर्ग किलोमीटर जनसंख्या बराबर है तो हमारी सड़कों पर ज्यादा देर जाम क्यों लगता है? मैंने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया बर्कले से यातायात अभियांत्रिकी में स्नातकोत्तर किया है। इसके पश्चात वहीं अमेरिका में कुछ समय परामर्श दिया है। मेरे विचार में भारत के खस्ता यातायात का मुख्य कारण यहां के हर शहर में बनने वाले पंद्रह वर्षीय डेवलपमेंट प्लान के दौरान यातायात का पूर्वानुमान नहीं लगाना है।

मैं जब अमेरिका के सबसे विकसित प्रदेश माने जाने वाले कैलिफोर्निया की एक निजी यातायात परामर्श कंपनी में अपनी सेवाएं दे रहा था, उस दौरान मैंने कई आधुनिक विषयों पर शोध किया जैसे- बिना ड्राइवर की कारें आने से यातायात पर क्या प्रभाव पड़ेगा, सेन फ्रांसिस्को से लॉस एंजेलेस के बीच चलने वाली बुलेट ट्रेन का प्रभाव… आदि-आदि। इस दौरान मैंने जाना कि अमेरिका में डेवलपमेंट प्लान (जिसमें भूमि उपयोग में बदलाव सम्बंधित प्रस्ताव भी शामिल होते हैं) बनाते वक्त यातायात पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन किया जाता है।

भारत में डेवलपमेंट प्लान पर नागरिकों से सुझाव तो लिए जाते हैं, परंतु इससे यातायात पर पड़ने वाले प्रभावों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। और भी हैरान करने वाली बात यह है कि जो विदेशी यातायात कंपनियां इस तरह के परामर्श देती हैं, उनमें से कई ने अपने ऑफिस भारत के बेंगलुरु और दिल्ली जैसे शहरों में ही स्थापित कर रखे हैं। ये कंपनियां भारत के ही युवा यातायात इंजीनियरों की मदद से विदेश के विकसित शहरों के यातायात को सुधरने हेतु परामर्श दे रही हैं।

नगर निगम को चाहिए कि भविष्य में निर्धारित किया गया भूमि उपयोग का नक्शा, हर वॉर्ड में वर्तमान में कितनी जनसंख्या है… यह आंकड़ा, एवं शहर में मौजूद समस्त सड़क मार्ग का नक्शा भौगोलिक सूचना प्रणाली में दर्ज कर यातायात अभियांत्रिकी के सिद्धांत फोर-स्टेप ट्रेवल डिमांड मॉडल को सॉफ्टवेयर जैसे क्यूब, विसुम इत्यादि के जरिए लागू कर पंद्रह वर्ष बाद सड़क पर कितना यातायात रहेगा इसका पूर्वानुमान करे। और इसके अनुसार यदि भूमि उपयोग में बदलाव की जरूरत हो या सड़क मार्ग में संशोधन की जरूरत हो तो वो करें। इससे यातायात प्रबंधन में सहायता मिलेगी।

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