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महुआ पर जो आरोप लगे हैं उसमें कितनी सच्चाई है? - श्रीनारद मीडिया

महुआ पर जो आरोप लगे हैं उसमें कितनी सच्चाई है?

महुआ पर जो आरोप लगे हैं उसमें कितनी सच्चाई है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

संसद में अपने दमदार भाषणों के लिए कई नेताओं की तारीफ होती रही है। चाहे वो पक्ष के रहे हो या विपक्ष के सांसद। उन्हीं में से एक महुआ मोइत्रा हैं। पश्चिम बंगाल की कृष्मानगर से लोकसभा सांसद अपने भाषणों के जरिए मोदी सरकार पर हमलावर नजर आती हैं। लेकिन अब बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे ने उन पर कई गंभीर आरोप लगाए थे कि महुआ लोकसभा में सवाल पूछने के पैसे लेती हैं।

पैसे लेने का नाम भी बिजनेसमैन हीरानंदानी के रूप में सामने आया। जिसके बाद मीडिया में एक चिट्ठी हीरानंदानी के नाम से आई जिसमें इन आरोपों को सही बताया गया। मामला संसद की एथिक्स कमेटी के पास भी जा चुका है। आज हम इसी विवाद का एमआरआई स्कैन करेंगे।

कैसे हुई पूरे विवाद की शुरुआत 

15 अक्टूबर 2023 को झारखंड के गोड्ढा से सांसद ने निशिकांत दुबे ने लोकसभा सांसद ओम बिरला को एक शिकायती पत्र लिखा। दूबे ने आरोप लगाया कि महुआ मोइत्रा ने संसद में अडानी समूह के खिलाफ सवाल पूछने के लिए पैसे लेती हैं। लिहाजा उन्हें लोकसभा से संस्पेंड कर दिया जाए और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच हो। निशिकांत दुबे ने कहा कि हीरानंदानी समूह को अडानी ग्रुप की वजह से एनर्जी और इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ा एक बड़ा कांट्रैक्ट नहीं मिल पाया।

अडानी समूह और हीरानंदानी समूह कांट्रैक्ट पाने के लिए देश के कई इलाकों में एक दूसरे के खिलाफ बोली लगाते हैं। यानी दोनों समूहों में तगड़ा कंपटीशन है। हीरानंदानी समूह ने खार खाकर महुआ मोइत्रा को पैसे देकर अडानी समूह को लेकर सवाल पूछने के लिए कहा। निशिकांत दुबे ने केंद्रीय आईटी मंत्री अश्वनी वैष्णव और राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर को भी एक चिट्ठी लिखी। इस चिट्ठी में इल्जाम लगाया कि महुआ मोइत्रा ने हीरानंदानी को अपने लोकसभा वेबसाइट का लॉगिन और पासवर्ड दे दिया। वो इसका इस्तेमाल अपने लाभ के लिए करने लगे। इसे भारत की सुरक्षा से खिलवाड़ बताय़ा गया।

कितना गंभीर है निशिकांत दुबे का आरोप?

मूलतः, सवाल यह है कि क्या कोई सांसद कुछ प्रतिफल के बदले में प्रश्न पूछ रहा है। अगर यह बात प्रमाणित होती है तो यह गंभीर मामला है। यदि किसी सांसद ने प्रश्न पूछा है और किसी ऐसे व्यक्ति की ओर से अन्य संसदीय कार्य किया है जिसने विचार किया है, तो यह वास्तव में विशेषाधिकार समिति के पास आना चाहिए क्योंकि यह विशेषाधिकार का गंभीर उल्लंघन और सदन की अवमानना ​​​​है। ऐसी स्थिति में संसद सदस्य को सदन से निष्कासित करने के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकती है।

क्या पहले भी किसी सांसद पर लगे हैं ऐसे आरोप?

नहीं, यह प्रणाली हाल ही में अस्तित्व में आई है। लोकसभा के नियमों के अनुसार, एक सदस्य को अपनी पहचान संख्या के साथ हस्ताक्षरित एक विशेष फॉर्म में एक प्रश्न प्रस्तुत करना होता है। प्रश्न सदस्य की ओर से किसी के द्वारा दिया जा सकता है, लेकिन इस पर सदस्य के हस्ताक्षर होने चाहिए। हस्ताक्षर सत्यापित किया जाता है और फिर प्रश्न पर कार्रवाई की जाती है।

अभी तक ऐसा कोई नियम नहीं है> प्रश्नों को ऑनलाइन जमा करने का चलन हाल ही में हुआ है। जब ऑनलाइन सबमिशन की अनुमति दी गई तो नियम में संशोधन किया जाना चाहिए था। अगर कोई नियम होता तो उल्लंघन के खिलाफ कुछ सुरक्षा उपाय भी बताए गए होते।

समिति की कार्यवाही शुरू होने पर क्या होगा?

समिति इसमें शामिल व्यक्तियों, हितधारकों शिकायत करने वाले व्यक्ति, बयान देने वाले, हलफनामे दायर करने वाले लोगों को बुलाएगी और उनके साक्ष्य लेगी। इसके बाद कमेटी उस सदस्य को जरूर बुलाएगी जिसके खिलाफ शिकायत की गई है। उसे शिकायतकर्ता से जिरह करने का अधिकार है। वह एक वकील के माध्यम से पेश होने के लिए अध्यक्ष की अनुमति भी मांग सकती है, जो दूसरे पक्ष से जिरह कर सकता है।

समिति किसी निर्णय पर पहुंचने में कितना समय ले सकती है और यदि उन्हें शिकायत में योग्यता मिलती है, तो वह अधिकतम सजा की सिफारिश क्या कर सकती है? समिति को लगने वाला समय मामले की जटिलता पर निर्भर करता है। सामान्य तौर पर दो महीने का समय दिया जा सकता है और आवश्यकता पड़ने पर समिति विस्तार की मांग कर सकती है। यह समिति पूर्व में सदस्य को एक निश्चित अवधि के लिए निलंबित करने की सिफारिश कर चुकी है। अपनी गर्लफ्रेंड को टूर पर ले जाने वाले सदस्य को 30 बैठकों के लिए निलंबित कर दिया गया। मुझे लगता है कि एथिक्स कमेटी सिर्फ निलंबन की सिफ़ारिश कर सकती है।

क्या सांसद संभावित प्रतिकूल निर्णय के खिलाफ अदालत में अपील कर सकता है?

यदि सदस्य को निष्कासित किया जाता है तो वह इसे चुनौती दे सकती है। यदि समिति द्वारा पूरी प्रक्रिया को अंजाम देने के तरीके में कुछ अवैधता या असंवैधानिकता है, यदि प्राकृतिक न्याय से पूरी तरह इनकार किया गया है, तो उस स्थिति में वह इसे चुनौती दे सकती है अन्यथा नहीं।

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