कितना भयानक और भयावह हो सकती है रूस यूक्रेन जंग?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
रूस यूक्रेन जंग (Russia Ukraine War) का आज 18वां दिन है। रूसी सेना लगातार हमले कर रही है। यूक्रेन के अधिकतर शहर जल रहे हैं। हालात यह है कि लगातार हो रही गोलाबारी से सरकारी इमारतें और घर तबाह हो गए हैं। ऐसे में यह सवाल उठ रहे हैं कि यूक्रेन और रूस के बीच इस लड़ाई के क्या नतीजे निकल सकते हैं। क्या यह युद्ध जल्द खत्म हो सकता है। अगर युद्ध लंबा चला तो इसके दूरगामी क्या नतीजें होंगे? यह भी सवाल है कि अगर युद्ध लंबा चला तो इसकी आंच यूरोपीय देशों तक जाएगी? क्या इस युद्ध का कोई कूटनीतिक समाधान है? अंत में अगर युद्ध लंबा चला तो क्या पुतिन सत्ता से बेदखल हो सकते हैं? ऐसे कई सवाल इस समय लोगों के दिमाग में चल रहे होंगे?
1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना कि अब इसकी संभावना ज्यादा है कि यह जंग लंबी खिंच सकती है। अगर ऐसा हुआ तो रूसी सेना यूक्रेन में फंस सकती है। दूसरे अगर युद्ध लंबा खिंचा तो इसका असर रूसी सैनिकों के हौसले पर भी पड़ सकता है। रूसी सैनिकों के हौसले पस्त हो सकते हैं। प्रतिबंधों के कारण रूस में आपूर्ति की बड़ी समस्या उत्पन्न हो सकती है। उन्होंने कहा कि पुतिन के इरादे यूक्रेन की राजधानी कीव पर नियंत्रण करने की प्रतीत होती है।
अगर ऐसा हुआ तो रूसी सैनिकों को वहां तक पहुंचने में लंबा समय लग सकता है। रूसी सेना को कीव पर कब्जा करने में लंबा सघर्ष करना पड़ सकता है। यह जंग 1990 में चेचन्या की राजधानी ग्रोज्नी पर कब्जा करने में रूस को लगे समय और क्रूर संघर्ष की याद दिलाती है। उन्होंने कहा कि अगर रूसी सेना कीव तक पहुंच भी जाती है तो लंबे समय तक इतने बड़े इलाके में रूसी सेना को भेजना और उसका बने रहना एक बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में यह हो सकता है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की तरह रूसी सेना भी यूक्रेन से वापस हो जाए।
2- प्रो पंत का कहना है कि अगर युद्ध लंबा चला तो इसकी आंच यूरोपीय देशों तक पहुंच सकती है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो युद्ध के नतीजे भयावह हो सकते हैं। पुतिन सोवियत संघ का हिस्सा रहे मोल्डोवा और जार्जिया तक सेना भेज सकते हैं। दोनों देश अभी नाटो संगठन का हिस्सा नहीं हैं। हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा कि यह अभी अनुमान है। एक कल्पना है, लेकिन जिस तरह से पुतिन युद्ध को आगे खींच रहे हैं उनके इरादे बड़े लग रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अगर पुतिन को यह लगा कि अपने नेतृत्व को बचाने का ये एकमात्र तरीका है तो वह ऐसा कदम उठा सकते हैं। इसके बावजूद प्रो पंत के अनुसार परमाणु हमले की आशंका बहुत कम है। पुतिन पश्चिमी देशों को यूक्रेन को हथियार देने को उकसावे की कार्रवाई भी मान रहे हैं। वह नाटो के सदस्य बाल्टिक देशों में सेना भेजने की धमकी दे सकते हैं। यह बहुत भयानक हो सकता है। इसमें नाटो के साथ जंग का खतरा बढ़ सकता है, क्योंकि नाटो के अनुच्छेद 5 के अनुसार एक नाटो सदस्य पर हमला सभी सदस्यों पर हमला माना जाता है।
3- प्रो पंत का कहना है कि रूस यूक्रेन जंग के समाधान के लिए कूटनीतिक समाधान निकालने का प्रयास जारी है। उन्होंने कहा कि इसके लिए राजनयिक प्रयास जारी है। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस कह चुके हैं कि जंग चल रही है, लेकिन वार्ता का रास्ता हमेशा खुला होता है। इस क्रम में फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने पुतिन से फोन पर वार्ता की है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने यूक्रेन में युद्ध की स्थिति पर इजराइल के प्रधानमंत्री बेनेट के साथ चर्चा की। बेलारूस की सीमा पर रूस और यूक्रेन के अधिकारियों की मुलाकात को इसी कड़ी के रूप में जोड़कर देखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि प्रतिबंधों से बचने के लिए पुतिन एक डील की संभावना पर विचार कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर प्रतिबंधों का दौर लंबा चला तो यह रूस के लिए बहुत मुश्किल दौर होगा। इस बीच यूक्रेन के अधिकारी उनके देश में चल रही तबाही को देखते हुए यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि जिंदगियों की इस खौफनाक तबाही से राजनीतिक समझौता बेहतर है, तो एक राजनयिक पहल से यह हल हो जाएगा। यूक्रेन, क्राइमिया और डोनबास के कुछ हिस्सों पर रूस की संप्रभुता को स्वीकार कर लेता है। इसके बदले में, पुतिन यूक्रेन की आजादी और यूरोप के साथ उसके संबंधों को स्वीकार कर सकते हैं।
4- रूस यूक्रेन जंग के बीच एक सवाल यह उठ रहा है कि क्या पुतिन सत्ता से बेखल होंगे। प्रो पंत ने कहा कि जंग के बाद यह संभावना भी पैदा हो सकती है कि कीव और मास्को में सत्ता परिवर्तन की आवाज उठे। उन्होंने कहा कि इतिहास में ऐसी अनेक घटनाएं हुई हैं कि लंबे जंग के बाद शासक को सत्ता से बेदखल किया गया है। अगर पुतिन ने एक विनाशकारी युद्ध का रास्ता अख्तियार किया और इसमें हजारों रूसी सैनिक मरते हैं, आर्थिक प्रतिबंध की मार झेलनी पड़ती है, पुतिन के समर्थकों की संख्या में बेतरतीब गिरावट आती है।
ऐसे में संभव है कि विद्रोह का खतरा भी हो। वह विरोध को दबाने के लिए रूस की आंतरिक सुरक्षा का इस्तेमाल भी करें। इससे चीजें ठीक होने की जगह और बिगड़ जाएं और पर्याप्त संख्या में रूसी सेना, राजनीति और आर्थिक जगत के शीर्ष लोग उनके खिलाफ हो जाए। ऐसे में सत्ता बदलाव की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
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