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बुद्धि में नवीनता का समावेश ही हो सकती है विनोबा भावे के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि: गणेश दत्त पाठक - श्रीनारद मीडिया

बुद्धि में नवीनता का समावेश ही हो सकती है विनोबा भावे के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि: गणेश दत्त पाठक

बुद्धि में नवीनता का समावेश ही हो सकती है विनोबा भावे के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि: गणेश दत्त पाठक

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महान स्वतंत्रता सेनानी और प्रखर विचारक विनोबा भावे की जयंती पर पाठक आईएएस संस्थान पर उन्हें श्रद्धासुमन किया गया अर्पित

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सामान्य रूप से हम महान स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता विनोबा भावे जी को सर्वोदय और भूदान आंदोलन के संदर्भ में ही देखते हैं। लेकिन प्रखर विचारक के तौर पर विनोबा भावे जी ने समाज को नवीनता का संदेश भी दिया। उनका कहना होता था कि बुद्धि में नई कोंपलों का फूटना ही असली प्रतिभा है।नवीन कल्पना, नवीन उत्साह, नवीन खोज, नवीन स्फूर्ति ही स्तरीय प्रतिभा का मानदंड हो सकती है।

इस तरह यदि हम अपने विचारों को प्रगतिशील बनाते हैं और विचारों में नवीनता का समावेश कर पाते हैं तो यही विनोबा भावे जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। विनोबा जी की नवीनता के प्रति दृष्टिकोण नवोन्मेष की संकल्पना को विशेष महत्व देते दिखती है। ये बातें सीवान के अयोध्यापुरी में स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर विनोबा भावे की जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए शिक्षाविद् श्री गणेश दत्त पाठक ने कही।

महान विचार ही सृजन का आधार होते हैं

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि विनोबा भावे कहा करते थे कि राष्ट्र की समृद्धि का आधार उसकी चरित्रशीलता ही होती है। यदि राष्ट्रीय चरित्र नहीं होगा तो कोई भी योजना या कोई भी प्रयास राष्ट्र को समृद्ध नहीं बना सकता है। विनोबा भावे इस बात पर भी बल देते थे कि महान विचार ही कार्यरूप में परिणत होकर महान कार्य के आधार बनते हैं। इसलिए अच्छे और सात्विक विचार से ही मानवता को फायदा हो सकता है।

आत्मनिर्भर व्यक्ति ही होता है स्वतंत्र

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि भारत में सर्वप्रथम मैगसेसे अवार्ड पाने वाले विनोबा जी स्वतंत्रता के संदर्भ में आत्मनिर्भरता को विशेष तवज्जो देते थे। विनोबा जी स्पष्ट रूप से कहते थे कि स्वतंत्र वहीं हो सकता है, जो अपना काम स्वयं कर लेता है।

ज्यादा इच्छाओं वाला व्यक्ति ही होता है गरीब

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि विनोबा भावे ने गरीबी और अमीरी को मानवीय इच्छाओं से जोड़ा। उनका मानना था कि सिर्फ धन कम रहने से कोई व्यक्ति गरीब नहीं होता है। यदि कोई व्यक्ति धन से बहुत अमीर है और उसकी इच्छाएं ज्यादा हैं तो उससे गरीब कोई नहीं हो सकता। साथ ही विनोबा जी यह भी कहते थे कि ज्ञानी व्यक्ति वही होता है जो वर्तमान परिस्थिति का ठीक से मूल्यांकन करें और परिस्थिति के अनुरूप ही काम करे।

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