सिंधी भाषा की वर्णमाला कैसे बनी,पढ़ें रोचक कहानी.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सिंधी भाषा की वर्णमाला बनने की कहानी कम रोचक नहीं है। 18वीं सदी के मध्य तक सिंधी भाषा एक दर्जन तरीकों से लिखी जाती थी। वर्ष 1853 में सिंधी भाषा की अधिकृत वर्णमाला बनी। जो कि अरेबिक-फारसी और सिंधी के मूल उच्चारणों से मिलकर बनी है। सिंधी भाषा की दो लिपि हैं, देवनागरी सिंधी और पर्शियो अरेबिक सिंधी। दोनों ही लिपि को सरकार ने मान्यता दे रखी है।

जब सिंध पर ब्रिटिश सेना का कब्जा था। मुंबई (तत्कालीन बांबे) पर कब्जा कर लिया गया था। प्रांत के गर्वनर जार्ज क्लर्क ने 1848 में सिंधी को प्रांत में अधिकारिक रूप से भाषा बनाने का आदेश दिया। वर्ष 1853 में लिपि के स्थिरीकरण के लिए सिंध प्रांत के कमिश्नर एलिस की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की गई। इस समिति ने अरबी-फारसी-उर्दू लिपियों के आधार पर अरबी सिंधी लिपि की सर्जना की। तत्कालीन आयुक्त बार्टले फेरे ने अगस्त 1857 को आदेश जारी किए। सिंधी में अन्य भाषाओं की तुलना में व्यंजन और स्वर दोनों की अपेक्षाकृत बड़ी सूची है। इसमें 46 व्यंजन स्वर और 16 स्वर हैं।

डाक्टर राम मनोहर लोहिया अवध विवि में सिंधी भाषा के सलाहकार ज्ञान प्रकाश टेकचंदानी सरल बताते हैं वर्ष 1967 में ये भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हुई। जिसके बाद संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सिंधी भाषा को विषय के रूप में शामिल किया गया।

लोक सेवा आयोग में 20 साल उठाया लाभ

सिंधी भाषा को विषय के रूप में लोक सेवा आयोग की परीक्षा में शामिल होने के बावजूद 20 साल तक किसी ने इसका लाभ नहीं उठाया। करीब दो दशक बाद दिल्ली में भारतीय प्रशासनिक सेवा प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे एक छात्र ने इसे विषय के रूप में चुना। उन्होंने प्रतियोगी परीक्षा में सफलता हासिल की, आइपीएस बने।

वर्ष 1853 से पहले सिंधी भाषा एक दर्जन तरीकों से लिखी जाती थी। अंग्रेजों ने 1843 में सिंध प्रांत को जीतने के बाद एक समिति बनाई। जिसके दस साल बाद 1853 में सिंधी भाषा की अधिकृत वर्णमाला बनी। सिंधी भाषा की दाे लिपि हैं, देवनागरी सिंधी और पर्शियो अरेबिक सिंधी। दोनों ही लिपि को सरकार ने मान्यता दे रखी है।

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