कैसे अभिशाप की तरह ‘डिजिटल महामारी हमें अपनी आगोश में ले रही है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
डिजिटल एडिक्शन’ कई चिंता जनक तथ्य हैं. हैरान करने वाले आँकड़े भी. कैसे अभिशाप की तरह एक और ‘डिजिटल महामारी’ दबे पांव हमें अपनी आगोश में दबोच रही है. अब कई प्रमुख अध्ययनों से पता चला है कि खासकर युवा इसकी जद में हैं. इस डिजिटल एडिक्शन ने आख़िर क्या असर डाला है? इस अंक में इस सवाल का जवाब मिलता है.
वीवो-साइबर मीडिया रिसर्च (सीएमआर) ने 2021 में ‘स्मार्टफोन और मानव रिश्तों पर असर’ शीर्षक से देश भर के शहरों में 18-45 वर्ष उम्र के करीब 2,000 लोगों पर एक अध्ययन किया. उसमें पता चला कि उनमें से 80 फीसद नींद से जगने के 15 मिनट के भीतर अपने फोन खंगालते हैं और 46 फीसद लोग हर घंटे कम से कम पांच बार फोन उठा लेते हैं. 74 फीसद ने तो यहां तक कहा कि फोन को वे अपने से दूर नहीं रख सकते क्योंकि उसके बगैर मन उदास हो जाता है.
द ग्लोबल वेब इंडेक्स की सोशल मीडिया ट्रेंड्स 2019 की रिपोर्ट में विश्व स्तर पर किए गए एक अध्ययन के हवाले से बताया गया है कि भारतीय डिजिटल उपभोक्ता सोशल नेटवर्क और मैसेजिंग में रोज करीब 2.4 घंटे बिताते हैं, जो वैश्विक औसत से थोड़ा ज्यादा ही है.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का भी अनुमान है कि ऑफलाइन होने पर लोग अमूमन 35 फीसद वक्त अपने बारे में बात करते हैं; लेकिन ऑनलाइन होने पर अपने ऊपर बात करने का समय 80 फीसद पहुंच जाता है, जो आत्ममुग्धता के जुनून की ओर बढ़ने का संकेत है. जिसे सुविधा और सहूलत का औजार माना गया था, उसने बहुतों की जिंदगी अपनी मुट्ठी में कर ली है.
तो यह ख़तरे की घंटी है. चेत जाइए. ऐसे में डिजिटल उपवास का पालन ही एकमात्र रास्ता दिखता है. बहरहाल यही सबकी सेहत के लिए सबसे ज़रूरी है. मने अइसहीं जानकारी ख़ातिर बता रहे हैं.
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