धान की उन्नत खेती कैसे करें ? मई व जून माह है बुवाई का उचित समय
11 राज्यों के करोड़ों किसान ऐसे बढ़ाएं आमदनी
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
आज हम बात करते हैं धान की उन्नत खेती की। किसान भाई धान की उन्नत खेती से अच्छी आय कमा सकते हैं। धान क्षेत्रफल एवं उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। देश में धान का वार्षिक उत्पादन 104.32 मिलियन टन तथा औसत उत्पादकता 2390 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर है। देश में पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश, पंजाब, तमिलनाडू, आंध्रप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिसा, असम, हरियाणा व मध्यप्रदेश प्रमुख धान उत्पादनक राज्य हैं। इसकी खेती अधिकतर वर्षा आधारित दशा में होती है, जो धान के कुल क्षेत्रफल का 75 प्रतिशत है।
धान की उन्नत खेती के लिए मिट्टी/मृदा का चुनाव और रोपाई पद्धति
धान विभिन्न प्रकार की मृदा में उगाई जाती है। गहरी एवं मध्य दोमट मृदा पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होती है। परंपरागत रोपाई के लिए नर्सरी की बुवाई जून के द्वितीय सप्ताह से अंतिम सप्ताह तक कर देनी चाहिए। नर्सरी में पौध तैयार कर लगभग 15-21 दिनों की पौध की खेत में रोपाई की जाती है। पौध से पौध एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी किस्म के आधार पर निर्धारित की जाती है।
मृदा के अनुसार धान की उपयुक्त प्रजातियां
किस्म का नाम | पकने की अवधि (दिनों में) | पैदावार (क्विंटल/हैक्टेयर) |
---|---|---|
पैदावार (क्विंटल/हैक्टेयर)शीघ्र पकने वाली किस्में | ||
जे.आर.201 | 90-95 | 35-40 |
बी.वी.डी. 109 | 75-80 | 40-45 |
दंतेश्वरी | 100-105 | 35-40 |
सहभागी | 90-95 | 40-45 |
मध्यम अवधि में पकने वाली किस्में | ||
महामाया | 120 | 40-45 |
क्रांति | 125 | 45-50 |
पूसा सुगंधा 03 | 120 | 40-45 |
पूसा सुगंधा 04 (पूसा 1121) | 120 | 40-45 |
पूसा सुगंधा 05 (पूसा 2511) | 120 | 40-45 |
पूसा बासतमी 1509 | 120 | 42-45 |
पूसा बासतमी | 135-140 | 40-45 |
डब्ल्यू.जी.एल 32100 | 125 | 60-65 |
जे.आर. 353 | 110-115 | 25-30 |
आई.आर.36 | 115-120 | 45-50 |
जे.आर.34 | 125 | 45-50 |
पूसा 1460 | 120-125 | 50-55 |
एम.टी.यू. 1010 | 110-115 | 50-55 |
एम.टी.यू. 1081 | 115 | 50-55 |
आई.आर. 64 | 125-130 | 50-55 |
बम्लेश्वरी | 135-140 | 55-60 |
संकर प्रजातियां | ||
जे.आर.एच. 4 | 100-105 | 70-75 |
जे.आर.एच. 5 | 100 | 70-75 |
जे.आर.एच. 8 | 100-105 | 65-70 |
जे.आर.एच. 12 | 90 | 65-70 |
के.आर.एच. 2 | 135 | 70 |
पी.एच.बी. 81 | 130 | 75 |
पी.ए. 6441 | 130 | 75 |
किस्मों का चयन एवं बीजदर
धान की सीधी बुआई करने के लिए
सामान्य प्रजातियों के बीज की मात्रा 40-45 किग्रा प्रति हैक्टेयर तथा संकर धान 15-18 किग्रा प्रति हैक्टेयर प्रयोग करें। बुवाई के समय गहराई 2-3 सेमी से अधिक नहीं होनी चाहिए। रोपाई के लिए 20 से 25 किग्रा बीज हैक्टर तथा संकर किस्मों में 8 से 10 किग्रा बीज/हैक्टेयर पर्याप्त होता है।
सीधी बुआई या नर्सरी की बुआई से पूर्व बीज का उपचार
मिश्रित फफूंदीनाशी (कार्बेंडाजिम+मेंकोजेब) 2 ग्राम एवं थायोमेथाक्जिम-75 डब्ल्यूएस की 3 ग्राम मात्रा/किग्रा बीज की दर से करना चाहिए।
सीधे बीज बोने की पद्धति
धान की सीधी बुवाई बलुई दोमट से लेकर भारी चिकनी मृदा में की जाती है। धान की सीधी बुआई करने के लिए खेत का समतल होना आवश्यक है। इसके बाद पलेवा कर खेत की हल्की जुताई कर तैयार करें और सीडड्रिल से हल्की जुताई कर तैयार करें और सीडड्रिल से पंक्तियों में या व्यासी विधि से धान की सीधी बुवाई करें। सीधी बुआई खेत में सूखी या नमीयुक्त भूमि में की जा सकती हैं। सूखी भूमि में धान की बुआई के बाद बीजों के जमाव के लिए हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। धान की सीधी बुआई का उपयुक्त समय 20 मई से 30 जून तक होता है।
पोषक तत्व प्रबंधन
धान की फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए सनई अथवा ढैंचा को हरी खाद के रूप में उगाकर फूल आने के पूर्व मृदा में मिलाकर उसके उपरांत धान की रोपाई करनी चाहिए। इससे मृदा में 50-60 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर की दर से प्राप्त हो जाता है। खेती की तैयारी के समय 6-8 टन सड़ी हुई गोबर की खाद अथवा 5 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट प्रति हैक्टेयर की दर से मृदा में अच्छी तरह मिला दें। उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण परिणामों के आधार पर विभिन्न बुवाई तरीकों में करना चाहिए। नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा एवं फॉस्फोरस व पोटाश की पूर्ण मात्रा बुवाई एवं रोपाई के पूर्व खेत की तैयारी के समय डाल देनी चाहिए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा दो भागों में पहली सीधी बुवाई में 25-30 दिनों बाद एवं रोपाई के 15-20 दिनों बाद तथा दूसरी मात्रा पौधों की 45-45 दिनों की अवस्था पर (कल्ले निकलते समय) देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त धान की फसल में 25 किग्रा जिंक सल्फेट को रोपाई से पूर्व अच्छी तरह मृदा में मिला दें।
खरपतवार नियंत्रण
धान में खरपतवार नियंत्रण अलग-अलग ढंग से किया जाता है। रासायनिक विधि से शाकनाशी रसायनों को निर्धारित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। खरपतवारनाशी रसायनों की आवश्यक मात्रा का 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से समान रूप से छिडक़ाव करना चाहिए। ब्यूटाक्लोर को 50-60 कि.ग्रा. रेत में मिलाकर/हैक्टर की दर से छिडक़ाव किया जा सकता है।
सिंचाई प्रबंधन
धान के अच्छे विकास और पैदावार के लिए खेत में लगातार पानी के भरे रहने की जरूरत नहीं होती है। धान की खेती कुछ समय के अंतराल पर सिंचाई द्वारा यानी मृदा की सतह सूखने पर समय-समय पर सिंचाई करके भी कामयाब हो सकती है। बीज के सही तरह से जमाव के लिए सीधी बुआई वाले खेत में धान को बुआई के बाद पहले तीन सप्ताह में पानी की आपूर्ति की जरूरत होती है।
धान की सघनीकरण पद्धति (एसआरआई) अथवा श्री उत्पादन तकनीक/मेडागास्कर पद्धति
- धान सघनता पद्धति (एसआरआई) अथवा श्री उत्पादन तकनीक मुख्यत : एक रोपाई तकनीक है, जो मेडागास्कर पद्धति के नाम से भी जानी जाती है। इस विधि को अपनाने पर लागत को कम करके उत्पादन 50 से 300 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। एसआरआई पद्धति से धान उत्पादन के मुख्य बिन्दु निम्न हैं :
- धान की जड़ों में पाए जाने वाले पैरेनकाइमा ऊतकों के कारण यह जलभराव की स्थिति में भी अपने आपको जीवित रख पाता है। भरे हुए पानी में इसकी जड़ें 6 से.मी. की गहराई तक जाती हैं और पौधे में प्रजनन अवस्था प्रारंभ हो जाती है। इसे रोकने के लिए अच्छी जल निकासी वाली भूमि का चुनाव करना चाहिए।
- इस पद्धति से धान की खेती के लिए 5-8 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है, जबकि पारंपरिक रोपाई विधि से धान की खेती के लिए 50-60 किग्रा बीज की प्रति हैक्टेयर आवश्यकता होती है।
- नर्सरी के लिए एक मीटर चौड़ी व 10 मीटर लंबी क्यारियां सतह से 15 सेंटीमीटर ऊंची बनानी चाहिये। इसके साथ ही क्यारियों के दोनों तरफ सिंचाई नाली बनानी चाहिए। इन तैयार क्यारियों में जैविक खादों का प्रयोग कर उपचारित बीजों को बोना चाहिए।
- अधिक दिनों की पौधरोपण करने पर इसकी वृद्धि तथा कल्लों की संख्या कम हो जाती है। अत : 8-14 दिनों की पौध की रोपाई करनी चाहिए। एक स्थान पर केवल एक ही पौध रोपित की जानी चाहिए तथा पंक्ति से पंक्ति एवं पौधे से पौधे के बीच की दूरी 25 सें.मी. रखनी चाहिए।
- पारंपरिक पद्धति में धान की पौध उखाडक़र छोड़ देते हैं एवं बाद में इनकी रोपाई की जाती है, जिससे कि पौधों की वृद्धि एवं कल्लों की संख्या में कमी आ जाती है। इसके साथ ही जड़ों का विकास भी प्रभावित होता है। इसलिए नर्सरी से पौध को ऐसे निकाला जाए, जिससे कि उसकी जड़ों को नुकसान न हो एवं निकालने के तुरंत बाद ही रोपाई करनी चाहिए।
- वानस्पतिक वृद्धि के समय मृदा के प्रकार के आधार पर सिंचाई की जाये। धान के कल्ले निकलने की अवस्था के समय 2-6 दिनों तक सूखा छोड़ते हैं, जिससे कि भूमि में हल्की दरार आ जाये। इस प्रक्रिया से पौधों की संपूर्ण शक्ति कल्ले निकलने में लगेगी एवं कल्ले समान निकलेंगे।
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