एलपीजी सिलिंडर की समयबद्ध उपलब्धता कैसे सुनिश्चित हो सकती है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज़ स्टडी-2019’ के अनुसार, खाना बनाने के लिये ठोस ईंधन का उपयोग भारत में वायु प्रदूषण और और इसके कारण होने वाली समय-पूर्व मौतों (प्रति वर्ष लगभग 600,000 से अधिक) का एक प्रमुख कारक हैं।
इस समस्या से निपटने और स्वच्छ रसोई ऊर्जा तक पहुँच में सुधार करने हेतु भारत सरकार ने कई उपाय किये हैं, जैसे कि प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) योजना जिसके तहत 80 मिलियन से अधिक सब्सिडीयुक्त एलपीजी कनेक्शन वितरित किये गए।
किंतु एलपीजी सिलेंडरों की कीमतों में निरंतर वृद्धि एक वर्ष से अधिक समय से कई परिवारों के बजट को प्रभावित कर रही है।
कम आय वाले परिवारों के लिये एलपीजी रिफिल पर सब्सिडी बहाल करने से उन्हें प्रदूषणकारी पारंपरिक रसोई ईंधन की ओर पुनः पलायन करने से रोका जा सकता है।
भारत की एलपीजी क्रांति
- एलपीजी कनेक्शन की संख्या में वृद्धि: ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (Council on Energy, Environment and Water- CEEW) और सतत् ऊर्जा नीति पहल (Initiative for Sustainable Energy Policy) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘भारत आवास-संबंधी ऊर्जा सर्वेक्षण’ (India Residential Energy Survey- IRES) 2020 के अनुसार एलपीजी (LPG) ने अब भारत के सबसे प्रमुख और आम रसोई ईंधन के रूप में बायोमास को प्रतिस्थापित कर दिया है।
- वर्तमान में लगभग 85% भारतीय घरों में एलपीजी कनेक्शन मौजूद है और वर्तमान में 71% घरों में इसका उपयोग अपने प्राथमिक रसोई ईंधन के रूप में किया जा रहा है, जबकि एक दशक पूर्व यह संख्या मात्र 30% थी।
- रुझानों में इस परिवर्तन का श्रेय उज्जवला योजना की सफलता, उपभोग-संबद्ध सब्सिडी और एलपीजी वितरण तंत्र की क्रमिक मज़बूती को दिया जा सकता है।
- उज्ज्वला योजना की उपलब्धियाँ: PMUY के पहले चरण में दलित और आदिवासी समुदायों सहित 8 करोड़ गरीब परिवारों को निःशुल्क रसोई गैस कनेक्शन प्रदान किये गए।
- देश में रसोई गैस अवसंरचना का कई गुना विस्तार हुआ है। पिछले छह वर्षों में देश भर में 11,000 से अधिक नए एलपीजी वितरण केंद्र खोले गए हैं।
- संबद्ध समस्याएँ:
- उच्च एलपीजी कीमतें और महामारी-प्रेरित समस्याएँ: मौजूदा रीफिल कीमतों पर, एक औसत भारतीय परिवार को अपनी सभी रसोई ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये एलपीजी पर अपने मासिक खर्च का लगभग 10% व्यय करना होगा, जो कि रसोई ऊर्जा पर अनुमानित व्यय के वास्तविक हिस्से का सीधा दोगुना है (मार्च 2020 तक की स्थिति)।
- वर्तमान कीमतों पर पूरी तरह से एलपीजी की ओर जाने में सभी भारतीय परिवारों में से लगभग आधे के लिये उनके रसोई ऊर्जा का व्यय लगभग दोगुना हो जाएगा।
- कोविड-19 महामारी के दौरान आय और आजीविका को लगे आघात ने परिवारों के लिये नियमित रूप से एलपीजी खर्च का वहन कर सकने की क्षमता को प्रभावित किया है।
- रिफिल सब्सिडी नहीं: एलपीजी रिफिल की कीमत नवंबर, 2021 में पिछले वर्ष (लगभग 600 रुपए) की तुलना में 50% से अधिक बढ़ गई है।
- इसके अतिरिक्त, मई 2020 के बाद से किसी रीफिल सब्सिडी का नहीं होना इस वास्तविक चिंता को जन्म दे रहा है कि कई परिवार जलावन लकड़ी एवं गोबर के उपलों जैसे प्रदूषणकारी ठोस ईंधन की ओर लौट सकते हैं।
- एलपीजी के बजाय बायोमास का उपयोग: लगभग 30% भारतीय परिवार उनके प्राथमिक रसोई ईंधन के रूप में बायोमास पर निर्भर हैं, जिसका मुख्य कारण एलपीजी की उच्च कीमतें हैं। अन्य 24% परिवार बायोमास और एलपीजी का साथ-साथ उपयोग करते हैं।
- रसोई के लिये बायोमास का उपयोग मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्रित है।
- शहरी मलिन बस्तियाँ भी प्रमुख क्षेत्र हैं जहाँ खाना पकाने के लिये बायोमास का उपयोग व्यापक रूप से प्रचलित है।
- मुफ्त बायोमास की आसान उपलब्धता और एलपीजी रिफिल की होम डिलीवरी की कमी एक विश्वसनीय और सस्ते विकल्प के रूप में एलपीजी की प्रभावकारिता को और कम कर देती है।
- रसोई के लिये बायोमास का उपयोग मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्रित है।
- एलपीजी की अनुपलब्धता: ग्रामीण एलपीजी उपयोगकर्त्ताओं के आधे को ही एलपीजी रिफिल की होम डिलीवरी प्राप्त होती है, जबकि शेष लोगों को सिलेंडर पाने के लिये लगभग 5-10 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है।
- एलपीजी सिलिंडरों की होम डिलीवरी में शहरी इलाकों में भी अंतराल मौजूद है, विशेष रूप से मलिन बस्ती क्षेत्रों में, जो फिर शहरी मलिन बस्ती परिवारों के बीच बायोमास के उपयोग को प्रोत्साहित करते हैं।
- उच्च एलपीजी कीमतें और महामारी-प्रेरित समस्याएँ: मौजूदा रीफिल कीमतों पर, एक औसत भारतीय परिवार को अपनी सभी रसोई ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये एलपीजी पर अपने मासिक खर्च का लगभग 10% व्यय करना होगा, जो कि रसोई ऊर्जा पर अनुमानित व्यय के वास्तविक हिस्से का सीधा दोगुना है (मार्च 2020 तक की स्थिति)।
आगे की राह
- एलपीजी सब्सिडी बहाल करना: घरों में एलपीजी के उपयोग को समर्थन देने के लिये सब्सिडी को फिर से शुरू करना महत्त्वपूर्ण होगा।
- आकलन बताते हैं कि एलपीजी रिफिल की प्रभावी कीमत यह सुनिश्चित कर सकती है कि रसोई ऊर्जा पर वास्तविक घरेलू खर्च का औसत हिस्सा महामारी से पहले के स्तरों से मेल खाता हो।
- कम-से-कम उन परिवारों के लिये सब्सिडी फिर से बहाल कर देनी चाहिये जिन्हें उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी कनेक्शन प्रदान किये गए हैं।
- ‘ज़रूरतमंद लाभार्थियों’ की पहचान करना: सरकार लाभार्थियों की पहचान करने के लिये विविध दृष्टिकोणों को आज़मा सकती है, जैसे कि सब्सिडी प्रावधान को प्रतिवर्ष सात से आठ एलपीजी रिफिल तक सीमित करना और सुदृढ़ संकेतकों का उपयोग कर संपन्न परिवारों को दायरे से बाहर निकालना।
- उदाहरण के लिये, एलपीजी सब्सिडी के लिये आय-आधारित बहिर्वेशन सीमा को कम करने या गैर-व्यावसायिक चार पहिया वाहन रखने वाले परिवारों को बाहर करने से पात्र लाभार्थियों की संख्या में पर्याप्त कमी आ सकती है।
- डी-डुप्लीकेशन को प्रभावी बनाने के लिये मौजूदा लाभार्थियों के साथ ही नए लाभार्थियों के परिवार के सभी वयस्क सदस्यों के आधार नंबर दर्ज किये जा सकते हैं, जबकि वितरकों के सॉफ्टवेयर में उपयुक्त उपाय के साथ अपात्र लाभार्थियों को सब्सिडीयुक्त एलपीजी जारी किये जाने पर रोक लगाई जा सकती है।
- उज्ज्वला योजना का विस्तार: शहरी और अर्द्ध-शहरी मलिन बस्ती क्षेत्रों के सभी गरीब परिवारों तक उज्ज्वला योजना का विस्तार किया जाना चाहिये।
- जिन घरों में एलपीजी नहीं है, उन्हें कनेक्शन प्रदान कर जनसंख्या का उच्च एलपीजी कवरेज प्राप्त करने की आवश्यकता है।
- एलपीजी की समय पर उपलब्धता को बढ़ावा देना: एलपीजी आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करने और समयबद्ध सेवा आपूर्ति के कार्यान्वयन की आवश्यकता है, विशेषकर उन राज्यों में जहाँ बड़ी संख्या में उज्ज्वला कनेक्शन प्रदान किये गए हैं और बड़ी गरीब आबादी का वास है।
- ग्रामीण वितरकों के लिये उच्च प्रोत्साहन द्वारा इसका सहयोग किया जाना चाहिये, जिन्हें अन्यथा एकसमान कमीशन पर कम लेकिन वितरित मांग को पूरा करना पड़ता है।
- स्वयं सहायता समूहों को संलग्न किये जाने से भी सुदूर क्षेत्रों में कुल मांग में वृद्धि होगी और रोज़गार के अवसर सृजित होंगे।
- बायोमास के लिये वैकल्पिक उपयोग को सुविधाजनक बनाना: स्थानीय रूप से उपलब्ध बायोमास के लिये विकेंद्रीकृत प्रसंस्करण इकाइयों में (जो औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के लिये ब्रिकेट और पैलेट का निर्माण करेंगे) स्थानीय रूप से उपलब्ध बायोमास के उपयोग को बढ़ावा देने पर केंद्रित पायलट पहलों के माध्यम से एक नया बाज़ार सृजित किया जा सकता है।
- परिवारों को कम्प्रेस्ड बायोगैस उत्पादन संयंत्रों (जो SATAT योजना के तहत स्थापित किये जा रहे ) को स्थानीय रूप से उपलब्ध बायोमास (पराली या उपले सहित) की आपूर्ति के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- इस तरह के उपाय स्थानीय आय एवं आजीविका के अवसरों को बढ़ाने में मदद करेंगे, और बदले में ग्रामीण परिवारों को नियमित रूप से एलपीजी के उपयोग के लिये प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
PMUY और उज्ज्वला 2.0 जैसी कल्याणकारी योजनाओं का शुभारंभ स्वच्छ रसोई ऊर्जा को बढ़ावा देने की सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हालाँकि, भारतीय परिवारों को प्रदूषणकारी ठोस रसोई ईंधन से दूर रखने और योजनाओं में किये गए निवेश के लाभों को प्राप्त करने के लिये वहनीयता (सस्ते मूल्य) की सुनिश्चितता और रिफिल के लिये एलपीजी सिलिंडर की समयबद्ध उपलब्धता आवश्यक है। इस तरह के प्रयास आबादी के स्वास्थ्य एवं कल्याण में सुधार के लिये भी व्यापक रूप से लाभदायक सिद्ध होंगे।
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