सरकार कैसे सुलझाएगी जातीय गणना की गुत्थी?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
विपक्षी दलों से संपर्क कर सकती सरकार
2011 में संप्रग की मनमोहन सरकार द्वारा कराई गई जातीय जनगणना के अनुभव अच्छे नहीं है। ऐसे में रास्ता सुझाने के लिए सरकार इस मुद्दे पर विपक्ष समेत सभी दलों से संपर्क कर सकती है। इसमें एक सुझाव सर्वदलीय समिति गठित करने का भी आ रहा है। सरकार के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि जातियों की गणना कैसे कराई जाए?
ओबीसी जातियों को खोजने में आ रही दिक्कत
सरनेम से भी नहीं हो पा रही पहचान
यूपी में भी सरनेम वाली कठिनाई
इसी तरह से बिहार और उत्तर प्रदेश की भूमिहार जाति सिंह, शर्मा, मिश्र, सिंन्हा समेत कई सरनेम लगाते हैं। जाहिर है सरनेम के आधार पर उनकी जाति का निर्धारण नहीं किया जा सकता है। यहीं नहीं, 2011 की जाति जनगणना के दौरान सिर्फ महाराष्ट्र में 10 करोड़ लोगों में से 1.10 करोड़ यानी 11 फीसद लोगों ने अपनी कोई जाति नहीं बताई थी। इनमें बड़ी संख्या में ओबीसी जातियों के लोग भी हो सकते हैं।
समस्या खड़ी कर सकता जाति निर्धारण का विकल्प
जाति जनगणना की इस विसंगति को दूर करने के लिए एक विकल्प के रूप में लोगों को खुद अपनी जाति जनगणना के दौरान बताने का मौका देने का तर्क दिया जा रहा है। लेकिन ओबीसी में आना किसी व्यक्ति को कई सरकारी लाभों का हकदार बना देता है। ऐसे में हर व्यक्ति खुद को ओबीसी बताने की कोशिश करेगा। जाहिर है लोगों को खुद अपनी जाति निर्धारित करने का विकल्प देने से नई समस्याएं खड़ी हो जाएंगी।
1931 में हुई थी आखिरी जातीय जनगणना
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जाति जनगणना का मांग करना आसान है, लेकिन सचमुच में इसे कराना उतना ही मुश्किल है। ऐसे में जातीय जनगणना की मांग करने वाले नेताओं और दलों को इसका रास्ता सुझाने की जिम्मेदारी सौंपना बेहतर होगा।
दरअसल, अभी तक जनगणना के साथ-साथ सिर्फ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की गणना होती रही है। देश में जातीय जनगणना अंतिम बार 1931 में हुई थी। ओबीसी को मिल रहा मौजूदा आरक्षण 1931 की जातीय जनगणना के आधार पर ही है।
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